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विवादित नियुक्ति वाले प्रोफेसर पुरानी तारीख में हुए नियमित, पुराने प्रोफेसरों ने भी खोला मोर्चा

इंदौर। नईदुनिया प्रतिनिधि उच्च शिक्षा विभाग के प्रोफेसरों के नियमितीकरण के आदेश पर विवाद खड़ा हो गया है। जिन्हें नियमित करने का आदेश जारी किया गया है, उनकी नियुक्तियों पर ही विवाद है। विभाग पहले इन पर जांच बैठा चुका है और फर्जी तरीके से नियुक्ति देने के मामले कोर्ट में चल रहे हैं।
इस बीच उच्च शिक्षा विभाग द्वारा पुरानी तारीख से नियमितीकरण का लाभ देने का आदेश जारी करने पर सवाल खड़े हो गए हैं। सरकारी कॉलेजों के पुराने प्रोफेसर भी इस आदेश के खिलाफ खड़े हो गए हैं।
विभाग ने शुक्रवार को 171 प्रोफेसरों की परिवीक्षा अवधि खत्म करने का आदेश जारी किया था। आदेश के मुताबिक इन प्रोफेसरों की अवधि 2013 और 2014 से खत्म की जा रही है। इन्हें पीएससी के जरिए 2011 में सीधी नियुक्ति दी गई थी। इसके बाद ही इस पर विवाद खड़ा हो गया था। अनिवार्य योग्यता के तहत संबंधित विषय में पीएचडी के साथ पीजी कॉलेज में 10 वर्ष का अध्यापन अनुभव रखने वाले को ही ऐसा प्रोफेसर बनाया जा सकता है। नियुक्ति के बाद मामला खुला था कि 242 प्रोफेसरों में से 103 को ये नियम तोड़कर प्रोफेसर बना दिया गया। इनमें से किसी की भी पीएचडी को नियुक्ति के समय तक भी 10 साल पूरे नहीं हुए थे। कई उम्मीदवारों पर तो नियुक्ति के लिए फर्जी अनुभव प्रमाण-पत्र से लेकर तीन संतान की बात छिपाने तक के आरोप लगाते हुए शिकायत की गई थी। मामले में इंदौर में व्हिसल ब्लोअर पंकज प्रजापति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने उच्चशिक्षा विभाग को याचिकाकर्ता की शिकायत की जांच कर निराकरण के आदेश भी जारी किए थे। इस बीच ग्वालियर में उषा कुशवाह व अन्य उम्मीदवारों ने नियुक्तियों के खिलाफ याचिका दायर कर दी थी। जो अब तक कोर्ट में विचाराधीन है।
अधिकारी बदलने के बाद आदेश हटाया
कुशवाह के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई जारी है। इस बीच उच्च शिक्षा विभाग की एक कमेटी की जांच में भी नियुक्ति गलत साबित हो चुकी है। जांच रिपोर्ट में फर्जी प्रमाण-पत्र देने वालों पर एफआईआर की सिफारिश भी हुई है। इसी आधार पर बीते दिनों विभाग ने इन सभी की ग्रेड और वेतन कम करने का आदेश जारी किया था। हालांकि अधिकारी बदलने के बाद आदेश हटा लिया गया और अब इन्हें मनमाने तरीके से नियमित करने का लाभ दिया जा रहा है।
71 प्रोफेसरों के मामले में साधी चुप्पी
शुक्रवार के आदेश में 242 नियुक्तियों में से 171 को ही नियमित किया गया है। 71 शेष प्रोफेसरों के मामले में चुप्पी साध ली गई है। विभाग यह साफ नहीं कर रहा है कि इन प्रोफेसरों की नियुक्ति गड़बड़ मानी गई है या किसी और कारण से इन्हें लाभ देने से रोका गया है। प्रजापति के मुताबिक 71 को रोकने के बाद भी 35 गलत नियुक्ति वालों को लाभ दे दिया गया है। इससे सीधे तौर पर भ्रष्टाचार साबित हो रहा है। मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय भी शिकायत कर दी गई है।
मौजूदा प्रोफेसर भी खिलाफ
नियमितीकरण के इस आदेश के खिलाफ प्रदेश के कॉलेजों के वे प्रोफेसर भी खड़े हो गए हैं जो 1992 में पीएससी की लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के दौर के बाद चुने गए थे। ताजा आदेश के बाद 25 वर्षों से पढ़ा रहे इन प्रोफेसरों को दरकिनार कर विवादित नियुक्तियों वाले प्रोफेसरों को इनके आगे सीनियर बनाकर खड़ा कर दिया गया है। इसके खिलाफ पुराने प्रोफेसरों ने अब कानूनी कार्रवाई और आंदोलन की धमकी दे दी है।
छोटा व्यापमं है
मैंने बीते सत्र में विधानसभा में इन नियुक्तियों पर जवाब मांगा था। सरकार ने स्वीकारा था कि अयोग्यों को नियुक्ति दे दी गई है। मामले में जांच भी हुई थी, लेकिन रिपोर्ट प्राप्त नहीं होने की बात कहकर सदन पटल पर रखी नहीं गई थी। यह छोटा व्यापमं है। सदन में फिर इस मुद्दे को उठाया जाएगा।
हेमंत कटारे, विधायक अटेर

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