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पत्रिका टॉक शो: रिक्त पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति व पर्याप्त संसाधनों से सुधर सकता है शिक्षा का स्तर

सतना। प्रदेश में हर साल 33 फीसदी बच्चे फेल हो रहे हैं। इसके बावजूद शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही है। शिक्षा व्यवस्था में सुधार कैसे हो सकता है, इस विषय पर पत्रिका कार्यालय में टॉक शो का आयोजन किया गया। इसमें शिक्षकों ने अपनी राय रखी। सभी ने माना कि पर्याप्त संसाधन व स्वीकृत पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति से स्थिति बदल सकती है।

वर्तमान स्थिति ऐसी है कि हर साल नए स्कूल खोले जा रहे, उन्नयन हो रहा, लेकिन शिक्षकों की भर्ती नहीं हो रही है। संसाधनों का अभाव है, शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य में लगाया जाता है। इन सभी स्थितियों को बदलना होगा। अभिभावकों व गणमान्य नागरिकों को भी अपने दायित्वों का निर्वहन करना होगा। टॉक शो का संचालन भरत श्रीवास्तव ने किया।
ये सलाह महत्वपूर्ण
- शिक्षक को केवल शैक्षणिक दायित्व दिया जाए, अन्य गतिविधियों से दूर रखा जाए।
- कोई एक नीति लंबे समय तक चले, हर साल नीति में परिर्वतन न हो।
- स्कूलों में संसाधन व पद अनुरूप शिक्षकों की नियुक्ति हो। पद खाली न रहें।
- पाठ्यक्रम लचीला और गतिविधि आधारित हो, साथ ही बच्चों की ग्रहण क्षमता के अनुरूप भी।
- कक्षागत पाठ्य योजनाएं स्वयं शिक्षकों द्वारा तैयार की जाएं और उन्हें पूरा किया जाए।
- राज्य की शिक्षा नीति निर्धारण में शिक्षाविदों और कार्यरत शिक्षकों को सहभागी बनाकर सभी के विचारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाए।
- जन भागीदारी समितियां (पालक शिक्षक संघ) प्रबंधन का दायित्व स्वीकारें।
- प्रशासन तंत्र भी शालाओं में अनावश्यक हस्तक्षेप न करे। शिक्षा का अधिकार शिक्षकों को वास्तव में सौंपा जाए।
- शिक्षण गतिविधियों में परिवर्तन करने का अधिकार शिक्षकों को हो, प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं।
- कक्षाओं में शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक किया जाए, साथ ही पर्याप्त मात्रा में शैक्षिक सामग्री की पूर्ति और शिक्षकों की भर्ती की जाए।
- शैक्षिक सुधारों को लागू करने में संस्था प्रधानों और शिक्षकों की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाए।
टॉक शो में शिक्षकों ने रखे अपने-अपने विचार
प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों का स्तर सुधारना जरूरी है। साथ ही सामाजिक दायरा भी सुधारने की जरूरत है, ताकि शिक्षा के प्रति माहौल बने। स्कूल में पहुंचने वाले बच्चों के अभिभावक शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं रहते।
कुसुम यादव, जिला अध्यक्ष, श अध्यापक संघ
सरकारी स्कूलों को लेकर धारणा बन गई है, जबकि कई मामले में निजी से बेहतर स्थिति में सरकारी स्कूल साबित होते हैं। नैतिक मूल्य गायब हो गए हैं, परिवेश सुधारने की जरूरत है। कमियों को दूर करने का प्रयास होना चाहिए।
दिलकश जैब, जनपद शिक्षा केंद्र सोहावल
