भास्कर संवाददाता | होशंगाबाद भास्कर टीम ने शनिवार को जिले के सिवनी तहसील के गांव बारासेल के स्कूल के हाल जाने। टीम ने मिडिल स्कूल का दौरा किया। स्कूल में बच्चे डरे-सहमे खामोश बैठे थे। अतिथि शिक्षक भगवान दास टेबल-कुर्सी पर नींद में सो रहे थे।
टीम के जगाने पर बमुश्किल जागे भगवानदास ने बताया स्कूल में 61 बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल प्रभारी सल्लाम नहीं आए थे। एक ओर अतिथि बरुड़ शर्मा भी नहीं आए। उन्होंने कहा ज्यादा जानकारी नहीं है। इसी वर्ष मेरी नियुक्ति हुई है। यह कहकर अतिथि शिक्षक भी कुछ बता नहीं पाया। इसके बाद पास में ही प्राथमिक स्कूल है, यहां सारे बच्चे एक कमरे में बैठे मिले। स्कूल में मौजूद अतिथि बबलू सिंह नाविश्कर ने बताया स्कूल में 104 बच्चों के नाम दर्ज हैं। स्कूल प्रभारी शिक्षक अर्जुन सिंह और जड़े सिंह पवार भी स्कूल में आज नहीं आए हैं। अमूमन यह हालात रोज के हैं। स्कूल में बच्चों से पूछा शिक्षकों के क्या नाम हैं तो वे अतिथि शिक्षकों के अलावा किसी का नाम नहीं बता पाए। इससे साफ प्रतीत होता है सतपुड़ा की घनी वादियों में बसे बारासेल के स्कूलों में अमूमन यह हाल रोज रहता है। गांव के संतोष ने बताया साहब हमारी कौन सुनता है। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री सड़क भी गांव तक बन गई है। बस की सुविधा होने के बाद भी शिक्षकों का स्कूल में नहीं जाना आदिवासी बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है पर शासन कोई ध्यान नहीं दे रही है।
भोजन में दो रोटी मिलती है
स्कूल में बच्चों से मध्यान्ह भोजन के बारे में पूछा क्या खाया? बच्चों ने बताया सर भोजन में दो रोटी ही मिलती है। इसमें पेट नहीं भरता। सर बोलते हैं स्कूल में दो रोटी से ज्यादा नहीं मिलती। ज्यादा खाना है तो घर से लेकर आया करो।
व्यवस्था देखता हूं
यदि शिक्षक स्कूलों में नहीं आ रहे हैं तो मैं स्वयं स्कूलों में जाकर निरीक्षण करूंगा। अरविंद चौरागड़े, जिला शिक्षा अधिकारी
स्कूल व आंगनबाड़ी में बना है निवास
गांव में मिडिल स्कूल के भवन में एक कमरे में शिक्षकों ने रेस्ट हाउस बना रखा है। इसमें शिक्षक निवास करते हैं। कमरे में क्लास नहीं लगती। शिक्षक ने अपनी खटिया और सामान रखकर कब्जा कर रखा है। आंगनबाड़ी में भी 113 बच्चे दर्ज हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भवन में ही रहती हैं। आंगनबाड़ी कब और कैसे लगती है यह कोई नहीं जानता है। बीईओ, बीआरसी और संकुल प्राचार्य भी इन स्कूलों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
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टीम के जगाने पर बमुश्किल जागे भगवानदास ने बताया स्कूल में 61 बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल प्रभारी सल्लाम नहीं आए थे। एक ओर अतिथि बरुड़ शर्मा भी नहीं आए। उन्होंने कहा ज्यादा जानकारी नहीं है। इसी वर्ष मेरी नियुक्ति हुई है। यह कहकर अतिथि शिक्षक भी कुछ बता नहीं पाया। इसके बाद पास में ही प्राथमिक स्कूल है, यहां सारे बच्चे एक कमरे में बैठे मिले। स्कूल में मौजूद अतिथि बबलू सिंह नाविश्कर ने बताया स्कूल में 104 बच्चों के नाम दर्ज हैं। स्कूल प्रभारी शिक्षक अर्जुन सिंह और जड़े सिंह पवार भी स्कूल में आज नहीं आए हैं। अमूमन यह हालात रोज के हैं। स्कूल में बच्चों से पूछा शिक्षकों के क्या नाम हैं तो वे अतिथि शिक्षकों के अलावा किसी का नाम नहीं बता पाए। इससे साफ प्रतीत होता है सतपुड़ा की घनी वादियों में बसे बारासेल के स्कूलों में अमूमन यह हाल रोज रहता है। गांव के संतोष ने बताया साहब हमारी कौन सुनता है। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री सड़क भी गांव तक बन गई है। बस की सुविधा होने के बाद भी शिक्षकों का स्कूल में नहीं जाना आदिवासी बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है पर शासन कोई ध्यान नहीं दे रही है।
भोजन में दो रोटी मिलती है
स्कूल में बच्चों से मध्यान्ह भोजन के बारे में पूछा क्या खाया? बच्चों ने बताया सर भोजन में दो रोटी ही मिलती है। इसमें पेट नहीं भरता। सर बोलते हैं स्कूल में दो रोटी से ज्यादा नहीं मिलती। ज्यादा खाना है तो घर से लेकर आया करो।
व्यवस्था देखता हूं
यदि शिक्षक स्कूलों में नहीं आ रहे हैं तो मैं स्वयं स्कूलों में जाकर निरीक्षण करूंगा। अरविंद चौरागड़े, जिला शिक्षा अधिकारी
स्कूल व आंगनबाड़ी में बना है निवास
गांव में मिडिल स्कूल के भवन में एक कमरे में शिक्षकों ने रेस्ट हाउस बना रखा है। इसमें शिक्षक निवास करते हैं। कमरे में क्लास नहीं लगती। शिक्षक ने अपनी खटिया और सामान रखकर कब्जा कर रखा है। आंगनबाड़ी में भी 113 बच्चे दर्ज हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भवन में ही रहती हैं। आंगनबाड़ी कब और कैसे लगती है यह कोई नहीं जानता है। बीईओ, बीआरसी और संकुल प्राचार्य भी इन स्कूलों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
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