मध्य प्रदेश आर्थिक संकट के दौर से गुजरने के बाद उबर नहीं पा रहा है। लंबे समय से विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से उधार लेकर और ओवर ड्राफ्ट के सहारे वेतन-भत्ते बांटे जा रहे हैं। इसके लिए फिजूल खर्चों पर नियंत्रण के साथ ही योजनागत मदों और निर्माण कार्यों की राशि में कटौती के रास्ते में सरकार लगातार कदम उठा रही है। कर्मचारी और अन्य संगठनों की नाराजगी सरकार से बढ़ती जा रही है।
संभवत: यही कारण है, कि कर्मचारी संगठनों के आंदोलनों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। दो माह पूर्व हुए पटवारियों के राज्य व्यापी आंदोलन को किसी तरह सरकार ने काबू में कर लिया, किन्तु इसके लिए मंत्रियों तक को काफी पापड़ बेलने पड़े। अंतत: राजस्व मंत्री रामपाल सिंह और वित्तमंत्री जयंत मलैया की मध्यस्थता में समझौता हुआ और पटवारी बस्ता वापस लेकर काम पर लौटे तब कहीं जाकर फसल क्षति का मुआवजा वितरण हो पाया। एक अनुमान के अनुसार यदि पटवारियों की मांगें मान ली जातीं तो सरकार पर लगभग पौने दो सौ करोड़ रुपए का वार्षिक भार बढ़ जाता। यही हाल पंचायत प्रतिनिधियों के आंदोलन को लेकर बनता जा रहा था। उनकी कई मांगें आर्थिक थीं जिसे पूरा करना सरकार के लिए संभव ही नहीं था। इसके बावजूद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार चौहान, महामंत्री अरविंद भदौरिया और मुख्यमंत्री के सचिव इकबाल सिंह बैस की मध्यस्थता में बीच का रास्ता निकल ही गया। दूसरी तरफ अध्यापक वर्ग, दैनिक वेतन भोगी, कई विभागों के संविदा कर्मचारी, संविदा शिक्षक, पंचायत सचिवों सहित अन्य संगठनों के लंबित मांगों को लटकाकर रखा जा रहा है।
सिर मुंडाते ही ओले पड़े
पहले राज्य सरकार ने नई आबकारी नीति को हरी झंडी दे दी, बाद में व्यापक विरोध का सामना करते हुए इसमें से 10 लाख के आयकर प्रदाता को सौ बोतल शराब रखने का परमिट देने के प्रावधान को हटा दिया गया। इसके अनुसार नए वित्तीय वर्ष में शराब की कोई नई दुकान नहीं खोली जाएगी साथ ही घाटे में चल रहे देशी शराब दुकान को अंग्रेजी शराब बेचने की अनुमति भी नहीं दी जाएगी। संभवत: इस निर्णय से होने वाली राजस्व कमी को पूरा करने की नियत से सरकार ने जल्दबाजी में एक नया फैसला लिया था। इसके तहत 10 लाख से अधिक आयकर दाता को अपने घर में सौ बोतल महंगी विदेशी शराब रखने की अनुमति दी जाएगी। इसके लिए बकायदा लाइसेंस जारी किया जाएगा। इस निर्णय की सरकार की बाहर और भीतर जमकर आलोचना हुई। वित्तमंत्री जयंत मलैया ने दबे स्वर में इसका विरोध किया। उच्च शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी अपनी ही सरकार के खिलाफ जमकर मुखर हो गए। ऐसे में सरकार के लिए सिर मुंडाते ही ओले पड़े की कहावत चरितार्थ हो गई। विरोध का मुख्य कारण माना जा रहा था, कि इससे प्रदेश में अवैध शराब की बिक्री बढ़ेगी और अभी तक लुक- छिप कर अपने घरों में अघोषित बार चलाने वालों को वैधानिक अधिकार मिल जाएगा इससे शराबखोरी की प्रवृत्ति बढ़ेगी। सरकार इस सभी हालातों के मद्दे नजर अपने फैसले को बदलने पर मजबूर हो गई। सरकार इसी तरह पिछले दो वर्षों से नया शराब कारखाना खोलने की अनुमति को टालती रही है, किन्तु सरकार की चूक के कारण इस निर्णय को कोई कानूनी जामा नहीं पहनाया जा सका। ऐसे में नए शराब कारखाने खोलने का लाइसेंस देने के लिए सरकार मजबूर है।
मुख्यमंत्री की दहाड़
समझा जा रहा है, कि जब से भाजपा पार्टी हाईकमान ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सरकार के काम-काज से लेकर निगम मंडल की नियुक्ति और मंत्री मण्डल के संभावित फेरबदल के लिए 'फ्री हैण्डÓ किया है, तभी से मुख्यमंत्री की दहाड़ सुनाई देने लगी है। अमूमन शांत रहने वाले श्री चौहान में इस बड़े परिवर्तन का नजारा तब देखने को मिला, जब उन्होंने पिछले माह दो किस्तों में 24 निगम-मंडल और आयोगों के अध्यक्ष, उपाध्यक्षों की नियुक्ति कर डाली। इन नियुक्तियों में उन्होंने अपने नजदीकी नेताओं का खूब ख्याल रखा, जबकि पार्टी के अन्य क्षत्रपों में संगठन महामंत्री अरविंद मेनन को छोड़ उन्होंने किसी की नहीं चलने दी। उनकी दहाड़ इसी सप्ताह पुन: सुनाई दी जब पार्टी के प्रदेश दफ्तर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 18 फरवरी को शेरपुर में प्रस्तावित सम्मान समारोह की तैयारी को लेकर बैठक हुई। इसमें उन्होंने अपने मंत्री मंडल के सहयोगियों को चेतावनी देते हुए कहा, कि मंत्री अपने प्रभाव वाले जिले में जायें। जनता और कार्यकर्ताओं से संपर्क बनाने के लिए कम से कम एक गांव में रात बिताएं। ऐसा न करने वाले मंत्रियों को मंत्री मण्डल से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। इससे पहले भी उन्होंने कृषि केबिनेट में 6 माह पहले मंत्रियों से कहा था, कि वे अपने प्रभार वाले जिले में कम से कम तीन दिन रहें, किन्तु उनके इस आदेश का पालन नहीं हुआ याद रहे, कि इस बेपरवाही के चलते पिछले दिनों चाचौड़ा की विधायक ममता मीणा ने अपने जिले के प्रभारी मंत्री गोपाल भार्गव को आड़े हाथों ले लिया था।
