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सरकारी स्कूल के शिक्षक ने अपनी जेब से 50 हजार खर्च कर दूर किया कक्षा का अंधेरा

सहराई प्राइमरी स्कूल के शिक्षक जयदयाल शर्मा (55) अपने ही दूसरे साथियों आैर जिले के बिजली विहीन 1668 सरकारी स्कूलों के लिए मिसाल हैं। अपने स्कूल में बिजली न होने से बेहाल छात्रों की परेशानी उनसे देखी नहीं गई। उन्होंने स्कूल के पड़ोस में रहने वाले परिवार के यहां से पहले बिजली की लाइन ली।
इसके बाद खुद के पैसों से कूलर खरीद लाए। बीच-बीच में बिजली गुल होने की समस्या आई तो इन्वर्टर भी खरीद लाए। श्री शर्मा जो स्कूल के हेड मास्टर भी हैं, पिछले आठ साल से यहां पदस्थ हैं। स्कूल में 55 छात्र अध्ययनरत हैं।

स्कूल में बिजली न होने से छात्रों को होने वाली परेशानी को दूर करने की पहल दो महीने पहले हुई। श्री शर्मा ने देखा, छात्र रोज पूरे समय पसीने से तर रहते हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद स्कूल में बिजली का कनेक्शन नहीं हो सका। इस पर श्री शर्मा ने स्कूल भवन के पड़ोस में रहने वाले परिवार से बात की आैर उसे स्कूल के लिए बिजली की लाइन देने पर राजी किया। उन्होंने उस परिवार के मुखिया को भरोसा दिलाया कि स्कूल में खर्च होने वाली बिजली का जो भी बिल आएगा, उसका भुगतान वह खुद करेंगे। बिजली का इंतजाम हुआ तो मामला स्कूल के तीन कमरों में पंखों को लेकर अटक गया। इनके लिए बजट नहीं था तो एक दिन वे अपने ही खर्च से कूलर खरीद लाए। कुछ दिन ठीक रहा पर जब बिजली बार-बार गुल होने लगी तो खुद बाजार से इन्वर्टर भी खरीद लाए।

श्री शर्मा के इस प्रयास के बाद स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों को अब गर्मी का खौफ नहीं सताता। उन्हें रोज स्कूल आने की आदत पड़ गई है। तीन कमरों के इस स्कूल के दो कमरों में छात्रों के लिए फर्नीचर भी नहीं है। इस कमी को दूर करने के लिए श्री शर्मा ने 20 हजार रुपए का फर्नीचर खरीदने का ऑर्डर दे दिया है। अपनी जेब से स्कूल के बच्चों के लिए इस तरह की सुविधाएं जुटाने के पीछे कारण तलाशने पर वे कहते हैं- मेरे स्कूल के छात्र खुद को दूसरों से अलग महसूस करें। वे खुश रहते हैं तो मुझे भी आनंद की अनुभूति होती है। सहराई का स्कूल दूसरे स्कूलों के लिए मिसाल बने। यही मंशा है। मेरी कोशिश है कि यह स्कूल मॉडल स्कूल बने, इसके लिए जो भी प्रयास होंगे, करूंगा।

जयदयाल शर्मा

सहराई प्राइमरी स्कूल में छात्र-छात्राओं को पढ़ाते शिक्षक जय दयाल शर्मा।

बजट कम, इसलिए बदहाल रहते हैं सरकारी स्कूल

तीन या इससे अधिक कमरे वाले सरकारी स्कूलों को साल में 10 हजार, तीन से कम कमरे वाले स्कूलों को 7 हजार सालाना मिलते हैं, इतने कम पैसों से पूरे साल स्कूलों में मेंटेनेंस व साफ-सफाई मुश्किल है, इसी कारण टीचर और छात्र परेशान होते हैं।

काश, दूसरे शिक्षक भी ले सकें सबक

जिले में 1668 प्राइमरी आैर मिडिल स्कूल ऐसे हैं, जिनमें बिजली का कनेक्शन नहीं है। यहां गर्मी के मौसम में जहां बच्चे पसीना-पसीना होते रहते हैं, वहीं बाकी मौसम में रोशनी की कमी या कहीं-कहीं तो अंधेरे में भी पढ़ना पड़ता है। इससे भारी असुविधा रहती है। लेकिन सहराई के प्राइमरी स्कूल के हेड मास्टर जय दयाल शर्मा की तरह अपने स्कूल के बच्चों के दर्द को किसी आैर ने समझने आैर उसे दूर करने की पहल नहीं की है।

दिक्कत कहां है?

सरकारी स्कूलों में बिजली कनेक्शन न होने के पीछे वजह, बिजली कंपनी के नियमों की पेचीदगी है। स्कूल भले ही सरकारी हैं लेकिन बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन करने पर यहां पदस्थ हेडमास्टर को अपना नाम,पता दर्ज कराना होता है। उन्हीं के नाम पर कनेक्शन मिलता है। ऐसे में स्थानांतरण होने के बाद भी बिजली कंपनी के रिकार्ड में उनका नाम चलता रहता है। ज्यादातर स्कूलों में शिक्षक इस झंझट से बचने के चक्कर में कनेक्शन लेने से कतराते हैं।

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