ग्वालियर। नईदुनिया प्रतिनिधि
गरीब बच्चे भी शहर के महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़कर अपने सपने साकार कर सकें। इसके लिए शासन ने जोर शोर से शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू किया था। लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव व प्रशासनिक उदासीनता इस महात्वाकांक्षी योजना को पलीता लगाने का काम कर रही है। क्योंकि जिले की 25% सीटें तो क्या 10% सीटें भी आरटीई के तहत नहीं भर रही हैं।
ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि अधिकारियों की दलीलें, उपलब्ध दस्तावेज व आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं।
जिला परियोजना समन्वयक विजय दीक्षित ने बताया कि ग्वालियर जिले में 1110 प्राइवेट स्कूल हैं, जो आरटीई के दायरे में आते हैं। इन स्कूलों की कुल सीटों में से 25 फीसदी सीटें आरटीई के तहत आरक्षित हैं, जो कि 11 हजार के करीब हैं।
क्योंकि यह सीटें कुल सीटों की 25 फीसदी
हैं, इस लिहाज से स्कूलों की कुल सीट संख्या 44 हजार के करीब है। लेकिन जब
से आरटीई एक्ट लागू हुआ है, तब से प्राइवेट स्कूलों में इस कानून के तहत
एडमीशन का आंकड़ा 4 हजार के आसपास ही रहता है। जो कि स्कूलों की कुल सीटों
का 10% भी नहीं हैं।
इस असफलता का कारण जिले के शिक्षा अधिकारी आरटीई को लेकर जागरुकता का अभाव बता रहे हैं। जिसके लिए प्रचार प्रसार पर जोर देने की बात भी अधिकारियों द्वारा कही जा रही है। वहीं जानकार प्राइवेट स्कूलों व शिक्षा विभाग की मिली भगत होने के साथ ही आरटीई को भ्रष्टाचार का बड़ा जरिया करार दे रहे हैं।
-जिले में आरटीई के तहत अब तक लाभान्वित हुए बच्चों की संख्या
शैक्षणिक सत्र आरटीई में प्रवेषित बच्चों की संख्या
2011-12 4210
2012-13 4839
2013-14 5280
2014-15 4105
2015-16 4787
2016-17 2272
2017-18 3144
2018-19 3700
आरटीई के फेल होने के ये गिनाए कारण
-अभिभावक शहर के अतिप्रतिष्ठित स्कूलों का ही चयन करते हैं।
-आरटीई के नियमों में के मुताबिक आवेदन नहीं होते।
-कम प्रतिष्ठित स्कूलों की बजाय सरकारी स्कूल में ही पढ़ाना पसंद। किताबें, ड्रेस आदि भी मिल जाती हैं।
1110 में से 400 स्कूल ही करते हैं चयनित
अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए शहर के अतिप्रतिष्ठित स्कूलों का ही चयन करते हैं। लेकिन आरटीई के नियमों के तहत स्कूल जिस वार्ड में होता है वहां के बच्चों को एडमीशन में प्राथमिकता मिलती है। शहर के 1110 स्कूलों में से 300-400 स्कूलों का ही चयन अभिभावकों द्वारा किया जाता है। स्कूल चयनित करने के लिए अभिभावकों को बाध्य नहीं कर सकते। स्कूलों द्वारा सीटों की ऑनलाइन जानकारी दी जाती है। जिसका बीआरसी द्वारा सत्यापन किया जाता है।
संजीव शर्मा, प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी
-इस साल 10 हजार दाखिले कराएंगे
पिछले साल आरटीई के तहत दाखिले के लिए 6 हजार आवेदन आए थे। जिसमें से 3700 पात्र बच्चों का दाखिला हो सका। बाकी अपात्र पाए गए। कई तो ऐसे थे जिन्होंने पूरी प्रक्रिया हो जाने के बाद भी दाखिला नहीं लिया। इस साल विभिन्ना तरीकों से प्रचार प्रसार कर आरटीई को लेकर जागरुकता फैलाई जा रही है। हमारा लक्ष्य है कि 10 हजार बच्चे को आरटीई का लाभ मिले।
विजय दीक्षित, जिला परियोजना समन्वयक
मिली भगत, नहीं होता सीटों का भौतिक सत्यापन
प्राइवेट स्कूलों द्वारा सीटों की सही संख्या नहीं बताई जाती है। मिली भगत होने के कारण शिक्षा विभाग भी सीटों का भौतिक सत्यापन नहीं करता। स्कूलों से सीटों के संबंध में शपथ-पत्र लिया जाना चाहिए, जिससे कि झूटे साबित होने पर उनपर प्रकरण दर्ज कार्रवाई का जा सके। आरटीई के तहत आवेदन कम इसलिए आते हैं। क्योंकि प्रचार-प्रसार पर लिखने तक सीमित है। पिछले सत्रों को छोड़िए इस सत्र में असफलता के लिए चुनाव को बहाना बनाया जाएगा। कई स्कूल सुदूर इलाकों में बने हुए हैं। जिनके आसपास रिहायसी बस्ती ही नहीं हैं। इन स्कूलों की आरटीई की सीटें खाली छूट जाती हैं। अभिभावकों की मांग पर यहां भी सीटें उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
