भोपाल.पीएमटी 2012 गड़बड़ी में एसटीएफ ने जिन बिंदुओं पर आरोपियों के खिलाफ जांच बंद की थी, सीबीआई ने उन्हीं आरोपियों और अफसरों से सख्ती से पूछताछ कर निजी कॉलेज संचालकों, चिकित्सा शिक्षा विभाग और व्यापमं अफसरों की सांठगांठ का खुलासा किया।
सीबीआई ने दो स्तरों पर पूछताछ की। गिरफ्तार आरोपियों से दाखिले के बारे में और संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. एनएम श्रीवास्तव से अवैध एडमिशन को वैध करने के बारे में। इसी दौरान दूसरे रैकेटियर, स्कोरर के नाम सामने आते गए। इन्हीं में से कुछ सरकारी और प्राइवेट कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे।
- करीब दो साल की लंबी जांच में सीबीआई ने 245 नए आरोपी खोज निकाले। निजी मेडिकल कॉलेज संचालकों ने मेडिकल में एडमिशन के लिए हायर सेकेंडरी में 50 प्रतिशत अंकों की अनिवार्यता के संबंध में सुप्रीम कोर्ट से जारी आदेश को ढाल की तरह इस्तेमाल किया।
- अदालत के इस आदेश को ही आधार मानकर एसटीएफ ने कॉलेज संचालकों और अफसरों को क्लीनचिट ही दे दी। उनसे पूछताछ तक नहीं हुई। पीपुल्स, एलएन, चिरायु और इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के संचालकों और अफसरों को यह राहत भरी खबर थी।
- एसटीएफ नहीं कर रही थी मामले की सही जांच : सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता डॉ. आनंद राय ने बताया कि पीएमटी 2012 में गड़बड़ी की शिकायत एसटीएफ को की थी। लेकिन, एसटीएफ मामले की जांच सही नहीं कर रही थी।
- परेशान होकर सुप्रीम कोर्ट में व्यापमं पीएमटी के सभी मामलों की जांच सीबीआई को ट्रांसफर करने की मांग को लेकर याचिका लगाई थी। लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केस सीबीआई को ट्रांसफर करने के आदेश दिए थे।
जांच रिपोर्ट के पांच अहम बिंदु
एसटीएफ
1 . वर्ष 2007-08 में सुप्रीम कोर्ट के हायर सेकंडरी परीक्षा में 50 प्रतिशत अंक वाले स्टूडेंट्स को खाली सीट पर एडमिशन देने के आदेश की कापी जमा की। निजी कॉलेज संचालकों के बयान लेकर उन्हें क्लीनचिट दे दी।
2. स्कोरर, साल्वर, रेकेटियर, मिडिलमैन और व्यापमं अफसरों तक जांच सीमित रखी।
3 . एसटीएफ ने ऐसे लोगों को गवाह बनाया, जो केस में अहम आरोपी साबित हो सकते थे। इनमें कई छात्र अौर उनके परिजन शामिल थे।
4 . काउंसलिंग कराने वाले चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसरों के बयान लिए। लेकिन, एक भी अफसर को आरोपी नहीं बनाया। जबकि अहम सबूत और दस्तावेज काउंसलिंग अफसरों से मिलने थे।
5 . दो साल तक मामले की जांच करने के बाद भी गड़बड़ी के लिए परीक्षा केंद्र के इनविजिलेटर को आरोपी
नहीं बनाया।
सीबीआई
- निजी कॉलेज संचालकों से पूछा कि पीएमटी 2012 में बिना काउंसलिंग के एडमिशन किस आधार पर दिया? मेडिकल कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों से दोबारा पीएमटी देने की वजह पूछी। कॉलेज संचालकों और स्टूडेंट्स ने गुनाह कबूल किया।
- सीबीआई ने सीट पाने वाले स्टूडेंट्स के रिकाॅर्ड का मिलान दूसरे कॉलेजों में पढ़ रहे स्टूडेंट्स के रिकाॅर्ड से किया। 123 स्कोरर और 11 नए रैकेटियर पहचाने गए। पूछताछ में उन्होंने 20 नए उम्मीदवारों के नाम बताएं, जिन्हें नकल कराई थी।
- गवाह बने छात्राें-परिजनों को आरोपी बनाकर पूछताछ की। इनके बयानों के आधार पर 46 इनविजिलेटर आरोपी बनाए।
- काउंसलिंग में उम्मीदवारों के सीट एलॉटमेंट लेटर साइन करने वाले डीएमई को आरोपी बनाया। क्योंकि स्कोरर और साॅल्वर द्वारा सरेंडर की गई सीट पर दिए गए एडमिशन को वैध डीएमई ने किया था।
- परीक्षार्थियों, उनके परिजन, व्यापमं अफसरों, रैकेटियर, स्कोरर के कॉल डिटेल का एनालिसिस कर सबूत जुटाए।
- उनके होटल में ठहरने, रेल टिकिट, बैंक ट्रांजेक्शन की गहन पड़ताल। इससे बैंक ट्रांजेक्शन के पहले और बाद में चैन में शामिल एक व्यक्ति से बात होने के सबूत मिले। इन्हीं सबूतों के आधार पर कॉलेज संचालक और चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसरों की मिलीभगत सामने आई।