मोघे का होगा पुनर्वास
भाजपा के ताकतवर प्रदेश संगठन महामंत्री रहे कृष्ण मुरारी मोघे का जल्द ही पुनर्वास होगा। इंदौर नगर निगम के महापौर पद से विदा होने के बाद मोघे के पास इस समय कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं है। खबर है, कि उन्हें जल्द ही गृह निर्माण मण्डल का अध्यक्ष बनाकर लाल बत्ती से नवाजा जाएगा। मोघे का महापौर कार्यकाल पूरा होने के बाद इंदौर नगर निगम चुनाव में भाजपा ने विधायक मालनी गौड़ को महापौर उम्मीदवार बनाया था, वे चुनाव जीत भी गईं। जब माहापौर पद के लिए मालिनी का नाम तय किया जा रहा था तब मोघे चाहते थे कि संगठन यह फैसला करे कि मालिनी विधायकी छोड़ें और उनकी सीट से उन्हें (मोघे को) चुनाव लड़ाया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मालिनी महापौर के साथ-साथ विधायक भी हैं। ऐसे में मोघे के पुनर्वास के लिए सरकार ने उन्हें लाल बत्ती देने का फैसला कर लिया गया है। अब देखना यह है, कि उन्हें इसके लिए कितना इंतजार करना पड़ता है।
मंत्रियों की धड़कनें बढ़ीं
उच्च न्यायालय ने लोकायुक्त को निर्देश दिए हैं, कि मंत्रियों और अफसरों के खिलाफ चल रही जांच समय सीमा में पूरी की जाए। इस निर्देश के बाद शिवराज मंत्रिमंडल के उन दर्जन भर मंत्रियों की धड़कनें कुछ ज्यादा बढ़ गई हैं, जिनके खिलाफ लोकायुक्त में शिकायतें लंबित हैं। ऐसे मंत्रियों की धड़कनें बढऩे की एक वजह संभावित मंत्रिमंडल विस्तार भी है, क्योंकि इससे पहले यदि लोकायुक्त उनके खिलाफ जांच में तेजी लाता है और वे दोषी पाए जाते हैं, तो मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान यह उनके लिए एक बड़ी मुसीबत हो सकती है। संभव है कि इस आधार पर ही कुछ मंत्रियों की छंटनी कर दी जाए। वैसे, लोकायुक्त राज्य के ढेड़ दर्जन से अधिक मंत्रियों के खिलाफ शिकायतों के मामले में आधा दर्जन मंत्रियों को क्लीनचिट दे चुका है। यह कुछ मंत्रियों के लिए राहत हो सकती है, जरूरी नहीं है कि अन्य मंत्रियों को वह क्लीनचिट दे दे। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठाती रही है। ऐसे में वह भी एक बार फिर मुखर होकर जांच के दायरे में आए मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल सकती है। ऐसे में लोकायुक्त की जद में आए मंत्रियों की धड़कनें तेज होना लाजमी हैं।
धार को अयोध्या बनाने की तैयारी
कतिपय कट्टरपंथी धार्मिक संगठन धार को अयोध्या बनाने की तैयारी में हैं। 12 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन भोजशाला में बसंत पूजा और जुमे की नमाज को लेकर अभी से तनाव की स्थिति बनी हुई है। पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में सुबह- शाम पूजा और दोपहर में नमाज की इजाजत दी है। इधर प्रशासन भी मुस्तैद है। किसी प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए व्यापक स्तर पर तैयारी और सुरक्षा के बंदोबस्त किए गए हैं। इंदौर के कमिश्नर और आई.जी. स्वयं वहां मौजूद रहकर मैदानी अफसरों के साथ अभी से स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। धार में सक्रिय कतिपय हिन्दू संगठन एक ही दिन पूजा और नमाज के लिए तैयार नहीं हैं। तनाव को कम करने के लिए प्रशासन द्वारा समाज के प्रबुद्ध वर्ग को साथ लेकर सद्भावना रैलियां की जा रही हैं और कतिपय हिन्दू संगठन इसका भी विरोध कर अपनी मंशा को स्पष्ट कर रहे हैं। भोजशाला विवाद में पिछले कुछ वर्षों से कई जानें जा चुकी हैं। 2013 में पूजा के दौरान भगदड़, तोड़-फोड़, पथराव और विपरीत समुदाय के लोगों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर कई दिनों तक शहर को अशांत किया जा चुका है। इस बार प्रशासन पहले से मुस्तैद है। भोजशाला के बाहर कई कि.मी. तक बेरीकेटिंग की गई है। भोजशाला के आसपास के घरों को 20 फीट ऊंचे पतरे लगाकर ढंक दिया गया है। कुछ गलियों को पक्की दीवार बनाकर बंद कर दिया गया है। चप्पे- चप्पे पर पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात करने की योजना है। शहर में सद्भावना का संदेश देने के लिए किए जा रहे प्रयासों में स्थानीय भाजपा नेताओं और कट्टरवादी हिन्दू संगठनों का समर्थन नहीं मिल पा रहा है, इससे प्रशासन चिंतित है।
अशांत देवास, जिम्मेदार कौन?
