जबलपुर. मप्र हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में कहा,
‘सरकारी स्कूलों के शिक्षक योग्य और शैक्षणिक रूप से प्रावीण्य होने चाहिए।
ताकि लोगों में यह विश्वास कायम हो कि इन स्कूलों में बच्चों को पढऩे भेजा
जा सकता है।’
कोर्ट ने कहा कि उच्च-माध्यमिक स्कूल शिक्षकों के लिए
स्नातकोत्तर परीक्षा में न्यूनतम पचास फीसदी अंक से पास होने की अनिवार्यता
नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन द्वारा नियत की गई है। पीइबी (प्रोफेशनल
एक्जामिनेशनबोर्ड) द्वारा आयोजित की जाने वाली पात्रता परीक्षा में रखी गई
यह शर्त पूरी तरह वैधानिक है। इस मत के साथ चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता व
जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने इस पद के उम्मीदवारों की
याचिका निरस्त कर दी।
सीधी जिला निवासी सत्यभान कुशवाहा व अशांेक कुमार कोल ने याचिका
दायर कर कहा कि पीईबी ने ११ सितंबर २०१८ को प्रदेश भर के सरकारी स्कूलों
में उच्च-माध्यमिक शिक्षकों की भर्ती परीक्षा के लिए आवेदन पत्र आमंत्रित
किए। विज्ञापन की शर्तों की अनुसूची ३ में यह अनिवार्य किया गया है कि इन
पदों के लिए कम से कम पचास फीसदी अंक के साथ स्नातकोत्तर परीक्षा में सफल व
बीएड पास उम्मीदवारों को ही पात्र घोषित किया गया। मप्र स्कूल शिक्षा
(शैक्षणिक संवर्ग ) सेवा शर्तें एवं भर्ती नियम २०१८ के नियम ८ ( २) के तहत
भी उच्च-माध्यमिक स्कू ल शिक्षकों के लिए यही योग्यता निर्धारित की गई है।
याचिका में नियमों को गैरकानूनी बताया गया। अधिवक्ता हितेंद्र गोल्हानी ने
तर्क दिया कि जब याचिकाकर्ताओं ने बीएड कोर्स में प्रवेश लिया था, तब
स्नातकोत्तर परीक्षा में पचास फीसदी अंक अनिवार्य होने की शर्त नहीं थी।
एनसीटीइ ने बनाए नियम
पीइबी की ओर से अधिवक्ता
राहुल दिवाकर व शासकीय अधिवक्ता अमित सेठ ने याचिका का विरोध करते हुए कहा
कि एनसीटीई ने १२ नवंबर २०१४ को जारी सर्कुलर में अपर-मिडिल स्कूल शिक्षकों
को पचास फीसदी अंकों के साथ स्नातकोत्तर पास होने की अनिवार्यता रखी है।
इसके मद्देनजर पीईबी ने भी ये शर्त रखी। अंतिम सुनवाई के बाद कांेर्ट ने इस
शर्त को तर्कसंगत व वैधानिक करार देते हुए याचिका निरस्त कर दी।
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