मूक-बधिर, दृष्टिहीन और अस्थिबाधित विद्यार्थियों के लिए इंदौर सहित प्रदेश
में 12 शासकीय स्कूल हैं। इनमें कक्षा नौवीं से बारहवीं तक पढ़ाने के लिए
44 विशेषज्ञ शिक्षकों की नियुक्ति की जाना है। सामाजिक न्याय विभाग यह
भर्ती एमपी पीएससी के जरिए करा रहा है।
शिक्षक चयन परीक्षा में नियमों की
अनदेखी का मामला डीबी स्टार ने 17 जुलाई के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित
किया था।
नौवीं से बारहवीं तक के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए विषय विशेषज्ञ
शिक्षकों को नियुक्त किया जाता है। इसी तरह दिव्यांग छात्र-छात्राओं को
शिक्षण या प्रशिक्षण देने वाले शिक्षकों का भारतीय पुनर्वास परिषद में
रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। पीएससी की भर्ती विज्ञप्ति में उक्त दोनों का
नियमों का उल्लंघन हो रहा है। यानी भारतीय पुनर्वास परिषद में पंजीयन की
शर्त हटा ली गई थी, जबकि यहां पंजीयन उन्हीं शिक्षकों का होता है, जो
दिव्यांगों की सही ढंग से केयर कर सकते हैं। उनसे उनकी भाषा में विनम्रता
से संवाद कर सकें। इसी तरह विषयवार शिक्षकों को नियुक्त करने का भी
विज्ञप्ति में उल्लेख नहीं है। मैरिट के आधार पर यदि सभी शिक्षक एक ही विषय
के चयनित हो गए तो फिर अन्य विषय वे कैसे पढ़ा पाएंगे?
साक्षात्कार के परिणाम पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक
मूक बधिर संस्था आनंद सर्विस सोसायटी की तरफ से ज्ञानेंद्र
पुरोहित द्वारा दिव्यांग विद्यार्थियों के स्कूल के लिए व्याख्याता पद पर
मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के जरिए हो रही भर्ती विषयवार नहीं होने के विरोध
में उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में 19 जुलाई को जनहित याचिका लगाई गई।
अभिभाषक पीयूष माथुर और अधिवक्ता आशीष चौबे ने मामले की पैरवी की। संस्था
की ओर से निवेदन किया गया, जब सामान्य बच्चों के व्याख्याता की भर्ती
विषयवार होती है तो दिव्यांग बच्चों के व्याख्याता की क्यों नहीं? इस पर
हाईकोर्ट ने साक्षात्कार के परिणाम पर अंतिम निर्णय होने तक रोक लगा दी।
साथ ही सरकार को एक सप्ताह में उत्तर देने के आदेश दिए हैं। 18 और 19 जुलाई
को उम्मीदवारों के इंटरव्यू हुए हैं। यानी अब मैरिट के आधार पर नियुक्ति
होना ही शेष है। जानकारों का कहना है कि नियमों के उल्लंघन के मामले में
भर्ती परीक्षा निरस्त हो सकती है।
आयुक्त का पद रिक्त होने से नहीं हो रही सुनवाई
सालभर से विकलांगों के अधिकारों के सरंक्षण के लिए बने आयुक्त
नि:शक्तजन का पद रिक्त है। इस कारण दिव्यांगजन की कोई सुनवाई नहीं हो पा
रही है। प्रदेश में विकलांग बच्चों की शिक्षा में भारतीय पुनर्वास अधिनियम
1992 के अंतर्गत बने नियमों को अनदेखा कर लोक शिक्षण संचालनालय में विकलांग
बच्चों की समेकित शिक्षा के लिए प्रकोष्ठ का गठन मुख्यमंत्री की घोषणा
अनुसार नहीं किया गया। प्रकोष्ठ में विकलांगता में अप्रशिक्षित उप संचालक,
मनोवैज्ञानिक पदों पर बैठा रखा है। नियमानुसार ऐसे पदों पर विकलांगता में
प्रशिक्षित और पंजीकृत व्यक्ति को ही रखा जा सकता है। विकलांग बच्चों की
शिक्षा के लिए सर्व शिक्षा अभियान अंतर्गत नियुक्त जिला स्तर पर एपीसी
समेकित शिक्षा, मोबाइल स्रोत सलाहकार पद पर कार्यरत कर्मचारियों का
नियमितीकरण नहीं किया जा रहा है। छात्रावास में कार्यरत कर्मचारियों के
वेतन में भी विसंगति है। सामाजिक न्याय विभाग में स्वयंसेवी संस्थाओं में
पदस्थ दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने वाले संविदा कर्मचारियों को नियमित नहीं
किया जा रहा है। जबकि उन्हें व अन्य स्थायी कर्मचारियों को सातवे वेतनमान
का लाभ दिया जाना चाहिए। विकलांगों की पेंशन कई राज्यों में 1000 रुपए
मासिक से अधिक है पर मध्यप्रदेश में मात्र 300 रुपए पेंशन है।
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