प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी से सटे जिला मुख्यालय देवास पिछले एक माह से अशांत है। बात-ही-बात में शहर में तनाव की स्थिति निर्मित हो जाती है, बाजार बंद हो जाते हैं और धार्मिक संगठन शक्ति प्रदर्शन के लिए उतारू हो जाते हैं। शहर की शांतिप्रिय जनता के साथ ही प्रशासन के नाक में दम कर रखा है तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कतिपय हिन्दू संगठन हैं, जिन्हें राजनैतिक संरक्षण मिला हुआ है। घटनाओं की शुरूआत लगभग 1 माह पहले हुई जब कुछ हिन्दू संगठनों ने प्रशासन की अनुमति के बिना ही शौर्य यात्रा निकाली। इसके बाद टोंकखुर्द इलाके में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष अनवर मेव अन्ना अपने भाईयों के साथ मिलकर गौवंश वध करने की घटना ने आग में घी का काम किय। शिकायत के बाद पहुंची पुलिस ने धरना स्थल से गौमांस सहित 10 लोगों को रंगे हाथों पकड़ लिया। बाद में भाजपा ने अनवर को पार्टी से निलंबित भी किया। इस घटना के बाद कतिपय हिन्दू संगठन उत्तेजित हो गए, तोड़-फोड़, आगजनी और पथराव की घटनाएं होने लगीं। इसी बीच तनाव के दौरान एक घटना में एक युवक की मौत हो गई। तब से बात-बे-बात तनाव की स्थिति बन जाती है और देवास अशांत हो जाता है। जाहिर है इस सबके लिए प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और उनके अनुवांशिक संगठन ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। गौ-वध भी भाजपा के कार्यकर्ता द्वारा किया गया है चाहे वह जानबूझकर किया गया हो या सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना उद्देश्य न रहा हो।
अब खाली नहीं रहेंगे 70 हजार पंचों के पद
पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद से ही पिछले 20 वर्षों से इसकी सबसे बड़ी कमी रही है प्रदेश भर के 30 प्रतिशत पंचों का पद खाली रहना। इन पदों पर चुनाव के लिये हर छ: महीने में उपचुनाव होते हैं किन्तु ग्रामीणों का रुझान पंच बनने में नहीं रहता। प्रदेश भर में लगभग 2 लाख 80 हजार पंच के पद हंै जिनमें 70 हजार पद हमेशा रिक्त ही रह जाते हंै। त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की इस बड़ी कमी को दूर करने का कभी भी प्रयास नहीं होता। यह भी देखा गया है, कि पंच बनने के बाद गरीबी रेखा के कार्ड स्वत: निलंबित हो जाते हैं। ऐसी दशा में राशन से लेकर हितग्राही मूलक योजनाओं की सुविधा से निर्वाचित पंच वंचित हो जाते हैं। पंचायत प्रतिनिधियों से चर्चा के बाद सरकार ने तय किया है, कि पंच बनने के बाद उनके बी.पी.एल कार्ड निलंबित नहीं होंगे और उन्हें पूर्ववत इसका लाभ मिलेगा। पंचों के मानदेय बढ़ाने की ओर सरकार का ध्यान नहीं गया है। वर्तमान में पंचों में मात्र सौ रुपए मासिक भत्ता मिलता है। पंचायत प्रतिनिधि की मांग के अनुरूप यदि पंचों को 5 सौ रुपए मासिक मानदेय मिले तो पंचों के खाली पदों को भरा जा सकता है। मानदेय के लालच में ग्रामीण पंच बनने में रुचि दिखा सकते हैं, किन्तु पंचायत प्रतिनिधियों से सरकार की चर्चा से इस तथ्य की ओर ध्यान नहीं दिया गया।
हिम्मत नहीं जुटा पाई कांग्रेस
किसी और चुनाव में हार से कांग्रेस को भले ही आघात न लगा है, किन्तु राजधानी के सबसे नजदीकी जिला मुख्यालय सीहोर में नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस के लगभग सफाए को कांग्रेस के जिम्मेदार नेता पचा नहीं पा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदार कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी और भीतरघात को माना गया। इस साल के शुरूआत में पार्टी ने संकेत दिया था, कि भीतरघात की प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर कम से कम दो दर्जन स्थानीय नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। एक माह इंतजार करने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस की कोई कार्रवाई सामने नहीं आई। कांग्रेस में बढ़ते अनुशासनहीनता के बावजूद पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। यहां तक कि प्रदेश कांग्रेस ने अपने अनुशासन समिति का पुर्नगठन तक नहीं किया है। ऐसे में बढ़ती अनुशासनहीनता पर लगाम कैसे लग पाएगी- यह एक बड़ा सवाल है।
मैहर में अटल की वापसी
