जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट
की जबलपुर मुख्य पीठ में सुनवाई चल रही है। वहीं इंदौर और ग्वालियर में भी
अतिथि शिक्षकों ने मामले लगाए हुए हैं। इसको लेकर मप्र हाईकोर्ट ने
शुक्रवार को एक अहम फैसला किया है।
जिसके बाद अब इंदौर और ग्वालियर में चल
रहे अतिथियों के स मुख्य बेंच जबलपुर में ही सुने जाएंगे। ये आदेश दोपहर
में जारी हुए हैं। दो दिन पूर्व ही कोर्ट ने 200 से अधिक अतिथि शिक्षकों को
नियमित शिक्षकों की नियुक्ति तक काम करते रहने की अंतरिम राहत दी थी।
दो दिन पहले ये कहा कोर्ट ने -
मप्र हाईकोर्ट की दो पीठों में बुधवार को
प्रदेश भर के सरकारी स्कूलों में कार्यरत दो सौ से अधिक अतिथि शिक्षकों की
याचिकाओं में अंतरिम राहत के मसले पर बहस पूरी हो गई। याचिकाकर्ताओं ने
आग्रह किया कि उन्होंने बतौर अंतरिम राहत नियमित शिक्षकों की नियुक्ति तक
कार्यरत रहने दिया जाए। जस्टिस वंदना कसरेकर व जस्टिस संजय द्विवेदी की
एकलपीठों ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया।
यह है मामला-
सीधी जिले के शशांक द्विवेदी सहित विभिन्न जिलों के सरकारी स्कूलों में कार्यरत करीब दो सौ अतिथि शिक्षकों की ओर से याचिकाएं दायर कर कहा गया कि वे पिछले कई सालों से इन स्कूलों में अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता बृंदावन तिवारी, शशांक शेखर, सत्येंद्र ज्योतिषी ने हाईकोर्ट की युगलपीठ व सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस संबंध में दिए गए निर्णय का हवाला दिया। तर्क दिया गया कि अस्थाई कर्मियों को दूसरे अस्थाई कर्मियों से बदलना गैरकानूनी है। आग्रह किया गया कि जब तक बीते सत्र में कार्यरत अतिथि शिक्षकों की जगह नियमित शिक्षकों की नियुक्ति न कर दी जाए, उन्हें पूर्ववत कार्य करने दिया जाए। 7 जुलाई के विज्ञापन व इसके संबंध में की गई प्रक्रिया निरस्त की जाए। सरकार की ओर से इसे प्रशासनिक निर्णय बताते हुए याचिका का विरोध किया गया।
सीधी जिले के शशांक द्विवेदी सहित विभिन्न जिलों के सरकारी स्कूलों में कार्यरत करीब दो सौ अतिथि शिक्षकों की ओर से याचिकाएं दायर कर कहा गया कि वे पिछले कई सालों से इन स्कूलों में अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता बृंदावन तिवारी, शशांक शेखर, सत्येंद्र ज्योतिषी ने हाईकोर्ट की युगलपीठ व सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस संबंध में दिए गए निर्णय का हवाला दिया। तर्क दिया गया कि अस्थाई कर्मियों को दूसरे अस्थाई कर्मियों से बदलना गैरकानूनी है। आग्रह किया गया कि जब तक बीते सत्र में कार्यरत अतिथि शिक्षकों की जगह नियमित शिक्षकों की नियुक्ति न कर दी जाए, उन्हें पूर्ववत कार्य करने दिया जाए। 7 जुलाई के विज्ञापन व इसके संबंध में की गई प्रक्रिया निरस्त की जाए। सरकार की ओर से इसे प्रशासनिक निर्णय बताते हुए याचिका का विरोध किया गया।