ग्वालियर। नईदुनिया प्रतिनिधि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद
(एनसीटीई) ने बीएड कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर अथवा उसके समकक्ष पदों
पर नियुक्ति को लेकर जारी असमंजस दूर कर दिया है। इन पदों पर केवल वही
उम्मीदवार पात्र होंगे जो यूजीसी 2009 नियमों के तहत संबंधित विषय में
पीएचडी डिग्री धारक हो या नेट क्वालीफाई हो अथवा राज्य सरकार या संबंधित
विश्वविद्यालय के नियमों के तहत पात्रता रखता हो।
एनसीटीई ने 9 जून को यह नोटिफिकेशन जारी किया है। इससे कॉलेज संचालक चिंतित हैं। वहीं जीवाजी यूनिवर्सिटी प्रशासन को बल मिल गया है।
बीएड और एमएड पाठ्यक्रमों के अध्यापन कार्य के लिए एनसीटीई के पूर्व के नियमों में एमएड की स्थिति साफ थी। यह पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए नेट या पीएचडी के साथ कम से कम पांच साल का अध्यापन कार्य का अनुभव जरूरी था, लेकिन बीएड के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर अथवा उसके समकक्ष पदों पर नियुक्ति की पात्रता स्पष्ट नहीं थी। इसलिए कॉलेजों में विवि परिनियम 28/17 के तहत एमएड डिग्रीधारियों को असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किया जा रहा था, लेकिन इसमें शर्त यह जोड़ी जाती थी कि संबंधित शिक्षक को दो साल में नेट या पीएचडी करना अनिवार्य होगा। इसी शर्त का खेल चल रहा था, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा।
इस नोटिफिकेशन से कॉलेज संचालक इसलिए सकते में हैं क्योंकि अब तक वे शर्तों के तहत शिक्षकों की नियुक्ति कराकर संबद्धता ले लेते हैं। संबद्धता मिलते ही कई शिक्षकों को हटा देते थे, लेकिन कागजों में उनके नाम चलते रहते थे। जेयू ने इस बार शर्तों के तहत संबद्धता नहीं दी। सख्ती बरतने के कारण 49 कॉलेजों में सत्र 2017-18 में पहले छात्रों के प्रवेश पर रोक लगा दी यानि पहले वर्ष की संबद्धता नहीं दी। इनमें 10 कॉलेजों ने हाईकोर्ट की शरण ली है। अदालत ने जेयू के निर्णय पर स्थगन दे दिया है। जेयू से दो सप्ताह में जवाब मांगा है। इसे देखते हुए जेयू प्रशासन ने मप्र विवि अधिनियम, यूजीसी व एनसीटीई के नियमों को खंगालना शुरू कर दिया है।
इनका कहना है
एनसीटीई ने बीएड कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर अथवा उसके समकक्ष पदों पर नियुक्ति के संबंध में असमंजस दूर कर दिया है। इन पदों के लिए आवेदक पीएचडी, नेट या राज्य शासन और विवि परिनियम के तहत पात्रता रखता हो।
प्रो. डीडी अग्रवाल, डीसीडीसी,जेयू
एनसीटीई ने 9 जून को यह नोटिफिकेशन जारी किया है। इससे कॉलेज संचालक चिंतित हैं। वहीं जीवाजी यूनिवर्सिटी प्रशासन को बल मिल गया है।
बीएड और एमएड पाठ्यक्रमों के अध्यापन कार्य के लिए एनसीटीई के पूर्व के नियमों में एमएड की स्थिति साफ थी। यह पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए नेट या पीएचडी के साथ कम से कम पांच साल का अध्यापन कार्य का अनुभव जरूरी था, लेकिन बीएड के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर अथवा उसके समकक्ष पदों पर नियुक्ति की पात्रता स्पष्ट नहीं थी। इसलिए कॉलेजों में विवि परिनियम 28/17 के तहत एमएड डिग्रीधारियों को असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किया जा रहा था, लेकिन इसमें शर्त यह जोड़ी जाती थी कि संबंधित शिक्षक को दो साल में नेट या पीएचडी करना अनिवार्य होगा। इसी शर्त का खेल चल रहा था, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा।
इस नोटिफिकेशन से कॉलेज संचालक इसलिए सकते में हैं क्योंकि अब तक वे शर्तों के तहत शिक्षकों की नियुक्ति कराकर संबद्धता ले लेते हैं। संबद्धता मिलते ही कई शिक्षकों को हटा देते थे, लेकिन कागजों में उनके नाम चलते रहते थे। जेयू ने इस बार शर्तों के तहत संबद्धता नहीं दी। सख्ती बरतने के कारण 49 कॉलेजों में सत्र 2017-18 में पहले छात्रों के प्रवेश पर रोक लगा दी यानि पहले वर्ष की संबद्धता नहीं दी। इनमें 10 कॉलेजों ने हाईकोर्ट की शरण ली है। अदालत ने जेयू के निर्णय पर स्थगन दे दिया है। जेयू से दो सप्ताह में जवाब मांगा है। इसे देखते हुए जेयू प्रशासन ने मप्र विवि अधिनियम, यूजीसी व एनसीटीई के नियमों को खंगालना शुरू कर दिया है।
इनका कहना है
एनसीटीई ने बीएड कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर अथवा उसके समकक्ष पदों पर नियुक्ति के संबंध में असमंजस दूर कर दिया है। इन पदों के लिए आवेदक पीएचडी, नेट या राज्य शासन और विवि परिनियम के तहत पात्रता रखता हो।
प्रो. डीडी अग्रवाल, डीसीडीसी,जेयू