ग्वालियर । जाली अंक सूची से
लेकर प्रसूति अवकाश तक के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वाली एक संविदा शिक्षक
(अब आश्रम अधीक्षक) पर पंचायत से लेकर आदिम जाति कल्याण विभाग के अफसर तक
इस कदर मेहरबान हैं कि शासन और आला अफसरों के इस संविदा शिक्षक पर कार्रवाई
के आदेशों को ही उन्होंने दरकिनार कर दिया है।
और तो और तमाम प्रतिकूल
टिप्पणियों व कार्रवाईयों के बाद भी मेहरबान अफसरों ने इस संविदा शिक्षक को
संविलियन का लाभ देकर पहले सहायक अध्यापक और फिर अधीक्षक तक बना डाला।
अफसरों की मेहरबानी पर तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं।
संविदा शिक्षक भर्ती नियम 2005 के मुताबिक
यदि संविदा शिक्षक दोषी पाया जाता है तो उसकी सेवा समाप्ति का प्रावधान
है। लेकिन रंजीता जाटव के मामले में ऐसा कतई नहीं किया गया।
संचालक पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग
एवं आयुक्त आदिवासी विकास ने कलेक्टर ग्वालियर को फर्जी अंक सूची काण्ड में
रंजीता जाटव को दोषी पाए जाने पर उसकी संविदा समाप्त करके एक आपराधिक
मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए हैं। तदनुसार कलेक्टर ने यह निर्देश मुख्य
कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत को दे दिए हैं और मुख्य कार्यपालन अधिकारी
ने जनपद पंचायत को तत्संबंधी निर्देश जारी कर दिए हैं। पिछले डेढ़ दो माह
से यह निर्देश चल रहे हैं। इंतजार कार्रवाई का है।
रंजीता जाटव नाम की इस संविदा शिक्षक जो
कि वर्तमान में आयोग्य होते हुए भी अधीक्षक के पद पर कार्यरत है ने 2010
में संविलियन के लिए बीएड की फर्जी मार्क्सशीट प्रस्तुत की। जांच में पकड़े
जाने पर तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ विनोद शर्मा ने रंजीता जाटव को
बर्खास्त करने और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराने के निर्देश दिए। लेकिन ऐसा
नहीं हुआ।
रंजीता जाटव ने दूसरा फर्जीवाड़ा ये किया
कि उसने फर्जी प्रसूति अवकाश लिया और आदिम जाति कल्याण विभाग के अफसरों की
सांठगांठ से 75 दिनों की गैर हाजिरी के फर्जी चिकित्सा प्रमाण पत्र पेश कर
प्रसूति अवकाश का लाभ भी ले लिया। ये फर्जीवाड़ा भी जांच में सिद्ध पाया
गया।
रंजीता जाटव ने एक और घपलेबाजी की। उसने
आदिवासी कन्या आश्रम मोहना की आदिवासी छात्राओं की 1.30 लाख रुपये की
शिष्यवृत्ति की राशि गलत तरीके से आहरित कर ली। इतना ही नहीं वस्तु परख
मूल्यांकन प्रपत्र पर अधीक्षक बालक आश्रम घाटीगांव के फर्जी दस्तखत भी किए।
रंजीता पर अपनी सीआर अपने ही समकक्ष से लिखवाने का भी आरोप है।
ये तमाम फर्जीवाड़े जांच दर जांच की जद
में आए और सिद्ध भी पाए गए। शुरु से ही लापरवाह रहीं रंजीता जाटव के
विरुद्ध तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने 26 फरवरी 2010 को 15 दिन का
वेतन राजसात करने कार्रवाई की। कलेक्टर पी. नरहरि और तत्कालीन मुख्य
कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत सुश्री सूफिया फारुखी ने उसे भविष्य में
किसी भी आश्रम-छात्रावास का अधीक्षक न बनाए जाने की सिफारिश की, बावजूद
इसके मेहरबान अफसरों ने उसे सहायक अध्यापक और फिर अधीक्षक बना दिया।
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