भोपाल/इंदौर स्कूल शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों में माध्यमिक
शिक्षक भर्ती करने की तैयारी में जुटा है। 10 जनवरी को िदशा-निर्देश जारी
होंगे।
इधर, शिक्षक बनने के लिए पात्र हो चुके उम्मीदवार विभाग द्वारा तैयार माध्यमिक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया की नीति को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम-2009 (राइट टू एजुकेशन-आरटीई) के खिलाफ बता रहे हैं। उनका आरोप है कि आरटीई के प्रावधानों से हटकर ऐसा फॉर्मूला तैयार किया है जिससे माध्यमिक स्तर के स्कूलों को विज्ञान विषय के शिक्षक मुश्किल से ही मिल पाएंगे। आरटीई में विज्ञान, गणित के साथ संयुक्त रूप से पहले स्थान पर है, जिसे विभाग ने पांचवें पर कर दिया है। इससे प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पीईबी) द्वारा विज्ञान विषय में आयोजित पात्रता परीक्षा में सफल हुए उम्मीदवारों का भी नुकसान होना तय है। पात्रता परीक्षा में क्वालिफाई होने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इसके चलते उम्मीदवारों द्वारा दायर की गई याचिका पर हाइकोर्ट ने विभाग से जवाब मांगा है। गौरतलब है कि आरटीई एक्ट की धारा 19 एवं 25 के अनुसार माध्यमिक स्कूलों में विज्ञान के शिक्षक की नियुक्ति अनिवार्य है।
माध्यमिक शिक्षक भर्ती
अदालत पहुंचा मामला, हाईकोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग से मांगा जवाब
जिम्मेदारों का तर्क...छात्रों के दृष्टिकोण से लिया निर्णय, क्योंकि... विज्ञान पढ़ने वाला छात्र गणित नहीं पढ़ता
अधिकारियों ने ऐसे समझाया-शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों का तर्क है कि छात्रों के दृष्टिकोण से निर्णय लिया गया है। गणित का छात्र स्नातक स्तर तक गणित के साथ केमिस्ट्री विषय भी पढ़ता है, इसलिए वह विज्ञान पढ़ा सकता है। लेकिन, विज्ञान (बायो) पढ़ने वाला छात्र गणित नहीं पढ़ता, इसलिए सोच समझकर यह निर्णय लिया गया है, ताकि ऐसे शिक्षक नियुक्त हो सकें जो गणित के साथ विज्ञान पढ़ा सकें।
पदों को दोनों विषयों में बराबर बांटने की मांग
उम्मीदवार कैलाशचंद चारेल ने बताया कि आरटीई के अनुसार विज्ञान और गणित के लिए संयुक्त रूप से एक ही पद होता है, लेकिन मप्र में दोनों विषयों के लिए अलग-अलग परीक्षा ली है। जबकि, अन्य राज्यों में संयुक्त परीक्षा होती है। इसके अलावा सीबीएसई द्वारा आयोजित सेंट्रल टीचर्स इलिजबिलिटी टेस्ट में भी विज्ञान और गणित के लिए संयुक्त रूप से पात्रता परीक्षा आयोजित कराई जाती है, लेकिन मप्र में इस व्यवस्था का पालन होता तो आरटीई का उल्लंघन नहीं होता है। अब उनकी मांग है कि परीक्षा संयुक्त रूप से नहीं हो सकी तो पदों को दोनों विषयों में बराबर-बराबर बांटना चाहिए। स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए एक बेसिक सेटअप तैयार कर स्कूलों को भेजा गया था।
बेसिक सेटअप...जो विभाग ने स्कूलों को भेजा है
एक लाख से अधिक उम्मीदवारों ने दी परीक्षा
फरवरी 2018 में माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा हुई। विज्ञान विषय की परीक्षा 7 शिफ्टों में हुई। इसमें 1 लाख से ज्यादा उम्मीदवार शामिल हुए।
सुधार के लिए दिया ज्ञापन...
