मप्रमें शिक्षकों के हजारों पद खाली होने के कारण क्वालिटी शिक्षा तो दूर,
स्कूल ही नहीं लग पा रहे हैं। प्रदेश के प्राथमिक, माध्यमिक और हायर
सेकंडरी एवं हाई स्कूल के 9806 संस्थान तो ऐसे हैं, जिनमें एक भी शिक्षक
नहीं है। वहीं वर्ग-2 और 3 के 30 हजार से अधिक पद खाली पड़े हैं।
आश्चर्यजनक बात तो यह है कि प्रदेश में 3600 हाईस्कूल ऐसे हैं, जो सिर्फ शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं, बल्कि इनमें से 2162 स्कूलों में तो प्राचार्य तक नहीं है। महज 1438 हाईस्कूलों में ही प्राचार्य है। अब पदोन्नति का मामला कोर्ट में विचाराधीन होेने के कारण प्राचार्य के पद भी नहीं भरे जा रहे हैं। इसके चलते स्कूली शिक्षा की स्थिति दयनीय है। एक तरह से यह स्कूली बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। कई सरकारी स्कूलों में स्थाई शिक्षकों की कोई व्यवस्था नहीं है। अतिथि शिक्षक भी समय पर स्कूल नहीं पहुंचते हैं।
दूरदराज के जिलों में स्कूलों की हालत और भी खराब है। सैकड़ों ऐसे स्कूल हैं, जिनके भवन जर्जर हो चुके हैं और कई ऐसे स्कूल भी हैं, जिनके पास खुद का भवन तक नहीं है। वे किराए के भवनों में चल रहे हैं। आदिवासी इलाकों के हालात तो और बदतर हैं। यहां वर्षों से शिक्षक नहीं हैं, स्कूल-भवन भी जर्जर हो चुके हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षक होने के कारण छात्र-छात्राओं की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। ऐसे में स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि शासन ने वर्ष 2016-17 में जिन माध्यमिक स्कूलों को हाईस्कूल और जिनका हायर सेकंडरी स्कूल में उन्नयन किया है, उनमें भी शिक्षकों की व्यवस्था नहीं हो पाई है। इसके चलते अतिथि शिक्षकों से ही काम चलाया जा रहा है। इस कारण उन्नयन किए गए स्कूलों का मकसद भी पूरा नहीं हो पा रहा है।
तीन हजार शिक्षकों के ट्रांसफर किए हैं
ज्यादातरस्कूलों के खाली पद आदिवासी क्षेत्रों के हैं, जो कि पहले से ही बैकलाग पदों के रूप में चले रहे हैं। तीन-चार महीने में इनकी पूर्ति के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। वैसे भी हमने 2300 शिक्षकों के पद युक्तियुक्तकरण के जरिए भर दिए हैं। 3000 शिक्षकों के ट्रांसफर सोमवार कर दिए हैं, जिन्हें विभिन्न जिलों के स्कूलों मे भेजा गया है, जहां पद रिक्त हैं। दीप्तिगौड़ मुखर्जी, प्रमुखसचिव, स्कूल शिक्षा
{तीस हजार से अधिक संविदा शिक्षकों के पद रिक्त
आश्चर्यजनक बात तो यह है कि प्रदेश में 3600 हाईस्कूल ऐसे हैं, जो सिर्फ शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं, बल्कि इनमें से 2162 स्कूलों में तो प्राचार्य तक नहीं है। महज 1438 हाईस्कूलों में ही प्राचार्य है। अब पदोन्नति का मामला कोर्ट में विचाराधीन होेने के कारण प्राचार्य के पद भी नहीं भरे जा रहे हैं। इसके चलते स्कूली शिक्षा की स्थिति दयनीय है। एक तरह से यह स्कूली बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। कई सरकारी स्कूलों में स्थाई शिक्षकों की कोई व्यवस्था नहीं है। अतिथि शिक्षक भी समय पर स्कूल नहीं पहुंचते हैं।
दूरदराज के जिलों में स्कूलों की हालत और भी खराब है। सैकड़ों ऐसे स्कूल हैं, जिनके भवन जर्जर हो चुके हैं और कई ऐसे स्कूल भी हैं, जिनके पास खुद का भवन तक नहीं है। वे किराए के भवनों में चल रहे हैं। आदिवासी इलाकों के हालात तो और बदतर हैं। यहां वर्षों से शिक्षक नहीं हैं, स्कूल-भवन भी जर्जर हो चुके हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षक होने के कारण छात्र-छात्राओं की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। ऐसे में स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि शासन ने वर्ष 2016-17 में जिन माध्यमिक स्कूलों को हाईस्कूल और जिनका हायर सेकंडरी स्कूल में उन्नयन किया है, उनमें भी शिक्षकों की व्यवस्था नहीं हो पाई है। इसके चलते अतिथि शिक्षकों से ही काम चलाया जा रहा है। इस कारण उन्नयन किए गए स्कूलों का मकसद भी पूरा नहीं हो पा रहा है।
तीन हजार शिक्षकों के ट्रांसफर किए हैं
ज्यादातरस्कूलों के खाली पद आदिवासी क्षेत्रों के हैं, जो कि पहले से ही बैकलाग पदों के रूप में चले रहे हैं। तीन-चार महीने में इनकी पूर्ति के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। वैसे भी हमने 2300 शिक्षकों के पद युक्तियुक्तकरण के जरिए भर दिए हैं। 3000 शिक्षकों के ट्रांसफर सोमवार कर दिए हैं, जिन्हें विभिन्न जिलों के स्कूलों मे भेजा गया है, जहां पद रिक्त हैं। दीप्तिगौड़ मुखर्जी, प्रमुखसचिव, स्कूल शिक्षा
{तीस हजार से अधिक संविदा शिक्षकों के पद रिक्त