सीबीआई ने दो स्तरों पर पूछताछ की। गिरफ्तार आरोपियों से दाखिले के बारे में और संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. एनएम श्रीवास्तव से अवैध एडमिशन को वैध करने के बारे में। इसी दौरान दूसरे रैकेटियर, स्कोरर के नाम सामने आते गए। इन्हीं में से कुछ सरकारी और प्राइवेट कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे।
- करीब दो साल की लंबी जांच में सीबीआई ने 245 नए आरोपी खोज निकाले। निजी मेडिकल कॉलेज संचालकों ने मेडिकल में एडमिशन के लिए हायर सेकेंडरी में 50 प्रतिशत अंकों की अनिवार्यता के संबंध में सुप्रीम कोर्ट से जारी आदेश को ढाल की तरह इस्तेमाल किया।
- अदालत के इस आदेश को ही आधार मानकर एसटीएफ ने कॉलेज संचालकों और अफसरों को क्लीनचिट ही दे दी। उनसे पूछताछ तक नहीं हुई। पीपुल्स, एलएन, चिरायु और इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के संचालकों और अफसरों को यह राहत भरी खबर थी।
- एसटीएफ नहीं कर रही थी मामले की सही जांच : सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता डॉ. आनंद राय ने बताया कि पीएमटी 2012 में गड़बड़ी की शिकायत एसटीएफ को की थी। लेकिन, एसटीएफ मामले की जांच सही नहीं कर रही थी।
- परेशान होकर सुप्रीम कोर्ट में व्यापमं पीएमटी के सभी मामलों की जांच सीबीआई को ट्रांसफर करने की मांग को लेकर याचिका लगाई थी। लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केस सीबीआई को ट्रांसफर करने के आदेश दिए थे।
जांच रिपोर्ट के पांच अहम बिंदु
एसटीएफ
1 . वर्ष 2007-08 में सुप्रीम कोर्ट के हायर सेकंडरी परीक्षा में 50 प्रतिशत अंक वाले स्टूडेंट्स को खाली सीट पर एडमिशन देने के आदेश की कापी जमा की। निजी कॉलेज संचालकों के बयान लेकर उन्हें क्लीनचिट दे दी।
2. स्कोरर, साल्वर, रेकेटियर, मिडिलमैन और व्यापमं अफसरों तक जांच सीमित रखी।
3 . एसटीएफ ने ऐसे लोगों को गवाह बनाया, जो केस में अहम आरोपी साबित हो सकते थे। इनमें कई छात्र अौर उनके परिजन शामिल थे।
4 . काउंसलिंग कराने वाले चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसरों के बयान लिए। लेकिन, एक भी अफसर को आरोपी नहीं बनाया। जबकि अहम सबूत और दस्तावेज काउंसलिंग अफसरों से मिलने थे।
5 . दो साल तक मामले की जांच करने के बाद भी गड़बड़ी के लिए परीक्षा केंद्र के इनविजिलेटर को आरोपी
नहीं बनाया।
सीबीआई
- निजी कॉलेज संचालकों से पूछा कि पीएमटी 2012 में बिना काउंसलिंग के एडमिशन किस आधार पर दिया? मेडिकल कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों से दोबारा पीएमटी देने की वजह पूछी। कॉलेज संचालकों और स्टूडेंट्स ने गुनाह कबूल किया।
- सीबीआई ने सीट पाने वाले स्टूडेंट्स के रिकाॅर्ड का मिलान दूसरे कॉलेजों में पढ़ रहे स्टूडेंट्स के रिकाॅर्ड से किया। 123 स्कोरर और 11 नए रैकेटियर पहचाने गए। पूछताछ में उन्होंने 20 नए उम्मीदवारों के नाम बताएं, जिन्हें नकल कराई थी।
- गवाह बने छात्राें-परिजनों को आरोपी बनाकर पूछताछ की। इनके बयानों के आधार पर 46 इनविजिलेटर आरोपी बनाए।
- काउंसलिंग में उम्मीदवारों के सीट एलॉटमेंट लेटर साइन करने वाले डीएमई को आरोपी बनाया। क्योंकि स्कोरर और साॅल्वर द्वारा सरेंडर की गई सीट पर दिए गए एडमिशन को वैध डीएमई ने किया था।
- परीक्षार्थियों, उनके परिजन, व्यापमं अफसरों, रैकेटियर, स्कोरर के कॉल डिटेल का एनालिसिस कर सबूत जुटाए।
- उनके होटल में ठहरने, रेल टिकिट, बैंक ट्रांजेक्शन की गहन पड़ताल। इससे बैंक ट्रांजेक्शन के पहले और बाद में चैन में शामिल एक व्यक्ति से बात होने के सबूत मिले। इन्हीं सबूतों के आधार पर कॉलेज संचालक और चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसरों की मिलीभगत सामने आई।