भाजपा के चुनावी पोस्टर बैनर में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की आश्चर्यजनक वापसी हुई है। मैहर में कई पोस्टर ऐसे लगे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह नदारद हैं किन्तु अटल की तस्वीर के साथ ''हार में न जीत मेंÓÓ कविता को स्थान दिया गया है। इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। कांग्रेस का मानना है, कि चुनाव के पहले दिन से ही मैहर चुनाव में भाजपा हार मान चुकी है। चुनाव प्रचार में लगे उनके कार्यकर्ता कांग्रेस की संभावित जीत से भयभीत हो चुके हैं। इसीलिए 'किंचित नहीं भयभीत मैÓ के नारे लगाने के लिए मजबूर हैं। यह भी माना जा रहा है, कि लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली विधानसभा में भाजपा की करारी हार, बिहार चुनाव में मोदी- शाह के पूरे जोर लगाने के बावजूद भी महागठबंधन से हार,म.प्र. के रतलाम- झाबुआ में अपनी सीट गंवाने के बाद से पार्टी में मैदानी स्तर पर मोदी- शाह से मोह भंग हो रहा है। इसी की एक बानगी मैहर चुनाव के प्रचार सामग्री में देखने को मिल रही है।
भाजपा ने बदली रणनीति
बिहार विधानसभा और रतलाम-झाबुआ लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने तय किया था, कि मैहर विधानसभा उपचुनाव स्थानीय कार्यकर्ताओं के बल पर लड़ा जाएगा। अभी तक इसका पालन भी किया जा रहा था और क्षेत्र से बाहर के नेता और कार्यकर्ताओं को मैहर में कोई जिम्मेदारी नहीं दी जा रही थी। इस बीच शनिवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के बीच हुए गहन विचार-विमर्श और मैहर चुनाव प्रचार की समीक्षा के बाद प्रदेश सरकार के मंत्रियों को मैहर भेजने का निर्णय लिया गया है। अब तक जनसंपर्क मंत्री राजेन्द्र शुक्ल, राजस्व मंत्री रामपाल सिंह, सांसद गणेश सिंह और पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष प्रदीप पटेल ही यहां अलग-अलग मोर्चा संभाले हुए थे, जबकि संगठन महामंत्री अरविंद मेनन जमावट कर रहे थे। अब 10, 11 व 12 फरवरी को न सिर्फ मुख्यमंत्री बल्कि उनके मंत्रिमंडल के सभी सदस्य मैहर पहुंचकर चुनाव प्रचार के समापन को अंतिम रूप देंगे।
नहीं मिली बेल, विधायक गए जेल
छात्रावास अधीक्षिका से दुष्कर्म के मामले में बड़वानी के कांग्रेस विधायक रमेश पटेल को जमानत (बेल) नहीं मिली और न्यायालय ने उन्हें 24 फरवरी तक के लिए जेल भेज दिया। वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तीन अन्य सह आरोपी कांग्रेस नेता के साथ 2 फरवरी को बड़वानी के विशेष न्यायालय में पेश हुए थे। घटना 2010 की है जब विधायक रमेश पटेल जिला पंचायत के अध्यक्ष थे। उन्होंने अपने तीन साथियों के साथ मिलकर बड़वानी के छात्रावास अधीक्षिका के साथ सामूहिक दुष्कृत्य किया। अधीक्षिका की शिकायत पर प्रकरण दर्ज हुआ, न्यायालय में सुनवाई हुई और फरवरी 2011 में विशेष न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया। इस बीच वे 2013 में कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े और जीते भी। इसके बाद शासन ने विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए इंदौर उच्च न्यायालय के खण्डपीठ में अपील की विधायक की ओर से अग्रिम जमानत की अर्जी सर्वोच्च न्यायालय तक दी। किन्तु जमानत नहीं मिली तो बड़वानी की विशेष अदालत में पेश होकर जमानत लेने का प्रयास किया। यहां भी उन्हें असफलता मिली और वे जेल चले गए। अब उनके अधिवक्ता पी.के. मुकाती जमानत के लिए हाईकोर्ट में जोर लगा रहे हैं, किन्तु अगली पेशी 24 फरवरी के पहले ऐसा हो पाने की संभावना से विधि विशेषज्ञ इंकार कर रहे हैं।
उमा- दिग्विजय में समझौता
2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के कापर ब्राण्ड नेत्री उमा भारती ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को बंटाधार से लेकर चोरों का सरदार तक कह दिया था। इससे आहत दिग्विजय सिंह ने उमा भारती पर मानहानि का दावा ठोका था। जिसकी सुनवाई अभी भोपाल की निचली अदालत में चल रही है। इसमें श्री सिंह के बयान दर्ज हो चुके हैं। किन्तु सुश्री भारती की सफाई बयान होना बाकी है। इस बीच प्रदेश के दोनों शीर्ष नेताओं में सुलह होने की बात सामने आने लगी है। ऐसा न्यायालय में दिए गए समझौता आवेदन को लेकर माना जा रहा है। इसे लोक अदालत में लाने के लिए न्यायालय ने सुलह समिति के पास भेजा है। जहां से समझौते के बिन्दु तय होकर दोनों के बीच आगामी दिनों में सुलह- समझौता होना तय माना जा रहा है।
ज़ाकिर अली/खिलावन चंद्राकर
