भोपाल। राजधानी सहित
प्रदेश के अधिकांश शिक्षक संस्थानों में शिक्षकों की कमी है वहीं
इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर भी विद्यार्थियों को मामलूी सुविधाएं हैं। इस
बीच नई शिक्षा नीति तैयार करने वाली समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय
को पूरे देश में स्नातक कोर्स की अवधि तीन से बढ़ाकर चार साल करने को कहा
है।
हर साल राजधानी से करीब 70 हजार विद्यार्थी ग्रेजुएट होकर निकलते हैं।
इन पर एक साल की शिक्षा का अतिरिक्त भार पड़ेगा।
बरकत उल्ला विश्वविद्यालय सहित शहर के
प्रमुख शैक्षणिक संस्थान संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों ने
बताया कि चार साल तक छात्रों को रोकने इंफ्रास्ट्रक्चर व फेकल्टी बढ़ानी
होगी। कॉलेज में पढऩे के लिए कक्षाएं नहीं है और रहने के लिए हॉस्टल्स की
भी अभी मारामारी होती है। इससे परेशानी बढ़ सकती है। जानकारों ने कहा कि
यदि वर्तमान व्यवस्थाओं में सुधार होता है तो छात्र को ट्रेनिंग मिलती है
तो इसके लाभ मिलने की उम्मीद है।
लेकिन जब तक इंफ्रास्ट्रक्चर, स्टाफ व
मॉनिटरिंग स्तर पर सुधार नहीं होगा तब तक उच्च शिक्षा में किए जाने वाले
प्रयोग किसी के हित के नहीं होंगे। इन परिस्थितियों में स्नातक की डिग्री
चार साल की करने से सिर्फ बेरोजगारी के आंकड़े ही प्रभावित होंगे। वर्तमान
में जिस तरह से बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है उसकी गति धीमी होगी।
क्योंकि छात्र एक साल देरी से ग्रेजुएट होगा।
हर साल निकल रहे 70 हजार ग्रेजुएट
केवल राजधानी के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय
से ही हर साल 70 हजार से अधिक ग्रेजुएट निकल रहे हैं। जिनकी संख्या में
लगातार बढ़ोतरी हो रही है। एक साल बढऩे से ये आर्थिक रूप से प्रभावित
होंगे। पढ़ाई का अतिरिक्त खर्च बढ़ेगा। किसी भी संस्था को इंफ्रास्ट्रक्चर व
शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक स्टाफ की भर्ती होने पर ही मान्यता दी जानी
चाहिए।
इंटर्नशिप कहां कराएंगे?
बीई, फार्मेसी जैसे प्रोफेशनल कोर्स करने
वाले छात्रों को इंटर्नशिप करने के मौके नहीं मिल रहे हैं। इंटर्नशिप के
नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। ऐसे में इस बात की गारंटी नहीं है कि
पारंपरिक कोर्स करने वाले छात्रों को इसके लिए मौके मिलेंगे साथ ही रोजगार पाने की राह आसान होगी। छात्रों के लिए अवसर पैदा करने होंगे।
स्नातक
की डिग्री चार वर्ष करने से बेरोजगारी की संख्या जरूर प्रभावित होगी। अभी
तीन साल में बेरोजगारी हाथ में आती है फिर चार में आएगी। अभी न तो अच्छी
प्रयोगशालाएं हैं और न ही शिक्षक। सेमेस्टर शुरू होने के दौरान आखिरी
सेमेस्टर में इंटर्नशिप करा छात्र को ट्रेंड करने की परिकल्पना थी। छात्रों
को मौका ही नहीं मिला।
-डॉ. केएम जैन, पूर्व संयुक्त संचालक उच्च शिक्षा
-डॉ. केएम जैन, पूर्व संयुक्त संचालक उच्च शिक्षा
चार साल की डिग्री करने के पक्ष में
मैं बिल्कुल नहीं हूं। क्योंकि संस्थानों में वर्तमान व्यवस्थाओं के अनुसार
ही इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है। ट्रेनिंग देने की दुकानें खुल गई हैं।
छात्र जाए या नहीं जाए उसे प्रमाणपत्र मिल जाता है। बेरोजगारी तो उसे चार
साल बाद भी झेलनी ही पड़ेगी।
-डॉ. शशि राय, पूर्व सदस्य यूजीसी
-डॉ. शशि राय, पूर्व सदस्य यूजीसी