कक्षा 5वीं और 8वीं में बोर्ड व्यवस्था लागू होनी चाहिए। इसके खत्म होने से शिक्षा के स्तर में गिरावट बेहद आई है। बच्चे पास होते हुए उच्च कक्षाओं तक पहुंच जाते हैं, जबकि उनका आधार ही गड़बड़ होता है।
अशोक कुमार, शाउमा. विद्यालय, डगडीहा
ऊपर से नीति लागू कर दी जाती है। स्कूल स्तर पर, शिक्षक द्वारा कार्ययोजना बननी चाहिए और लागू करना चाहिए। संसाधनों को विकसित किया जाना चाहिए। ऐसे कई परिवर्तन करने से शिक्षा स्तर में सुधार हो सकता है।
प्रभात गौतम, संगठन मंत्री, अ. शिक्षक संघ
स्कूल प्रबंधन की इच्छाशक्ति में कमी रहती है। निजी स्कूल का प्रबंधन सरकारी की अपेक्षा बेहतर ढंग से काम करता है। शिक्षकों को मोटिवेशन की जरूरत है। प्रधानाध्यापक चाहे तो शिक्षा का स्तर बेहतर हो सकता है।
आदर्श तिवारी, शाउमा. विद्यालय,सज्जनपुर
१५ अगस्त व २६ जनवरी को गणमान्य नागरिक व जनप्रतिनिधि सरकारी स्कूल पहुंचते हैं। अगर ये सहभागिता सालभर बनी रहे तो स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधर सकता है, लेकिन सच है कि सभी इससे दूरी बनाए हुए हैं।
धर्मेंद्र कुमार सेन, कोषध्यक्ष, अध्यापक संघ
सरकारी नीतियों में कमियां हैं। शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य में लगाया जाता है। शौचालय की व्यवस्था, मध्याह्न भोजन, जनगणना जैसे दायित्व का निर्वहन सालभर कराया जाता है। ऐसे में स्थिति नहीं बदलेगी।
अनिल पांडेय, प्रांतीय प्रवक्ता, शा. अध्यापक शिक्षक संघ
स्कूल शिक्षा सरकार के लिए प्रयोगशाला बनी है। न नीति है, न नीयत है और न ही नैतिकता है। ऐसे में पूरी व्यवस्था दो भागों में बंट गई है। गरीब और अमीर की शिक्षा, इसको समझना होगा और समय रहते कदम उठाने होंगे।
प्रभाकर पांडेय, जिला अध्यक्ष, शा. अध्यापक शिक्षक संघ
सरकारी स्कूल में अधिकतर गरीब परिवार के बच्चे पढ़ते हैं। स्थिति स्पष्ट है कि मजबूरी में बच्चे आ रहे हैं। जिस अभिभावक का स्तर थोड़ा भी बेहतर है, वे बच्चों को निजी स्कूल में भेजते हैं। ये मानसिकता बदलनी होगी।
अशोक प्रताप सिंह, जिला अध्यक्ष, मप्र शिक्षक कांग्रेस
कमजोर बच्चों को न फेल करने की परंपरा बंद करनी होगी। नीतियों में दोष है, उसे सुधारने की जरूरत है। शिक्षा नीति बनाने के लिए शिक्षकों की राय लेनी चाहिए। गुरुता को बेहतर करने के लिए कार्यक्रम चलाने होंगे।
सुनील मिश्रा, प्रदेशाध्यक्ष, शा. अध्यापक शिक्षक संघ
बिना शिक्षक पढ़ाई नहीं हो सकती। सरकारी स्कूलों की स्थिति ऐसी है कि माध्यमिक को हाई स्कूल बना दिया, लेकिन शिक्षक नियुक्त नहीं किए। सुधार कैसे संभव है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोल दिए, शिक्षक नहीं है।
देवेंद्र सिंह, प्रांतीय कोषाध्यक्ष, अध्यापक शिक्षक संघ

शैक्षणिक स्टॉफ की भर्ती वर्ष 2013 के बाद नहीं की गई। हर साल स्कूलों का उन्नय हुआ और नए खोले गए। स्कूलों में शिक्षक ही नहीं हैं। अतिथि शिक्षक की नियुक्ति हो रही, यानी कम पैसे में बेहतर शिक्षा की उम्मीद बेकार है।
रमाकांत द्विवेदी, पूर्व प्रांताध्यक्ष, मप्र शिक्षक कांग्रेस

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