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संभवत: यही कारण है, कि कर्मचारी संगठनों के आंदोलनों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। दो माह पूर्व हुए पटवारियों के राज्य व्यापी आंदोलन को किसी तरह सरकार ने काबू में कर लिया, किन्तु इसके लिए मंत्रियों तक को काफी पापड़ बेलने पड़े। अंतत: राजस्व मंत्री रामपाल सिंह और वित्तमंत्री जयंत मलैया की मध्यस्थता में समझौता हुआ और पटवारी बस्ता वापस लेकर काम पर लौटे तब कहीं जाकर फसल क्षति का मुआवजा वितरण हो पाया। एक अनुमान के अनुसार यदि पटवारियों की मांगें मान ली जातीं तो सरकार पर लगभग पौने दो सौ करोड़ रुपए का वार्षिक भार बढ़ जाता। यही हाल पंचायत प्रतिनिधियों के आंदोलन को लेकर बनता जा रहा था। उनकी कई मांगें आर्थिक थीं जिसे पूरा करना सरकार के लिए संभव ही नहीं था। इसके बावजूद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार चौहान, महामंत्री अरविंद भदौरिया और मुख्यमंत्री के सचिव इकबाल सिंह बैस की मध्यस्थता में बीच का रास्ता निकल ही गया। दूसरी तरफ अध्यापक वर्ग, दैनिक वेतन भोगी, कई विभागों के संविदा कर्मचारी, संविदा शिक्षक, पंचायत सचिवों सहित अन्य संगठनों के लंबित मांगों को लटकाकर रखा जा रहा है।
सिर मुंडाते ही ओले पड़े
पहले राज्य सरकार ने नई आबकारी नीति को हरी झंडी दे दी, बाद में व्यापक विरोध का सामना करते हुए इसमें से 10 लाख के आयकर प्रदाता को सौ बोतल शराब रखने का परमिट देने के प्रावधान को हटा दिया गया। इसके अनुसार नए वित्तीय वर्ष में शराब की कोई नई दुकान नहीं खोली जाएगी साथ ही घाटे में चल रहे देशी शराब दुकान को अंग्रेजी शराब बेचने की अनुमति भी नहीं दी जाएगी। संभवत: इस निर्णय से होने वाली राजस्व कमी को पूरा करने की नियत से सरकार ने जल्दबाजी में एक नया फैसला लिया था। इसके तहत 10 लाख से अधिक आयकर दाता को अपने घर में सौ बोतल महंगी विदेशी शराब रखने की अनुमति दी जाएगी। इसके लिए बकायदा लाइसेंस जारी किया जाएगा। इस निर्णय की सरकार की बाहर और भीतर जमकर आलोचना हुई। वित्तमंत्री जयंत मलैया ने दबे स्वर में इसका विरोध किया। उच्च शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी अपनी ही सरकार के खिलाफ जमकर मुखर हो गए। ऐसे में सरकार के लिए सिर मुंडाते ही ओले पड़े की कहावत चरितार्थ हो गई। विरोध का मुख्य कारण माना जा रहा था, कि इससे प्रदेश में अवैध शराब की बिक्री बढ़ेगी और अभी तक लुक- छिप कर अपने घरों में अघोषित बार चलाने वालों को वैधानिक अधिकार मिल जाएगा इससे शराबखोरी की प्रवृत्ति बढ़ेगी। सरकार इस सभी हालातों के मद्दे नजर अपने फैसले को बदलने पर मजबूर हो गई। सरकार इसी तरह पिछले दो वर्षों से नया शराब कारखाना खोलने की अनुमति को टालती रही है, किन्तु सरकार की चूक के कारण इस निर्णय को कोई कानूनी जामा नहीं पहनाया जा सका। ऐसे में नए शराब कारखाने खोलने का लाइसेंस देने के लिए सरकार मजबूर है।
मुख्यमंत्री की दहाड़
समझा जा रहा है, कि जब से भाजपा पार्टी हाईकमान ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सरकार के काम-काज से लेकर निगम मंडल की नियुक्ति और मंत्री मण्डल के संभावित फेरबदल के लिए 'फ्री हैण्डÓ किया है, तभी से मुख्यमंत्री की दहाड़ सुनाई देने लगी है। अमूमन शांत रहने वाले श्री चौहान में इस बड़े परिवर्तन का नजारा तब देखने को मिला, जब उन्होंने पिछले माह दो किस्तों में 24 निगम-मंडल और आयोगों के अध्यक्ष, उपाध्यक्षों की नियुक्ति कर डाली। इन नियुक्तियों में उन्होंने अपने नजदीकी नेताओं का खूब ख्याल रखा, जबकि पार्टी के अन्य क्षत्रपों में संगठन महामंत्री अरविंद मेनन को छोड़ उन्होंने किसी की नहीं चलने दी। उनकी दहाड़ इसी सप्ताह पुन: सुनाई दी जब पार्टी के प्रदेश दफ्तर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 18 फरवरी को शेरपुर में प्रस्तावित सम्मान समारोह की तैयारी को लेकर बैठक हुई। इसमें उन्होंने अपने मंत्री मंडल के सहयोगियों को चेतावनी देते हुए कहा, कि मंत्री अपने प्रभाव वाले जिले में जायें। जनता और कार्यकर्ताओं से संपर्क बनाने के लिए कम से कम एक गांव में रात बिताएं। ऐसा न करने वाले मंत्रियों को मंत्री मण्डल से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। इससे पहले भी उन्होंने कृषि केबिनेट में 6 माह पहले मंत्रियों से कहा था, कि वे अपने प्रभार वाले जिले में कम से कम तीन दिन रहें, किन्तु उनके इस आदेश का पालन नहीं हुआ याद रहे, कि इस बेपरवाही के चलते पिछले दिनों चाचौड़ा की विधायक ममता मीणा ने अपने जिले के प्रभारी मंत्री गोपाल भार्गव को आड़े हाथों ले लिया था।
