भोपाल. सरकारी
स्कूलों में विज्ञान प्रयोगशाला यानी साइंस लैब मेंटेन नहीं करने वाला
सिस्टम किस कदर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है, इसका अंदाजा
विज्ञान विषय की परीक्षा के रिजल्ट से लगाया जा सकता है।
मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग के नियमों के तहत प्रदेश के हाई एवं हायर सेकंडरी स्कूलों की कक्षा 10, 11 एवं 12 के विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रश्न-पत्र के साथ प्रायोगिक परीक्षा में भी पास होना अनिवार्य है। जिसमें विज्ञान के प्रश्न-पत्र के 100 नंबर में से 20 नंबर प्रायोगिक परीक्षा के लिए होते हैं। बात करें भोपाल जिले की तो यहां 62 हाई एवं 50 हायर सेकंडरी मिलाकर कुल 112 परीक्षा कराने योग्य सरकारी स्कूल हैं। इनमें से एक भी स्कूल एेसा नहीं है, जहां विज्ञान प्रयोगशाला विभागीय मानदंडों के मुताबिक संचालित की जा रही है।
इन स्कूलों में हर साल विज्ञान की परीक्षा होती है और विद्यार्थियों को अच्छे नंबरों से पास भी कर दिया जाता है। बगैर प्रयोगशाला में प्रवेश किए विद्यार्थियों को कैसे पास कर दिया जाता है, इसका जवाब शिक्षा तंत्र के जिम्मेदारों के पास भी नहीं है। सिस्टम की नाकामी छिपाने के लिए विद्यार्थियों को या तो पासिंग माक्र्स से पास किया जा रहा है या संबंधित शिक्षक विद्यार्थियों को मनमाने अंक प्रदान कर उनका परीक्षा परिणाम तैयार कर रहे हैं।
स्कूलों की पड़ताल में खुली पोल
साइंस लैब के लिए जारी होने वाले सरकारी फंड के इस्तेमाल और वस्तु स्थिति का जायजा लेने के लिए पत्रिका ने बरखेड़ी एवं ईंटखेड़ी उच्चतर माध्यमिक शाला का निरीक्षण किया था। इस दौरान प्राचार्यों से चर्चा में ये बात सामने आई कि फंड बहुत कम है, जिसके चलते जरूरी इंतजाम अधूरे हैं। जो हैं वो भी सार्वजनिक रूप से दिखाने लायक नहीं हैं। बरखेड़ी में हाई एवं हायर सेकंडरी के करीब 100 बच्चे अध्यन करते हैं, जबकि ईंटखेड़ी में 150 से ज्यादा विद्यार्थी रजिस्टर्ड हैं।
&विज्ञान प्रयोगशाला सभी पात्र स्कूलों में संचालित की जा रही है। इस मद में प्राचार्यों के खाते में राशि जमा करवाई गई थी। फिलहाल राशि के दुरुपयोग की कोई शिकायत नहीं आई है।
धमेंद्र शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी
मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग के नियमों के तहत प्रदेश के हाई एवं हायर सेकंडरी स्कूलों की कक्षा 10, 11 एवं 12 के विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रश्न-पत्र के साथ प्रायोगिक परीक्षा में भी पास होना अनिवार्य है। जिसमें विज्ञान के प्रश्न-पत्र के 100 नंबर में से 20 नंबर प्रायोगिक परीक्षा के लिए होते हैं। बात करें भोपाल जिले की तो यहां 62 हाई एवं 50 हायर सेकंडरी मिलाकर कुल 112 परीक्षा कराने योग्य सरकारी स्कूल हैं। इनमें से एक भी स्कूल एेसा नहीं है, जहां विज्ञान प्रयोगशाला विभागीय मानदंडों के मुताबिक संचालित की जा रही है।
इन स्कूलों में हर साल विज्ञान की परीक्षा होती है और विद्यार्थियों को अच्छे नंबरों से पास भी कर दिया जाता है। बगैर प्रयोगशाला में प्रवेश किए विद्यार्थियों को कैसे पास कर दिया जाता है, इसका जवाब शिक्षा तंत्र के जिम्मेदारों के पास भी नहीं है। सिस्टम की नाकामी छिपाने के लिए विद्यार्थियों को या तो पासिंग माक्र्स से पास किया जा रहा है या संबंधित शिक्षक विद्यार्थियों को मनमाने अंक प्रदान कर उनका परीक्षा परिणाम तैयार कर रहे हैं।
स्कूलों की पड़ताल में खुली पोल
साइंस लैब के लिए जारी होने वाले सरकारी फंड के इस्तेमाल और वस्तु स्थिति का जायजा लेने के लिए पत्रिका ने बरखेड़ी एवं ईंटखेड़ी उच्चतर माध्यमिक शाला का निरीक्षण किया था। इस दौरान प्राचार्यों से चर्चा में ये बात सामने आई कि फंड बहुत कम है, जिसके चलते जरूरी इंतजाम अधूरे हैं। जो हैं वो भी सार्वजनिक रूप से दिखाने लायक नहीं हैं। बरखेड़ी में हाई एवं हायर सेकंडरी के करीब 100 बच्चे अध्यन करते हैं, जबकि ईंटखेड़ी में 150 से ज्यादा विद्यार्थी रजिस्टर्ड हैं।
&विज्ञान प्रयोगशाला सभी पात्र स्कूलों में संचालित की जा रही है। इस मद में प्राचार्यों के खाते में राशि जमा करवाई गई थी। फिलहाल राशि के दुरुपयोग की कोई शिकायत नहीं आई है।
धमेंद्र शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी