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जिन मांगों पर पैसा खर्च नहीं होना सरकार वो भी पूरी नहीं कर रही

भोपाल। नवदुनिया प्रतिनिधि प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही कर्मचारी संगठनों ने सरकार को घेरने की रणनीति बना ली है। बीते एक महीने में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, संविदा कर्मी, फार्मासिस्ट और नर्सिंग स्टूडेंट सरकार को घेरने की कोशिश कर चुके हैं।
अब अध्यापक, लिपिक वर्गीय कर्मचारी समेत दूसरे संगठन भी घेराव की तैयारी में हैं। कर्मचारियों का कहना है कि जिन मांगों पर सरकार के एक रुपए भी खर्च नहीं होने थे, वे मांगें भी पूरी नहीं हुई। ऐसे में चुनाव के पहले वित्तीय भार से जुड़ी मांगों को पूरा करने में सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। केवल आश्वासन दिया जा रहा है, इससे कर्मचारियों को नुकसान होगा।
प्रदेश के लाखों कर्मचारी छटवें वेतनमान की विसंगति दूर नहीं करने से नाराज थे। इस बीच सरकार सातवें वेतनमान की घोषणा करने और लाभ देने में पिछड़ती गई। इससे नाराजगी और बढ़ गई। इसके अलावा संघ, निगम मंडल, बोर्ड और सहकारी संस्थाओं में कार्यरत कर्मचारी और पेंशनरों को सातवें वेतनमान से वंचित रखा गया है। इसके कारण आक्रोश पनप रहा है। प्रदेश के 12 हजार इंजीनियरों की मांगों को पूरा करने गठित की गई कमेटी की रिपोर्ट में देरी और लिपिकों की मांगों के संबंध में कमेटी द्वारा दी रिपोर्ट की अनुशंसा लागू नहीं करने से कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ी है। आने वाले समय में इससे सरकार की मुश्किलें कम होने वाली नहीं हैं, क्योंकि कर्मचारियों का कहना है कि सरकार ने उन्हें सुना नहीं, परामर्श दात्री समिति की बैठकें तक बंद कर दी।
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: इन मांगों पर नहीं आएगा खर्च, फिर भी निराकरण नहीं :
1. लिपिकों के भर्ती नियम एक सामान नहीं
लिपिकों के भर्ती व पदोन्नति नियमों में एकरूपता नहीं है। जैसे कि मंत्रालय में कार्यरत लिपिकों के लिए जो भर्ती व पदोन्नति नियम हैं वे बाकी के विभागों में कार्यरत लिपिकों के भर्ती व पदोन्नति नियम से अलग हैं। मप्र लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ के मनोज बाजपेयी ने बताया कि नियमों में एकरूपता नहीं होने के कारण दिक्कत आती है। जब भी सामान्य प्रशासन विभाग कोई पत्राचार करता है तो दूसरे विभाग इनसे पल्ला झाड़ लेते हैं।
2. खाली पदों पर संविदा कर्मियों का संविलियन
प्रदेश में ढाई लाख संविदा कर्मी हैं। ये लगातार नियमित करने की मांग कर रहे हैं। मप्र संविदा अधिकारी कर्मचारी महासंघ के रमेश राठौर के मुताबिक प्रदेश में डेढ़ लाख नियमित पद खाली हैं। सरकार इन खाली पदों पर डेढ़ लाख संविदाकर्मियों का संविलियन करती है तो कोई वित्तीय भार नहीं आएगा।
3. पद नामों में सुधार करने की चिंता नहीं
प्रदेश के कार्यालयों में भृत्य कहलाने वाले एक लाख से अधिक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी उनका पद नाम बदलकर कार्यालय सहायक करने की मांग कर रहे हैं। मप्र लघु वेतन कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि पद नाम बदलने में कोई खर्च नहीं आएगा। फिर भी सुनवाई नहीं होती। आंदोलन करना पड़ता है।
4. सेवानिवृत्ति की आयु सीमा में एकरूपता नहीं
प्रदेश में कर्मचारियों की सेवानिवृत्त होने की आयु सीमा में एकरूपता नहीं है। 80 फीसदी कर्मचारी 60 साल में सेवानिवृत्त होते हैं, जबकि चतुर्थ श्रेणी, स्टाफ नर्सेस, चिकित्सक, शिक्षक आदि की सेवानिवृत्त होने की आयु सीमा 62 साल है। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के महामंत्री एलएन शर्मा का कहना है कि कर्मचारी सालों से आयु सीमा 62 साल करने की मांग करते आ रहे हैं, जिस पर सुनवाई नहीं होती। दूसरी तरफ पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्त होने की आयु सीमा 62 साल है।

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