स्कूल शिक्षा विभाग के सर्कुलर के खिलाफ सुशील मेहरा द्वारा मप्र हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी। जस्टिस विशाल धगत ने सुनवाई करते हुए 17 दिसंबर 2019 को जवाब मांगा था, जो प्रस्तुत नहीं किया गया। इसी संबंध में विज्ञान विषय के विक्रम राठौड़, कैलाशचंद चारेल, संतोष परमार आदि उम्मीदवारों ने संचालनालय में ज्ञापन दिया है।
इधर, शिक्षक बनने के लिए पात्र हो चुके उम्मीदवार विभाग द्वारा तैयार माध्यमिक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया की नीति को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम-2009 (राइट टू एजुकेशन-आरटीई) के खिलाफ बता रहे हैं। उनका आरोप है कि आरटीई के प्रावधानों से हटकर ऐसा फॉर्मूला तैयार किया है जिससे माध्यमिक स्तर के स्कूलों को विज्ञान विषय के शिक्षक मुश्किल से ही मिल पाएंगे। आरटीई में विज्ञान, गणित के साथ संयुक्त रूप से पहले स्थान पर है, जिसे विभाग ने पांचवें पर कर दिया है। इससे प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पीईबी) द्वारा विज्ञान विषय में आयोजित पात्रता परीक्षा में सफल हुए उम्मीदवारों का भी नुकसान होना तय है। पात्रता परीक्षा में क्वालिफाई होने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इसके चलते उम्मीदवारों द्वारा दायर की गई याचिका पर हाइकोर्ट ने विभाग से जवाब मांगा है। गौरतलब है कि आरटीई एक्ट की धारा 19 एवं 25 के अनुसार माध्यमिक स्कूलों में विज्ञान के शिक्षक की नियुक्ति अनिवार्य है।
माध्यमिक शिक्षक भर्ती
अदालत पहुंचा मामला, हाईकोर्ट ने स्कूल शिक्षा विभाग से मांगा जवाब
जिम्मेदारों का तर्क...छात्रों के दृष्टिकोण से लिया निर्णय, क्योंकि... विज्ञान पढ़ने वाला छात्र गणित नहीं पढ़ता
अधिकारियों ने ऐसे समझाया-शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों का तर्क है कि छात्रों के दृष्टिकोण से निर्णय लिया गया है। गणित का छात्र स्नातक स्तर तक गणित के साथ केमिस्ट्री विषय भी पढ़ता है, इसलिए वह विज्ञान पढ़ा सकता है। लेकिन, विज्ञान (बायो) पढ़ने वाला छात्र गणित नहीं पढ़ता, इसलिए सोच समझकर यह निर्णय लिया गया है, ताकि ऐसे शिक्षक नियुक्त हो सकें जो गणित के साथ विज्ञान पढ़ा सकें।
पदों को दोनों विषयों में बराबर बांटने की मांग
उम्मीदवार कैलाशचंद चारेल ने बताया कि आरटीई के अनुसार विज्ञान और गणित के लिए संयुक्त रूप से एक ही पद होता है, लेकिन मप्र में दोनों विषयों के लिए अलग-अलग परीक्षा ली है। जबकि, अन्य राज्यों में संयुक्त परीक्षा होती है। इसके अलावा सीबीएसई द्वारा आयोजित सेंट्रल टीचर्स इलिजबिलिटी टेस्ट में भी विज्ञान और गणित के लिए संयुक्त रूप से पात्रता परीक्षा आयोजित कराई जाती है, लेकिन मप्र में इस व्यवस्था का पालन होता तो आरटीई का उल्लंघन नहीं होता है। अब उनकी मांग है कि परीक्षा संयुक्त रूप से नहीं हो सकी तो पदों को दोनों विषयों में बराबर-बराबर बांटना चाहिए। स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए एक बेसिक सेटअप तैयार कर स्कूलों को भेजा गया था।
बेसिक सेटअप...जो विभाग ने स्कूलों को भेजा है
एक लाख से अधिक उम्मीदवारों ने दी परीक्षा
फरवरी 2018 में माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा हुई। विज्ञान विषय की परीक्षा 7 शिफ्टों में हुई। इसमें 1 लाख से ज्यादा उम्मीदवार शामिल हुए।
सुधार के लिए दिया ज्ञापन...
स्कूल शिक्षा विभाग के सर्कुलर के खिलाफ सुशील मेहरा द्वारा मप्र हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी। जस्टिस विशाल धगत ने सुनवाई करते हुए 17 दिसंबर 2019 को जवाब मांगा था, जो प्रस्तुत नहीं किया गया। इसी संबंध में विज्ञान विषय के विक्रम राठौड़, कैलाशचंद चारेल, संतोष परमार आदि उम्मीदवारों ने संचालनालय में ज्ञापन दिया है।