भोपाल। मध्यप्रदेश में प्रशासनिक पदों पर बैठे अधिकारी और कर्मचारी केवल आम जनता का ही नहीं बल्कि साथी कर्मचारियों को भी समान रूप से तंग करते हैं। सरकार ने संविदा शिक्षक का पद वर्षो पहले समाप्त कर दिया लेकिन अनुकंपा नियम 2014 के तहत प्रावधान आज भी जिंदा है। नतीजा, अनुकंपा नियुक्ति बंद कर दी गई है।
मध्य
प्रदेश के धार में रहने वाले एक पीड़ित अंशुल जैन ने बताया कि वह और उसके
जैसे सभी उम्मीदवार सरकार की इस गड़बड़ी के कारण दर-दर की ठोकरें खाने के
लिए मजबूर हैं। अंशुल ने बताया कि उसके माता-पिता की मृत्यु कोरोनावायरस के
कारण नहीं हुई परंतु माता-पिता की मृत्यु के बाद उसे भी वही संघर्ष करना
पड़ रहा है जो कोरोनावायरस के कारण लावारिस हुए बच्चों को करना पड़ रहा
है।
अंशुल
ने बताया कि उसके पिता जनजातीय कार्य विभाग में धार जिले में शिक्षक के पद
पर पदस्थ थे। अनुकंपा नियुक्ति के लिए वह सभी निर्धारित योग्यताएं (B.ed
और CTET) धारित करता है लेकिन उसे अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा रही क्योंकि
मध्यप्रदेश में अनुकंपा नियुक्ति नियम 2014 के तहत संविदा शिक्षक के पद पर
अनुकंपा नियुक्ति दिए जाने का प्रावधान है जबकि सरकार द्वारा संविदा
शिक्षक का पद समाप्त कर दिया है और शिक्षक भर्ती नियम 2018 के तहत प्राथमिक
एवं माध्यमिक शिक्षकों की भर्ती की जा रही है।
सरकारी
अधिकारियों का दोहरा चरित्र देखिए। जो काम इंटर ऑफिस मेमो के जरिए पूरा हो
जाना चाहिए था। ना कि उसे रोक कर रखा गया है बल्कि उसके नाम पर अनुकंपा
नियुक्ति की पूरी रोक दी गई है। लगता है जनजातीय कार्य विभाग के अधिकारियों
को हाईकोर्ट की लत लग गई है। जब तक हाईकोर्ट आदेश नहीं देगा, प्रमुख सचिव
को तलब नहीं कर लेगा तब तक अपने आप किए जाने वाला या छोटा सा परिवर्तन भी
नहीं किया जाएगा।