मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों को लेकर एक अहम निर्णय सामने आया है। राज्य सरकार ने छात्र नामांकन में लगातार गिरावट को देखते हुए सत्र 2026–27 से करीब 5,000 सरकारी स्कूलों को बंद करने की योजना बनाई है। यह निर्णय मुख्य रूप से उन स्कूलों पर लागू होगा, जहाँ विद्यार्थियों की संख्या बेहद कम रह गई है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के कई सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या चिंताजनक रूप से घट गई है। कई विद्यालयों में 10 से भी कम छात्र पढ़ रहे हैं, वहीं कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहाँ एक ही शिक्षक सभी कक्षाओं को संभाल रहा है। ऐसे में संसाधनों का सही उपयोग और शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखना चुनौती बन गया है।
किन स्कूलों पर पड़ेगा असर?
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ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों के वे स्कूल जहाँ नामांकन नगण्य है
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ऐसे प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय जिनमें वर्षों से छात्रों की संख्या नहीं बढ़ी
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एकल शिक्षक वाले स्कूल, जहाँ पढ़ाई की व्यवस्था प्रभावित हो रही है
छात्रों और शिक्षकों का क्या होगा?
सरकार ने स्पष्ट किया है कि जिन स्कूलों को बंद किया जाएगा, वहाँ पढ़ने वाले छात्रों को नजदीकी बेहतर सुविधाओं वाले स्कूलों में स्थानांतरित किया जाएगा।
वहीं, प्रभावित स्कूलों के शिक्षकों को उन विद्यालयों में पदस्थ किया जाएगा जहाँ शिक्षकों की कमी है, ताकि शैक्षणिक व्यवस्था संतुलित बनी रहे।
शिक्षा व्यवस्था पर क्या पड़ेगा असर?
विशेषज्ञों का मानना है कि बहुत कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद कर उनका विलय करना शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने में मददगार हो सकता है। हालांकि, इसके साथ यह भी जरूरी होगा कि छात्रों के लिए परिवहन, दूरी और सुविधाओं का ध्यान रखा जाए, ताकि उनकी पढ़ाई प्रभावित न हो।
सरकारी स्कूलों में घटता नामांकन बना चिंता का विषय
पिछले कुछ वर्षों में सरकारी स्कूलों से निजी स्कूलों की ओर छात्रों का रुझान बढ़ा है। यही कारण है कि राज्य सरकार अब स्कूलों की संख्या के बजाय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और संसाधनों के बेहतर उपयोग पर जोर दे रही है।
यह फैसला आने वाले समय में मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव की ओर संकेत करता है।