सुधीर सपरा, अध्यक्ष पेरेंट्स एसोसिएशन
गरीब बच्चे भी शहर के महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़कर अपने सपने साकार कर सकें। इसके लिए शासन ने जोर शोर से शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू किया था। लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव व प्रशासनिक उदासीनता इस महात्वाकांक्षी योजना को पलीता लगाने का काम कर रही है। क्योंकि जिले की 25% सीटें तो क्या 10% सीटें भी आरटीई के तहत नहीं भर रही हैं।
ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि अधिकारियों की दलीलें, उपलब्ध दस्तावेज व आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं।
जिला परियोजना समन्वयक विजय दीक्षित ने बताया कि ग्वालियर जिले में 1110 प्राइवेट स्कूल हैं, जो आरटीई के दायरे में आते हैं। इन स्कूलों की कुल सीटों में से 25 फीसदी सीटें आरटीई के तहत आरक्षित हैं, जो कि 11 हजार के करीब हैं।
इस असफलता का कारण जिले के शिक्षा अधिकारी आरटीई को लेकर जागरुकता का अभाव बता रहे हैं। जिसके लिए प्रचार प्रसार पर जोर देने की बात भी अधिकारियों द्वारा कही जा रही है। वहीं जानकार प्राइवेट स्कूलों व शिक्षा विभाग की मिली भगत होने के साथ ही आरटीई को भ्रष्टाचार का बड़ा जरिया करार दे रहे हैं।
शैक्षणिक सत्र आरटीई में प्रवेषित बच्चों की संख्या
2012-13 4839
2014-15 4105
2016-17 2272
2018-19 3700
-अभिभावक शहर के अतिप्रतिष्ठित स्कूलों का ही चयन करते हैं।
-कम प्रतिष्ठित स्कूलों की बजाय सरकारी स्कूल में ही पढ़ाना पसंद। किताबें, ड्रेस आदि भी मिल जाती हैं।
1110 में से 400 स्कूल ही करते हैं चयनित
अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए शहर के अतिप्रतिष्ठित स्कूलों का ही चयन करते हैं। लेकिन आरटीई के नियमों के तहत स्कूल जिस वार्ड में होता है वहां के बच्चों को एडमीशन में प्राथमिकता मिलती है। शहर के 1110 स्कूलों में से 300-400 स्कूलों का ही चयन अभिभावकों द्वारा किया जाता है। स्कूल चयनित करने के लिए अभिभावकों को बाध्य नहीं कर सकते। स्कूलों द्वारा सीटों की ऑनलाइन जानकारी दी जाती है। जिसका बीआरसी द्वारा सत्यापन किया जाता है।
संजीव शर्मा, प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी
-इस साल 10 हजार दाखिले कराएंगे
पिछले साल आरटीई के तहत दाखिले के लिए 6 हजार आवेदन आए थे। जिसमें से 3700 पात्र बच्चों का दाखिला हो सका। बाकी अपात्र पाए गए। कई तो ऐसे थे जिन्होंने पूरी प्रक्रिया हो जाने के बाद भी दाखिला नहीं लिया। इस साल विभिन्ना तरीकों से प्रचार प्रसार कर आरटीई को लेकर जागरुकता फैलाई जा रही है। हमारा लक्ष्य है कि 10 हजार बच्चे को आरटीई का लाभ मिले।
विजय दीक्षित, जिला परियोजना समन्वयक
मिली भगत, नहीं होता सीटों का भौतिक सत्यापन
प्राइवेट स्कूलों द्वारा सीटों की सही संख्या नहीं बताई जाती है। मिली भगत होने के कारण शिक्षा विभाग भी सीटों का भौतिक सत्यापन नहीं करता। स्कूलों से सीटों के संबंध में शपथ-पत्र लिया जाना चाहिए, जिससे कि झूटे साबित होने पर उनपर प्रकरण दर्ज कार्रवाई का जा सके। आरटीई के तहत आवेदन कम इसलिए आते हैं। क्योंकि प्रचार-प्रसार पर लिखने तक सीमित है। पिछले सत्रों को छोड़िए इस सत्र में असफलता के लिए चुनाव को बहाना बनाया जाएगा। कई स्कूल सुदूर इलाकों में बने हुए हैं। जिनके आसपास रिहायसी बस्ती ही नहीं हैं। इन स्कूलों की आरटीई की सीटें खाली छूट जाती हैं। अभिभावकों की मांग पर यहां भी सीटें उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
सुधीर सपरा, अध्यक्ष पेरेंट्स एसोसिएशन