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संविदा शाला शिक्षकों की नियुक्ति में भेदभाव क्यों

जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने संविदा शाला शिक्षकों की नियुक्ति में भेदभाव के आरोप वाली याचिका को गंभीरता से लिया। इसी के साथ राज्य शासन, स्कूल शिक्षा विभाग सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया। इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है।

न्यायमूर्ति सुजय पॉल की एकलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता शाहनगर पन्ना निवासी ओंकार प्रसाद की ओर से अधिवक्ता श्रीमती सुधा गौतम ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता औपचारिकेत्तर शिक्षा केन्द्र में अंकेक्षक बतौर नियुक्त था। जब औपचारिकेत्तर शिक्षा केन्द्र बंद हो गया तो उसकी सेवा स्वमेव समाप्त कर दी गई। लिहाजा, 31 अगस्त 2008-09 को उसने गुरुजी पात्रता परीक्षा दी। 2009 में रिजल्ट आया, उसे उत्तीर्ण घोषित किया गया। उसके साथ हलकई नामक एक अन्य अंकेक्षक ने परीक्षा दी थी, वह भी पास हुआ। इसके आधार पर उसे साल-2010 में संविदा शाला शिक्षक पद पर नियुक्ति दे दी गई। जबकि याचिककार्ता को दरकिनार कर दिया गया। लिहाजा, पहले तो विभागीय स्तर पर आवेदन-निवेदन किया गया। जब कोई नतीजा नहीं निकला तो हाईकोर्ट आना पड़ा। सवाल उठता है कि जब राज्य शासन के आयुक्त स्कूल शिक्षा ने 29 सितम्बर 2014 को सर्कुलर में साफ कर दिया है कि जिनके द्वारा साल 2008-09 में गुरुजी पात्रता परीक्षा पास की गई, उन्हें संविदा शाला शिक्षक बनाया जाए, तो याचिकाकर्ता के साथ भेदभाव क्यों? यह रवैया संविधान के अनुच्छेद-14 अंतर्गत दी गई समानता की परिभाषा के विपरीत होने के कारण चुनौती के योग्य है।
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