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इन नियमों में संशोधन की क्यों उठी विधानसभा में मांग

तत्काल मिलनी चाहिए अनुकम्पा नियुक्ति, विधायक सिसौदिया ने उठाया विधानसभा में मुद्दा
मंदसौर/रतलाम. शिक्षा के अधिकार नियम के तहत शिक्षक के लिए बीएड और डीएड करना अनिवार्य हो गया है लेकिन इस नियम से अनुकंपा नियुक्ति पाने वालों को परेशानी हो रही है।
क्योंकि यदि किसी शिक्षक की असामायिक मृत्यु हो गई तो वह मृत्यु से पहले अपने परिवार के किसी बेटा-बेटी को तैयार नहीं करेगा कि वह बीएड इसलिए कर लें क्योंकि उसका निधन होने वाला है। इसीलिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अनुकम्पा नियुक्ति मिल जाएं और उसके बाद हितग्राही निर्धारित समय सीमा में बीएड, डीएड की योग्यता प्राप्त कर लें। यह बात वरिष्ठ विधायक यशपालसिंह सिसौदिया ने मध्यप्रदेश विधानसभा में स्कूल शिक्षा विभाग की मांग संख्या 27, 40 का समर्थन करते हुए कहींं। उन्होंने कहा कि अतांराकिंक प्रश्न के जवाब में बताया गया है कि उज्जैन सभंाग के विद्यालय परिसरों में 149 प्राथमिक, 30 हायर सेकण्डरी स्कूलों में अतिक्रमण पाया गया, 407 प्राथमिक विद्यालय और माध्यमिक विद्यालय तथा 188 हाईस्कूल और हायर सेकण्डरी स्कूल की भूमियों में अभी तक राजस्व रिकार्ड में स्कूल के नाम दर्ज ही नहीं है। इसी प्रश्न में रतलाम जिले में एक, नीमच में दो और मंदसौर जिले में एक स्कूल की भूमि पर नगरपालिका ओर नगर परिषद ने अतिक्रमण कर दुकानें बना ली और उनका आक्शन कर दिया। संपत्ति का किराया भी नगरपालिका और नगर परिषद ले रही है लेकिन यह किराये की यह राशि शाला विकास समिति को मिलनी चाहिए और आक्शन में जो पैसा आया है वह भी शिक्षा विभाग को लोैटाया जाना चाहिए ताकि उस राशि से स्कूल की बाउंड्रीवाल, अंधोसंरचना सहित दूसरे विकास के काम हो सके। सिसौदिया ने प्रतिनियुक्ति का मामला उठाते हुए कहा कि प्रदेश में शिक्षकों की कमी है लेकिन फिर भी कई जगहों पर प्रतिनियुक्ति के माध्यम से बरसो से शिक्षक कार्यालयों में पदस्थ है, इन्हें भी हटाना चाहिए।

शक्ति प्रदर्शन में विद्यार्थियों का उपयोग बंद हो

विधायक यशपालसिंह सिसोदिया ने विधानसभा में अशासकीय संकल्प प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रदेश में हाईस्कूल, हायर सेकण्डरी व अन्य परीक्षाऐ प्रतिवर्ष मार्च माह के प्रथम सप्ताह में प्रारंभ होती है इसलिएं विभिन्न शासकीय एवं अशासकीय संस्थाओं द्वारा व्यक्तिव विकास एवं खेलकुद की सभी गतिविधियां 31 दिसम्बर के बाद आयोजित करने पर पूरी तरह से प्रतिबंधित होना चाहिए। इसके अलावा कतिपय सामाजिक संस्थाओं द्वारा अपने शक्ति प्रदर्शन में स्कूली बच्चों को रैली के रूप में घूमाने पर भी रोक लगनी चाहिए। इसके लिए कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति बने जिसमें विधायक सहित सभी जनप्रतिनिधि सम्मिलित हो और आवश्यकता होने पर यह समिति तय करें कि बच्चें रैली में जाएंगे या नहीं। कतिपय संस्थाएं प्राचार्य पर दबाव बनाकर विद्यालय की छुट्टी करवा लेती है और बच्चों को रैलियों में ले जाती है।

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