मोघे का होगा पुनर्वास
भाजपा के ताकतवर प्रदेश संगठन महामंत्री रहे कृष्ण मुरारी मोघे का जल्द ही पुनर्वास होगा। इंदौर नगर निगम के महापौर पद से विदा होने के बाद मोघे के पास इस समय कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं है। खबर है, कि उन्हें जल्द ही गृह निर्माण मण्डल का अध्यक्ष बनाकर लाल बत्ती से नवाजा जाएगा। मोघे का महापौर कार्यकाल पूरा होने के बाद इंदौर नगर निगम चुनाव में भाजपा ने विधायक मालनी गौड़ को महापौर उम्मीदवार बनाया था, वे चुनाव जीत भी गईं। जब माहापौर पद के लिए मालिनी का नाम तय किया जा रहा था तब मोघे चाहते थे कि संगठन यह फैसला करे कि मालिनी विधायकी छोड़ें और उनकी सीट से उन्हें (मोघे को) चुनाव लड़ाया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मालिनी महापौर के साथ-साथ विधायक भी हैं। ऐसे में मोघे के पुनर्वास के लिए सरकार ने उन्हें लाल बत्ती देने का फैसला कर लिया गया है। अब देखना यह है, कि उन्हें इसके लिए कितना इंतजार करना पड़ता है।
मंत्रियों की धड़कनें बढ़ीं
उच्च न्यायालय ने लोकायुक्त को निर्देश दिए हैं, कि मंत्रियों और अफसरों के खिलाफ चल रही जांच समय सीमा में पूरी की जाए। इस निर्देश के बाद शिवराज मंत्रिमंडल के उन दर्जन भर मंत्रियों की धड़कनें कुछ ज्यादा बढ़ गई हैं, जिनके खिलाफ लोकायुक्त में शिकायतें लंबित हैं। ऐसे मंत्रियों की धड़कनें बढऩे की एक वजह संभावित मंत्रिमंडल विस्तार भी है, क्योंकि इससे पहले यदि लोकायुक्त उनके खिलाफ जांच में तेजी लाता है और वे दोषी पाए जाते हैं, तो मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान यह उनके लिए एक बड़ी मुसीबत हो सकती है। संभव है कि इस आधार पर ही कुछ मंत्रियों की छंटनी कर दी जाए। वैसे, लोकायुक्त राज्य के ढेड़ दर्जन से अधिक मंत्रियों के खिलाफ शिकायतों के मामले में आधा दर्जन मंत्रियों को क्लीनचिट दे चुका है। यह कुछ मंत्रियों के लिए राहत हो सकती है, जरूरी नहीं है कि अन्य मंत्रियों को वह क्लीनचिट दे दे। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठाती रही है। ऐसे में वह भी एक बार फिर मुखर होकर जांच के दायरे में आए मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल सकती है। ऐसे में लोकायुक्त की जद में आए मंत्रियों की धड़कनें तेज होना लाजमी हैं।
धार को अयोध्या बनाने की तैयारी
कतिपय कट्टरपंथी धार्मिक संगठन धार को अयोध्या बनाने की तैयारी में हैं। 12 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन भोजशाला में बसंत पूजा और जुमे की नमाज को लेकर अभी से तनाव की स्थिति बनी हुई है। पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में सुबह- शाम पूजा और दोपहर में नमाज की इजाजत दी है। इधर प्रशासन भी मुस्तैद है। किसी प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए व्यापक स्तर पर तैयारी और सुरक्षा के बंदोबस्त किए गए हैं। इंदौर के कमिश्नर और आई.जी. स्वयं वहां मौजूद रहकर मैदानी अफसरों के साथ अभी से स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। धार में सक्रिय कतिपय हिन्दू संगठन एक ही दिन पूजा और नमाज के लिए तैयार नहीं हैं। तनाव को कम करने के लिए प्रशासन द्वारा समाज के प्रबुद्ध वर्ग को साथ लेकर सद्भावना रैलियां की जा रही हैं और कतिपय हिन्दू संगठन इसका भी विरोध कर अपनी मंशा को स्पष्ट कर रहे हैं। भोजशाला विवाद में पिछले कुछ वर्षों से कई जानें जा चुकी हैं। 2013 में पूजा के दौरान भगदड़, तोड़-फोड़, पथराव और विपरीत समुदाय के लोगों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर कई दिनों तक शहर को अशांत किया जा चुका है। इस बार प्रशासन पहले से मुस्तैद है। भोजशाला के बाहर कई कि.मी. तक बेरीकेटिंग की गई है। भोजशाला के आसपास के घरों को 20 फीट ऊंचे पतरे लगाकर ढंक दिया गया है। कुछ गलियों को पक्की दीवार बनाकर बंद कर दिया गया है। चप्पे- चप्पे पर पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात करने की योजना है। शहर में सद्भावना का संदेश देने के लिए किए जा रहे प्रयासों में स्थानीय भाजपा नेताओं और कट्टरवादी हिन्दू संगठनों का समर्थन नहीं मिल पा रहा है, इससे प्रशासन चिंतित है।
अशांत देवास, जिम्मेदार कौन?
