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सरकार की जांच में फर्जीवाड़े का खुलासा 1 लाख अपात्रों को दिए फर्जी प्रमाण

इंदौर | नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओपन स्कूल (एनआईओएस) से डीएलएड करने के लिए निजी स्कूलों ने प्रदेश में करीब एक लाख अपात्रों को प्रमाण पत्र दे दिए। राज्य शिक्षा केंद्र की जांच में यह खुलासा हुआ है।
इनमें से 50 हजार के रजिस्ट्रेशन फॉर्म रिजेक्ट हो चुके हैं। करीब इतने ही फॉर्म और रिजेक्ट हो सकते हैं।
दरअसल एनआईओएस योजना सरकारी व निजी स्कूलों के उन 1 लाख 16 हजार शिक्षकों के लिए थी, जिनके पास आरटीई एक्ट के मुताबिक जरूरी योग्यता (डीएलएड) नहीं थी। इन्हें 2010 में हुए सर्वे में चिह्नित किया गया था। यह कोर्स करने के लिए पहले 2016 तक इन्हें समय दिया था। लेकिन इतने सालों में कोर्स शुरू नहीं हो सका। अब 2019 तक की मोहलत दी गई।
इस साल डीएड के लिए एनआईओएस के रजिस्ट्रेशन शुरू हुए तो यह संख्या 1.16 लाख के बजाय 1.91 लाख तक पहुंच गई। इसके बाद एनआईओएस ने राज्य शिक्षा केंद्र को फॉर्म की जांच का जिम्मा सौंपा। जांच में सामने आया कि जो अतिरिक्त रजिस्ट्रेशन हुए हैं उन्होंने निजी स्कूलों के फर्जी नौकरी प्रमाण पत्र और डायस कोड का उपयोग किया है। निजी स्कूलों ने डायस कोड और प्रमाण पत्र के लिए 10 से 20 हजार रुपए हर छात्र से लिए हैं। जिनके रजिस्ट्रेशन रिजेक्ट हुए वे अब न 2019 के पहले डीएड कर पाएंगे और न ही 2019 के बाद शिक्षक की नौकरी।
ऐसे पकड़ में आई गड़बड़ी
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के बाद सरकार द्वारा 2010 में करवाए गए सर्वे में बिना डिप्लोमा वाले 1 लाख 16 हजार शिक्षक ही इस योजना के पात्र थे। 2010 और 2017 के बीच सरकारी शिक्षकों को तो सरकार ने यह डिप्लोमा करवा दिया। सिर्फ 1500 ही एेसे सरकारी शिक्षक बचे हैं, जिन्होंने डिप्लोमा नहीं किया है। इन सात सालों में करीब 15 हजार शिक्षक रिटायर्ड हो गए। इससे ज्यादा ने शिक्षक की नौकरी छोड़ दी या निजी संस्थानों से डिप्लोमा हासिल कर लिया।
जाहिर है इस लिहाज से रजिस्ट्रेशन करवाने वालों की संख्या 85 हजार या अधिकतम 90 हजार होनी चाहिए थी, लेकिन यह कम होने के बजाए एक लाख ज्यादा यानी 1 लाख 91 हजार तक पहुंच गई। प्रथम दृष्टया गड़बड़ी नजर आने पर एनआईओएस ने राज्य शिक्षा केंद्र को फॉर्म की जांच का जिम्मा सौंपा था। इस जांच में अब तक 50 हजार फॉर्म संदिग्ध पाए गए हैं। अपात्रों में ज्यादातर शिक्षक मोटी फीस वसूलने वाले निजी स्कूलों से हैं।
स्कूलों ने 10 की जगह 25 प्रमाणपत्र तक किए जारी
हर जिले में एक डाइट केंद्र होता है जो सभी स्कूलों के छात्रों और शिक्षकों का रिकॉर्ड रखता है। वहां से निजी स्कूलों के शिक्षकों और छात्रों की संख्या मंगवाई गई। 2010 में चिह्नित अपात्र शिक्षकों की सूची से मिलान किया गया। इसमें ऐसे कई स्कूल सामने आए जहां छात्रों की संख्या के मुताबिक 10 शिक्षक (300 छात्रों पर) होना थे, लेकिन प्रमाण पत्र 25 तक जारी हुए।
सेट टॉप बाक्स के जरिए होना है एनआईओएस से डीएड
एनआईओएस के तहत संचालित डीएड की अवधि 18 महीने है। इसमें डिप्लोमा करने वाले रजिस्टर्ड छात्रों को साढ़े चार हजार रुपए लेकर एक सेट टॉप बॉक्स दिया जाएगा। इसकी मदद से वह टेलीविजन के जरिए पढ़ाई करेंगे। परीक्षा एनआईओएस लेगा। यह कोर्स जुलाई 2019 के पहले पूरा करना है। इस योजना के लिए 2010 में चिह्नित शिक्षक ही पात्र हैं। सरकार ने निजी कॉलेजों के लिए इस कोर्स की अवधि 18 के बजाय 24 माह तय की है। इस दोहरे मापदंड के लिए निजी कॉलेजों का एसोसिएशन 18 महीने के कोर्स को अवैध बताते हुए मामले को कोर्ट में भी ले गया है।
आरटीई में किया है अनिवार्य
2009 में आए आरटीई एक्ट में सभी स्कूल के शिक्षकों के लिए डीएड या बीएड अनिवार्य किया था। यानी 2010 के बाद बिना डिप्लोमा वाले शिक्षकों को कोई भी स्कूल नौकरी पर नहीं रख सकता था।
कम फीस के लालच में फंसे
निजी डिप्लोमा कॉलेजों में 70 हजार रुपए सालाना तक फीस लगती ह। दलालों के झांसे में आए शिक्षकों को एनआईओएस से यही डिप्लोमा 20- 25 हजार में करना सस्ता विकल्प लगा।

अधिकारियों को बुलाया है, उनसे जानेंगे कैसे हुई गड़बड़ी
इस तरह की गड़बड़ी कैसे हुई, इसले केर मंगलवार को अधिकारियों की बैठक बुलाई है। सारे आंकड़े आने के बाद ही आगामी कदम के बारे में निर्णय लेंगे। – विजय शाह ,स्कूली शिक्षा मंत्री, मध्यप्रदेश

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