मध्यप्रदेश शिक्षक सेवा भर्ती नियम-2018 की संवैधानिकता को कटघरे में रखते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। इसमें भर्तियों में प्रतिशत व श्रेणी को अलग-अलग दर्शाए जाने व असमानता होने से कई अभ्यर्थियों के वंचित होने का हवाला दिया गया है। एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा व जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने मामले में भारत सरकार, एनसीईटी व शिक्षा विभाग, भर्ती बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं।
यह मामले प्राथमिक शिक्षक भर्ती के अभ्यार्थियों ने
अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर के माध्यम से दायर किये हैं, जिसमें
मध्यप्रदेश शासन द्वारा 30 जुलाई 2018 को राजपत्र में प्रकाशित शिक्षक
भर्ती नियम 2018 के नियम 8, अनुसूची 3 (1) तथा (3) की संवैधानिकता को
चुनौती दी गई है। उक्त अनुसूची में उच्च माध्यमिक शिक्षक हेतु शैक्षणिक
योग्यता संबंधित विषय में द्वितीय श्रेणी में स्नाकोत्तर एवं प्राथमिक
शिक्षक हेतु हायर सेकेंडरी तथा प्रारंभिक शिक्षा में दो वर्षीय (डीएलएड)
डिप्लोमा अथवा 50 फीसदी अंक के साथ स्नातक तथा दो वर्षीय शिक्षा स्नातक
(बीएड) निर्धारित की गई है।
वहीं, दूसरी ओर जिनकी अंक सूची में द्वितीय श्रेणी लिखा
होता है। भले ही उनके परसेंटेज 45 फीसदी हैं, उनको नियुक्ति दे दीं जाती
है। दलील दी गई कि जिनके प्रतिशत ज्यादा हैं, लेकिन उनकी मार्कशीट पर तृतीय
श्रेणी लिखा है तो उन्हें नियुक्तियां नहीं दी जा रही हैं। इतना ही नहीं
प्राथमिक शिक्षक हेतु निर्धारित पात्रता हायर सेकेंडरी तथा प्रारंभिक
शिक्षा (डीएलएड) में दो वर्षीय डिप्लोमा को ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्य
किया गया है। जबकि मध्यप्रदेश भर्ती नियमों में बीएड डिग्री धारकों को भी
पात्र माना गया है।