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लाखों-करोड़ों का ऑफर ठुकरा बने थे शिक्षक, रिटायरमेंट के बाद संवार रहे गरीबों का भविष्य

मुरैना निवासी लक्ष्मी नारायण मित्तल ने लंदन यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद भी शिक्षा की अलख जगाने के देश में सेवाएं दी, रिटायरमेंट के बाद दस साल तक उत्तराखंड में पहाड़ी बच्चों को निःशुल्क पढ़ाया।
अब चम्बल जोन में शिक्षण पद्धति में बदलाव को लेकर लगातार प्रयास कर रहे हैं। लक्ष्मीनारायण मित्तल लगभग पांच सालों से मुरैना जिले के बच्चों और कोचिंग सेंटर्स पर निःशुल्क शिक्षा का दान कर रहे हैं। साथ ही वह पढ़ाने के तरीके में बदलाव के टिप्स स्थानीय शिक्षकों को भी दे रहे हैं।
डॉक्टर मित्तल का मानना है कि वर्तमान में शिक्षा सूचनाओं की तरह दी जा रही है। आवश्यक है कि शिक्षा को सूचनाओं से ज्ञान की ओर ले जाया जाए। साथ ही तरीकों को मानने से ज्यादा जरुरी जानना हो, ताकि बच्चे शिक्षित नहीं बल्कि दक्ष हों। 62 साल की उम्र में रिटायर्ड होने के बाद उन्होंने दस साल तक समाजसेवी संस्था सिद्धा में काम किया। यह संस्था मुख्य रूप से उत्तराखंड के गरीब पहाड़ी बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का काम करती है।

इसके साथ ही उन्होंने मसूरी के लाल बहादुर नेशनल एकेडमी फॉर एडमिनिस्ट्रेशन में गेस्ट लेक्चरर के तौर पर भी काम किया, वहां वह आईएएस को गांधी के विचारो के बारे में पढ़ाते थे। आज भी अस्सी साल की उम्र में वह लगातार होनहार और अपने करियर के प्रति जागरूक बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देते हैं। इसके साथ ही वह अपने लेखों के माध्यम से शिक्षा प्रणाली शिक्षण पद्धति बदलाव को लेकर लगातार प्रयासरत हैं।

यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे लक्ष्मीनारायण मित्तल
लक्ष्मीनारायण मित्तल शुरू से प्रतिभावान छात्र रहे हैं। साल 1959 में जब भाषा विज्ञान (लिंगविस्टिक) का कोर्स शुरू हुआ, तब केवल आगरा और पूना दो यूनिवर्सिटी में था। उन्होंने अपने सीनियरों की सलाह पर डिग्री ली, साथ ही यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे। इसी के चलते कॉमनवेल्थ फेलोशिप के तहत उनका चयन लन्दन यूनिवर्सिटी से भाषा विज्ञान में आगे के प्रशिक्षण और पीएचडी के लिए हुआ, तब वह 19964 से 1966 तक लन्दन में रहे।


वहां भी उन्होंने शिक्षण पद्धति को प्रभावी बनाने के लिए कई आंदोलन किए। इस दौरान उन्हें बीबीसी हिंदी में न्यूज एंकर बनने से लेकर नौकरी तक के ऑफर मिले। चूंकि घर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने की वजह से उनके मन में भी देश के लिए कुछ बेहतर करने की भावना थी। इसलिए वह भारत लौट आये, देश कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में बतौर प्रोफेसर पढ़ाया। वह बतौर यूजीसी के संयुक्त सचिव भी पदस्थ रहे। वर्तमान में डॉक्टर मित्तल रक्षा विभाग के हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य हैं।

इतनी बड़ी शख्सियत के बीच रहना गौरव की बात
मुरैना शहर के शिक्षक इस बात से अपने आपको काफी गौरवान्वित महसूस करते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र की इतनी  बड़ी सख्शियत उनके बीच रहती है, उनके अनुभवों का उन्हें समय-समय पर लाभ मिलता रहता है। कोचिंग संचालन कर बच्चों को शिक्षक बनने की शिक्षा देने वाले राम कुमार सिंह सिकरवार मानते हैं कि डॉक्टर मित्तल के मार्गदर्शन और अनुभवों के चलते कई बच्चे आज बड़े-बड़े पदों पर पहुंचे हैं।

80 साल की उम्र में भी दे रहे मुफ्त तालीम
अमूमन देखा जाता है कि इतने साल तक उच्च पदों पर रहने के बाद व्यक्ति किसी बड़े शहर को अपना आशियाना बना लेता है। लेकिन डॉक्टर मित्तल मुरैना जैसी छोटी जगह में रह रहे हैं और शिक्षा के लिए अस्सी साल की उम्र में काम कर रहे हैं। जो वाकई कबीले तारीफ है।

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