प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी से सटे जिला मुख्यालय देवास पिछले एक माह से अशांत है। बात-ही-बात में शहर में तनाव की स्थिति निर्मित हो जाती है, बाजार बंद हो जाते हैं और धार्मिक संगठन शक्ति प्रदर्शन के लिए उतारू हो जाते हैं। शहर की शांतिप्रिय जनता के साथ ही प्रशासन के नाक में दम कर रखा है तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कतिपय हिन्दू संगठन हैं, जिन्हें राजनैतिक संरक्षण मिला हुआ है। घटनाओं की शुरूआत लगभग 1 माह पहले हुई जब कुछ हिन्दू संगठनों ने प्रशासन की अनुमति के बिना ही शौर्य यात्रा निकाली। इसके बाद टोंकखुर्द इलाके में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष अनवर मेव अन्ना अपने भाईयों के साथ मिलकर गौवंश वध करने की घटना ने आग में घी का काम किय। शिकायत के बाद पहुंची पुलिस ने धरना स्थल से गौमांस सहित 10 लोगों को रंगे हाथों पकड़ लिया। बाद में भाजपा ने अनवर को पार्टी से निलंबित भी किया। इस घटना के बाद कतिपय हिन्दू संगठन उत्तेजित हो गए, तोड़-फोड़, आगजनी और पथराव की घटनाएं होने लगीं। इसी बीच तनाव के दौरान एक घटना में एक युवक की मौत हो गई। तब से बात-बे-बात तनाव की स्थिति बन जाती है और देवास अशांत हो जाता है। जाहिर है इस सबके लिए प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और उनके अनुवांशिक संगठन ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। गौ-वध भी भाजपा के कार्यकर्ता द्वारा किया गया है चाहे वह जानबूझकर किया गया हो या सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना उद्देश्य न रहा हो।
अब खाली नहीं रहेंगे 70 हजार पंचों के पद
पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद से ही पिछले 20 वर्षों से इसकी सबसे बड़ी कमी रही है प्रदेश भर के 30 प्रतिशत पंचों का पद खाली रहना। इन पदों पर चुनाव के लिये हर छ: महीने में उपचुनाव होते हैं किन्तु ग्रामीणों का रुझान पंच बनने में नहीं रहता। प्रदेश भर में लगभग 2 लाख 80 हजार पंच के पद हंै जिनमें 70 हजार पद हमेशा रिक्त ही रह जाते हंै। त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की इस बड़ी कमी को दूर करने का कभी भी प्रयास नहीं होता। यह भी देखा गया है, कि पंच बनने के बाद गरीबी रेखा के कार्ड स्वत: निलंबित हो जाते हैं। ऐसी दशा में राशन से लेकर हितग्राही मूलक योजनाओं की सुविधा से निर्वाचित पंच वंचित हो जाते हैं। पंचायत प्रतिनिधियों से चर्चा के बाद सरकार ने तय किया है, कि पंच बनने के बाद उनके बी.पी.एल कार्ड निलंबित नहीं होंगे और उन्हें पूर्ववत इसका लाभ मिलेगा। पंचों के मानदेय बढ़ाने की ओर सरकार का ध्यान नहीं गया है। वर्तमान में पंचों में मात्र सौ रुपए मासिक भत्ता मिलता है। पंचायत प्रतिनिधि की मांग के अनुरूप यदि पंचों को 5 सौ रुपए मासिक मानदेय मिले तो पंचों के खाली पदों को भरा जा सकता है। मानदेय के लालच में ग्रामीण पंच बनने में रुचि दिखा सकते हैं, किन्तु पंचायत प्रतिनिधियों से सरकार की चर्चा से इस तथ्य की ओर ध्यान नहीं दिया गया।
हिम्मत नहीं जुटा पाई कांग्रेस
किसी और चुनाव में हार से कांग्रेस को भले ही आघात न लगा है, किन्तु राजधानी के सबसे नजदीकी जिला मुख्यालय सीहोर में नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस के लगभग सफाए को कांग्रेस के जिम्मेदार नेता पचा नहीं पा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदार कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी और भीतरघात को माना गया। इस साल के शुरूआत में पार्टी ने संकेत दिया था, कि भीतरघात की प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर कम से कम दो दर्जन स्थानीय नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। एक माह इंतजार करने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस की कोई कार्रवाई सामने नहीं आई। कांग्रेस में बढ़ते अनुशासनहीनता के बावजूद पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। यहां तक कि प्रदेश कांग्रेस ने अपने अनुशासन समिति का पुर्नगठन तक नहीं किया है। ऐसे में बढ़ती अनुशासनहीनता पर लगाम कैसे लग पाएगी- यह एक बड़ा सवाल है।
मैहर में अटल की वापसी
