जबलपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
सरकारी कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक की भर्ती से पहले ही विवाद खड़े होने लगे हैं। 15-20 सालों से कॉलेज में बतौर अतिथि विद्वान पढ़ा रहे शिक्षक भर्ती नियम का विरोध कर रहे हैं। दरअसल मौजूदा नियम में अतिथि विद्वानों के लिए उम्र की सीमा 45 साल रखी गई है।
ये सामान्य अभ्यर्थियों से दो साल अधिक है। इस छूट के बावजूद 75 फीसद अतिथि विद्वान प्रक्रिया से बाहर हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में अतिथि विद्वानों भर्ती के खिलाफ कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
अतिथि विद्वान महासंघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ.केवलप्रसाद रजक ने आरोप लगाया कि आयु सीमा में छूट का जितना लाभ अतिथि विद्वानों को दिया जाना चाहिए, उतना नहीं दिया गया। आयु सीमा की गणना 1 जनवरी 2018 से करने पर कई लोगों के सामने भर्ती प्रक्रिया से बाहर होने का संकट खड़ा हो गया है। संघ ने अधिकतम आयु सीमा 45 साल के बजाए 48 तक करने की मांग उठा दी है।
सरकारी कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक के 2968 खाली पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी कर दिया है। इस भर्ती प्रक्रिया में मूल निवासियों के साथ ही सरकारी कॉलेजों में बतौर अतिथि विद्वान सेवा देने वाले उम्मीदवारों को आयु सीमा में छूट दी है। आयोग ने सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आवेदन की अधिकतम आयु सीमा तीन साल की छूट के साथ 43 साल निर्धारित की है। जबकि अतिथि विद्वानों के लिए यह 45 साल तक रखी है।
नेट-स्लेट में 50 प्रतिशत
भर्ती प्रक्रिया पर ओबीसी नॉन क्रीमिलेयर उम्मीदवारों ने भी सवाल उठा दिए हैं। इन उम्मीदवारों का कहना है कि सरकार ने पोस्ट ग्रेजुएट में 50 प्रतिशत तक अंक वालों को यूजीसी नेट और एमपी स्लेट दिलवा दी। कई उम्मीदवारों ने इसमें क्वालिफाई भी कर लिया। अब सहायक प्राध्यापक के पदों पर भर्ती की बारी आई तो पीजी में 55 प्रतिशत अंक अनिवार्य कर दिया है।
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सिविक सेंटर में बुलाई बैठक-
अतिथि विद्वानों ने भर्ती प्रक्रिया के खिलाफ 17 दिसंबर को सिविक सेंटर पार्क में बैठक बुलाई है। मप्र अतिथि विद्वान महासंघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. केवलप्रसाद रजक ने कहा कि प्रदेश में 4500 अतिथि विद्वान में 75 फीसदी इस नियम से बाहर हो रहे हैं। जो बचेंगे वो भी परीक्षा में सफल हों इसकी संभावना कम है।
सरकारी कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक की भर्ती से पहले ही विवाद खड़े होने लगे हैं। 15-20 सालों से कॉलेज में बतौर अतिथि विद्वान पढ़ा रहे शिक्षक भर्ती नियम का विरोध कर रहे हैं। दरअसल मौजूदा नियम में अतिथि विद्वानों के लिए उम्र की सीमा 45 साल रखी गई है।
ये सामान्य अभ्यर्थियों से दो साल अधिक है। इस छूट के बावजूद 75 फीसद अतिथि विद्वान प्रक्रिया से बाहर हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में अतिथि विद्वानों भर्ती के खिलाफ कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
अतिथि विद्वान महासंघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ.केवलप्रसाद रजक ने आरोप लगाया कि आयु सीमा में छूट का जितना लाभ अतिथि विद्वानों को दिया जाना चाहिए, उतना नहीं दिया गया। आयु सीमा की गणना 1 जनवरी 2018 से करने पर कई लोगों के सामने भर्ती प्रक्रिया से बाहर होने का संकट खड़ा हो गया है। संघ ने अधिकतम आयु सीमा 45 साल के बजाए 48 तक करने की मांग उठा दी है।
सरकारी कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक के 2968 खाली पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी कर दिया है। इस भर्ती प्रक्रिया में मूल निवासियों के साथ ही सरकारी कॉलेजों में बतौर अतिथि विद्वान सेवा देने वाले उम्मीदवारों को आयु सीमा में छूट दी है। आयोग ने सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आवेदन की अधिकतम आयु सीमा तीन साल की छूट के साथ 43 साल निर्धारित की है। जबकि अतिथि विद्वानों के लिए यह 45 साल तक रखी है।
नेट-स्लेट में 50 प्रतिशत
भर्ती प्रक्रिया पर ओबीसी नॉन क्रीमिलेयर उम्मीदवारों ने भी सवाल उठा दिए हैं। इन उम्मीदवारों का कहना है कि सरकार ने पोस्ट ग्रेजुएट में 50 प्रतिशत तक अंक वालों को यूजीसी नेट और एमपी स्लेट दिलवा दी। कई उम्मीदवारों ने इसमें क्वालिफाई भी कर लिया। अब सहायक प्राध्यापक के पदों पर भर्ती की बारी आई तो पीजी में 55 प्रतिशत अंक अनिवार्य कर दिया है।
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सिविक सेंटर में बुलाई बैठक-
अतिथि विद्वानों ने भर्ती प्रक्रिया के खिलाफ 17 दिसंबर को सिविक सेंटर पार्क में बैठक बुलाई है। मप्र अतिथि विद्वान महासंघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. केवलप्रसाद रजक ने कहा कि प्रदेश में 4500 अतिथि विद्वान में 75 फीसदी इस नियम से बाहर हो रहे हैं। जो बचेंगे वो भी परीक्षा में सफल हों इसकी संभावना कम है।