झाबुआ.
जिले का साक्षरता प्रतिशत सालों से काफी कम है। जिसे बढ़ा पाने में शिक्षा
प्रशासन नाकारा साबित हो रहा है। साक्षरता के गिरे स्तर का मुख्य कारण
जिले में शिक्षकों की कमी है। इसका मुख्य कारण शिक्षकों का गांव में जाकर
पढ़ाने में दिलचस्पी नहीं होना है।
खासकर प्राथमिक शाला जहां से शिक्षा की नींव रखी जाती है उसी में 1508 शिक्षकों की कमी है। इसकी पूर्ति अधिकांश विद्यालयों में अतिथियों के भरोसे की जा रही है। जो शिक्षक हैं भी कुछेक को छोड़कर बाकी लापरवाही बरत रहे हैं। प्राथमिक स्तर से निकलकर माध्यमिक स्तर पर पहुंचे विद्यार्थियों को खुद का नाम तक नहीं लिखते आता। इससे माध्यमिक स्तर के शिक्षकों को फिर से उन छात्रों पर मेहनत करना पड़ती है। कुछ शिक्षक प्रयास करते हैं तो कुछ बच्चो को उनके हाल पर छोड़ देते हैं।
जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर स्थित ग्राम बामन सेमलिया में छह विद्यालय हैं। इसके बाद भी यहां के आधे बच्चे पढ़ाई करने के लिए झाबुआ आते हैं। स्कूलों में दो-दो शिक्षक पदस्थ हैं, लेकिन वे नियमित विद्यालय नहीं जाते। इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभवित होती है। शिक्षकों की इस लापरवाही के चलते अभिभावकों ने अपने बच्चों को झाबुआ के विद्यालय में प्रवेश दिलवा दिया। सोमवार को भी गांव की आंगनवाड़ी के पास बने प्राथमिक विद्यालय में देा शिक्षकों में से एक शिक्षक नदारद थे। दूसरे स्कूल पहुंचे थे, लेकिन स्कूल में बच्चे चार थे। दूसरे शिक्षक ने बताया कि एक शिक्षक अवकाश पर हैं। ये तो महज एक गांव का उदाहरण है। अंचल की कई स्कूलों में बामन सेमलिया जैसी स्थिति आसानी से देखी जा सकती है।
सालों बाद मिला लाभ
ग्राम कुंडला के हक्कू फलिया की स्कूल करीब चार साल बंद रहा। एक वर्ष के लिए पिटोल से शिक्षक भेजा था। इस दौरान स्कूल खुली रहती थी। कुछ समय बाद शिक्षक को उनके मूल स्थान भेज देने से हक्कू फलिया का स्कूल फिर बंद हो गया था। जारी शैक्षणिक सत्र की शुरूआत में शिक्षक सतूर भूरिया को पदस्थ कर दिया। तब से यह स्कूल नियमित खुल रही है। वर्तमान में यहां 35 बच्चे दर्ज हैं। इनमें से 20-25 बच्चे नियमित स्कूल आ रहे हैं। ग्रामवासियों ने बताया कि स्कूल नियमित खुलने से उनके बच्चों को पढऩे का लाभ मिल रहा है और रोजाना वे स्कूल आने लगे हैं। बीच में स्कूल बंद था तो लगा था कि अब यहां स्कूल नहीं चल पाएगा। लंबे समय तक स्कूल बंद रहने से भवन की हालत खस्ता हो गई। शिक्षक ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करवा दिया है। स्कूल की मरम्मत करवाएंगे।
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जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर स्थित ग्राम बामन सेमलिया में छह विद्यालय हैं। इसके बाद भी यहां के आधे बच्चे पढ़ाई करने के लिए झाबुआ आते हैं। स्कूलों में दो-दो शिक्षक पदस्थ हैं, लेकिन वे नियमित विद्यालय नहीं जाते। इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभवित होती है। शिक्षकों की इस लापरवाही के चलते अभिभावकों ने अपने बच्चों को झाबुआ के विद्यालय में प्रवेश दिलवा दिया। सोमवार को भी गांव की आंगनवाड़ी के पास बने प्राथमिक विद्यालय में देा शिक्षकों में से एक शिक्षक नदारद थे। दूसरे स्कूल पहुंचे थे, लेकिन स्कूल में बच्चे चार थे। दूसरे शिक्षक ने बताया कि एक शिक्षक अवकाश पर हैं। ये तो महज एक गांव का उदाहरण है। अंचल की कई स्कूलों में बामन सेमलिया जैसी स्थिति आसानी से देखी जा सकती है।
सालों बाद मिला लाभ
ग्राम कुंडला के हक्कू फलिया की स्कूल करीब चार साल बंद रहा। एक वर्ष के लिए पिटोल से शिक्षक भेजा था। इस दौरान स्कूल खुली रहती थी। कुछ समय बाद शिक्षक को उनके मूल स्थान भेज देने से हक्कू फलिया का स्कूल फिर बंद हो गया था। जारी शैक्षणिक सत्र की शुरूआत में शिक्षक सतूर भूरिया को पदस्थ कर दिया। तब से यह स्कूल नियमित खुल रही है। वर्तमान में यहां 35 बच्चे दर्ज हैं। इनमें से 20-25 बच्चे नियमित स्कूल आ रहे हैं। ग्रामवासियों ने बताया कि स्कूल नियमित खुलने से उनके बच्चों को पढऩे का लाभ मिल रहा है और रोजाना वे स्कूल आने लगे हैं। बीच में स्कूल बंद था तो लगा था कि अब यहां स्कूल नहीं चल पाएगा। लंबे समय तक स्कूल बंद रहने से भवन की हालत खस्ता हो गई। शिक्षक ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करवा दिया है। स्कूल की मरम्मत करवाएंगे।
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