भाजपा के चुनावी पोस्टर बैनर में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की आश्चर्यजनक वापसी हुई है। मैहर में कई पोस्टर ऐसे लगे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह नदारद हैं किन्तु अटल की तस्वीर के साथ ''हार में न जीत मेंÓÓ कविता को स्थान दिया गया है। इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। कांग्रेस का मानना है, कि चुनाव के पहले दिन से ही मैहर चुनाव में भाजपा हार मान चुकी है। चुनाव प्रचार में लगे उनके कार्यकर्ता कांग्रेस की संभावित जीत से भयभीत हो चुके हैं। इसीलिए 'किंचित नहीं भयभीत मैÓ के नारे लगाने के लिए मजबूर हैं। यह भी माना जा रहा है, कि लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद दिल्ली विधानसभा में भाजपा की करारी हार, बिहार चुनाव में मोदी- शाह के पूरे जोर लगाने के बावजूद भी महागठबंधन से हार,म.प्र. के रतलाम- झाबुआ में अपनी सीट गंवाने के बाद से पार्टी में मैदानी स्तर पर मोदी- शाह से मोह भंग हो रहा है। इसी की एक बानगी मैहर चुनाव के प्रचार सामग्री में देखने को मिल रही है।
भाजपा ने बदली रणनीति
बिहार विधानसभा और रतलाम-झाबुआ लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने तय किया था, कि मैहर विधानसभा उपचुनाव स्थानीय कार्यकर्ताओं के बल पर लड़ा जाएगा। अभी तक इसका पालन भी किया जा रहा था और क्षेत्र से बाहर के नेता और कार्यकर्ताओं को मैहर में कोई जिम्मेदारी नहीं दी जा रही थी। इस बीच शनिवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के बीच हुए गहन विचार-विमर्श और मैहर चुनाव प्रचार की समीक्षा के बाद प्रदेश सरकार के मंत्रियों को मैहर भेजने का निर्णय लिया गया है। अब तक जनसंपर्क मंत्री राजेन्द्र शुक्ल, राजस्व मंत्री रामपाल सिंह, सांसद गणेश सिंह और पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष प्रदीप पटेल ही यहां अलग-अलग मोर्चा संभाले हुए थे, जबकि संगठन महामंत्री अरविंद मेनन जमावट कर रहे थे। अब 10, 11 व 12 फरवरी को न सिर्फ मुख्यमंत्री बल्कि उनके मंत्रिमंडल के सभी सदस्य मैहर पहुंचकर चुनाव प्रचार के समापन को अंतिम रूप देंगे।
नहीं मिली बेल, विधायक गए जेल
छात्रावास अधीक्षिका से दुष्कर्म के मामले में बड़वानी के कांग्रेस विधायक रमेश पटेल को जमानत (बेल) नहीं मिली और न्यायालय ने उन्हें 24 फरवरी तक के लिए जेल भेज दिया। वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तीन अन्य सह आरोपी कांग्रेस नेता के साथ 2 फरवरी को बड़वानी के विशेष न्यायालय में पेश हुए थे। घटना 2010 की है जब विधायक रमेश पटेल जिला पंचायत के अध्यक्ष थे। उन्होंने अपने तीन साथियों के साथ मिलकर बड़वानी के छात्रावास अधीक्षिका के साथ सामूहिक दुष्कृत्य किया। अधीक्षिका की शिकायत पर प्रकरण दर्ज हुआ, न्यायालय में सुनवाई हुई और फरवरी 2011 में विशेष न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया। इस बीच वे 2013 में कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े और जीते भी। इसके बाद शासन ने विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए इंदौर उच्च न्यायालय के खण्डपीठ में अपील की विधायक की ओर से अग्रिम जमानत की अर्जी सर्वोच्च न्यायालय तक दी। किन्तु जमानत नहीं मिली तो बड़वानी की विशेष अदालत में पेश होकर जमानत लेने का प्रयास किया। यहां भी उन्हें असफलता मिली और वे जेल चले गए। अब उनके अधिवक्ता पी.के. मुकाती जमानत के लिए हाईकोर्ट में जोर लगा रहे हैं, किन्तु अगली पेशी 24 फरवरी के पहले ऐसा हो पाने की संभावना से विधि विशेषज्ञ इंकार कर रहे हैं।
उमा- दिग्विजय में समझौता
2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के कापर ब्राण्ड नेत्री उमा भारती ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को बंटाधार से लेकर चोरों का सरदार तक कह दिया था। इससे आहत दिग्विजय सिंह ने उमा भारती पर मानहानि का दावा ठोका था। जिसकी सुनवाई अभी भोपाल की निचली अदालत में चल रही है। इसमें श्री सिंह के बयान दर्ज हो चुके हैं। किन्तु सुश्री भारती की सफाई बयान होना बाकी है। इस बीच प्रदेश के दोनों शीर्ष नेताओं में सुलह होने की बात सामने आने लगी है। ऐसा न्यायालय में दिए गए समझौता आवेदन को लेकर माना जा रहा है। इसे लोक अदालत में लाने के लिए न्यायालय ने सुलह समिति के पास भेजा है। जहां से समझौते के बिन्दु तय होकर दोनों के बीच आगामी दिनों में सुलह- समझौता होना तय माना जा रहा है।
ज़ाकिर अली/खिलावन चंद्राकर
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