हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के एक आदेश के बाद अब ट्रांसफर किए गए 1000
से ज्यादा शिक्षकों की नियुक्ति का रास्ता खुला गया है।
पिछले साल शिक्षा
और जनजातीय कल्याण विभाग में तबादले के आदेश पर विवाद चल रहा था क्योंकि
आयुक्त जनजातीय कल्याण विभाग ने सरकार के ट्रांसफर की पॉलिसी पर अपने विभाग
में रोक लगा दी थी।
दरअसल जनजातीय इलाकों में अध्यापक संवर्ग के ट्रांसफर की पहले कोई
पॉलिसी नहीं थी जुलाई 2017 में मध्य प्रदेश सरकार ने ट्रांसफर की एक पॉलिसी
बनाई जिसमें जो शिक्षक आदिवासी इलाकों में नौकरी कर रहे हैं उनका दूसरे
इलाकों में भी ट्रांसफर हो सकता है और दूसरे इलाकों से जनजातीय इलाकों में
भी ट्रांसफ़र किया जा सकता है यह नियम बनने के बाद 1100 से ज्यादा टीचरों
के ट्रांसफर हुए थे। जिसमें जनजाति इलाकों से 435 टीचर दूसरे इलाकों में
ट्रांसफर किए गए थे और दूसरे इलाकों से 735 शिक्षकों के ट्रांसफर जनजातीय
इलाकों में हुए थे।
लेकिन ऐसा तभी संभव था जब संबंधित विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिल
जाए। इसके बाद 12 अप्रैल 2018 के जनजातीय कल्याण विभाग ने यह कहकर इस आदेश
को मानने से इनकार कर दिया कि शिक्षकों की कमी है और ट्रांसफर होने के बाद
शिक्षा का काम प्रभावित हो जाएगा जबकि ट्रांसफर के बाद जनजातीय इलाकों में
जाने वाली टीचरों की संख्या 725 थी और आने वालों की संख्या 435 उसके बाद भी
शिक्षा विभाग ने जनजाति कल्याण विभाग की बात को स्वीकार कर लिया और
ट्रांसफर रोक दिए थे।
इसके विरुद्ध अध्यापक संवर्ग ने हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में अपील की
और 19 जुलाई 2018 को सुनवाई के बाद कोर्ट ने जनजाति कल्याण विभाग के
आर्डर पर रोक लगा दी। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रांसफर का नियम राज्य
शासन ने बनाया था ऐसे में शासन का ही कोई दूसरा विभाग उसके विरुद्ध आदेश
जारी नहीं कर सकता है।
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