टीकमगढ़ के धर्मदास पाल जन्म से ही दोनों हाथों से दिव्यांग हैं। वे अपने सभी काम पैरों से करते हैं। लैपटॉप चलाने के अलावा बोर्ड पर बच्चों को भी पढ़ा भी लेते हैं। धर्मदास सरकारी स्कूल में अतिथि शिक्षक थे, लेकिन विभाग की शर्त की वजह से नौकरी चली गई। इसके बाद अब वे काम के लिए परेशान हैं।
BA पास 35 साल के धर्मदास गांव के सरकारी स्कूल में तीन साल तक पैरों के सहारे पढ़ाते रहे। फिर स्कूल शिक्षा विभाग ने अतिथि शिक्षकों के लिए B.Ed, D.Ed अनिवार्य कर दिया। धर्मदास आर्थिक तंगी की वजह से B.Ed नहीं कर सके, इसलिए उन्हें हटा दिया गया। उनका परिवार आर्थिक संकट से घिर गया। वे इंदौर आए, यहां एक कंपनी में नौकरी करते रहे, लेकिन दो महीने पहले वो नौकरी भी चली गई।
दिव्यांगता नहीं, पैसों की कमी बनी समस्या
परिवार
में माता-पिता और दो बड़े भाई हैं। दोनों भाई शहरों में रहकर मजदूरी करते
हैं। धर्मदास पैरों की मदद से कपड़े धोना, हैण्डपम्प से पानी भरकर लाना,
नहाना, झाड़ू लगाना, भोजन करना जैसे सभी काम कर लेते हैं। धर्मदास परिवार
में सबसे अधिक पढ़े-लिखे हैं। वह रोजाना गांव के बच्चों को भी पढ़ाते हैं।
पंचायत से लेकर प्रधानमंत्री तक को आवेदन
धर्मदास
ने बताया कि वह तीन साल तक अतिथि शिक्षक का काम कर चुके हैं। सरकार कहती
है कि B.Ed, D.Ed फ्री में कराई जाती है, लेकिन मुझे सहायता नहीं मिली।
टेस्ट दिया और पास हो गया, लेकिन कॉलेज वाले फीस मांग रहे थे। मेरे पास
पैसे नहीं थे, इसलिए नहीं कर पाया। पंचायत से लेकर प्रधानमंत्री तक को
आवेदन भेज चुका हूं। मदद नहीं मिली। सरकारें कहती हैं कि दिव्यांगों के लिए
कई योजनाएं हैं, लेकिन सच्चाई अलग है।
कंपनी के खिलाफ श्रम न्यायालय में लड़ रहे लड़ाई
इंदौर
के पीथमपुर स्थित कंपनी में कम्प्यूटर ऑपरेटर की जॉब कर चुके धर्मदास को
निकाल दिया गया था। कंपनी के फैसले के खिलाफ वे इंदौर की लेबर कोर्ट में
लड़ाई लड़ रहे हैं। धर्मदास कहते हैं कि मुझे ईश्वर के फैसले से तकलीफ नहीं
हुई, लेकिन समाज में परेशान किया जा रहा है।

खंडवा की युवती से लव मैरिज की
धर्मदास
ने इस साल की शुरुआत में खंडवा की रहने वाली रश्मि से लव मैरिज की है।
रश्मि भी दोनों पैरों से दिव्यांग है। प्रेम विवाह के बाद नौकरी चली जाने
से दिव्यांग दंपती आर्थिक संकट से जूझ रहा है। धर्मदास कहते हैं कि गांव से
काम की तलाश में शहर आए, लेकिन यहां भी नौकरी नहीं मिल पा रही।