श्योपुर। जिनके इरादे मजबूत होते हैं, उनके सामने कोई भी बाधा नहीं बनती। आज के दौर में जहां शिक्षा एक पेशा बन गई है और शिक्षक पेशेवर हो गये हैं। दूसरी ओर, अभी ऐसे शिक्षक जिंदा हैं जो बिना किसी लोभ के शिक्षा की अलख लोगों के दिलों में जला रहे हैं। एक ऐसे ही कहानी है मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में रहने वाले एक सेवानिवृत्त दिव्यांग शिक्षक की।
सेवानिवृत्त दिव्यांग शिक्षक आदिवासी समाज में शिक्षा की अलख जगा रहा है। वह भी अनूठे तरीके से, राष्ट्रपति सम्मान से पुरुष्कृत यह दिव्यांग सेवानिवृत्त टीचर अंचल में एक मिशाल बना हुए है। श्योपुर जिले के आदिवासी ब्लॉक में रहने वाले 65 साल के दिव्यांग सेवानिवृत्त टीचर नन्दलाल कोटिया लोगों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।
अपने सेवाकाल के दौरान भी वो खेल-खेल में पढ़ाने के अनूठे तरीको को लेकर प्रदेश में अपनी पहचान रखते थे। लेकिन अब सेवानिवृत्ति के बाद रोजाना सुबह शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए कराहल अंचल की आदिवासी बस्तियों, मज़रो और टोलों में निकल पड़ते हैं। दिव्यांग नन्दलाल मदारी के वेश में अपने हाथों में डमरू थाम घरों के बाहर पहुंच कर डमरू बजाते हैं। बच्चे उन्हें घेर लेते हैं।

फिर शुरू होती है नन्दलाल की क्लास, जिसमे वे बच्चों और उनके अभिभावको को शिक्षा का महत्त्व बताते हैं। वे बच्चों को गिफ्ट भी देते हैं। खास बात ये है कि सभी गिफ्टस वे अपनी पेंशन के आधे हिस्से से खरीदकर लाते हैं, जबकि आधी पेंशन से आजीविका चलाते हैं।
दोनों पैरों से दिव्यांग हैं नन्दलाल
सेवानिवृत्त शिक्षक नन्दलाल कोटिया जन्म से ही दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद शिक्षा का उजियारा फैलाने में जुटे हैं। वे हर दिन अलग-अलग स्लोगन लिखे पोस्टर पहनकर डमरू बजा कर बच्चों को पढ़ाते भी हैं, तो उन्हें स्कूल आने के लिए प्रेरित करते हैं।
नन्दलाल को मिला चुका है राष्ट्रपति सम्मान
सेवानिवृत्त टीचर कोटिया के उल्लेखनीय कार्यों के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के हाथों पुरस्कृत किया जा चुका है। रिटायर दिव्यांग टीचर नन्दलाल ने अब तक सैकड़ों बच्चों की मदद कर सरकारी सेवा में पहुंचाया है। वे कुछ किताबें भी लिख चुके हैं।
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सेवानिवृत्त दिव्यांग शिक्षक आदिवासी समाज में शिक्षा की अलख जगा रहा है। वह भी अनूठे तरीके से, राष्ट्रपति सम्मान से पुरुष्कृत यह दिव्यांग सेवानिवृत्त टीचर अंचल में एक मिशाल बना हुए है। श्योपुर जिले के आदिवासी ब्लॉक में रहने वाले 65 साल के दिव्यांग सेवानिवृत्त टीचर नन्दलाल कोटिया लोगों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।
अपने सेवाकाल के दौरान भी वो खेल-खेल में पढ़ाने के अनूठे तरीको को लेकर प्रदेश में अपनी पहचान रखते थे। लेकिन अब सेवानिवृत्ति के बाद रोजाना सुबह शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए कराहल अंचल की आदिवासी बस्तियों, मज़रो और टोलों में निकल पड़ते हैं। दिव्यांग नन्दलाल मदारी के वेश में अपने हाथों में डमरू थाम घरों के बाहर पहुंच कर डमरू बजाते हैं। बच्चे उन्हें घेर लेते हैं।
फिर शुरू होती है नन्दलाल की क्लास, जिसमे वे बच्चों और उनके अभिभावको को शिक्षा का महत्त्व बताते हैं। वे बच्चों को गिफ्ट भी देते हैं। खास बात ये है कि सभी गिफ्टस वे अपनी पेंशन के आधे हिस्से से खरीदकर लाते हैं, जबकि आधी पेंशन से आजीविका चलाते हैं।
दोनों पैरों से दिव्यांग हैं नन्दलाल
सेवानिवृत्त शिक्षक नन्दलाल कोटिया जन्म से ही दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद शिक्षा का उजियारा फैलाने में जुटे हैं। वे हर दिन अलग-अलग स्लोगन लिखे पोस्टर पहनकर डमरू बजा कर बच्चों को पढ़ाते भी हैं, तो उन्हें स्कूल आने के लिए प्रेरित करते हैं।
नन्दलाल को मिला चुका है राष्ट्रपति सम्मान
सेवानिवृत्त टीचर कोटिया के उल्लेखनीय कार्यों के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के हाथों पुरस्कृत किया जा चुका है। रिटायर दिव्यांग टीचर नन्दलाल ने अब तक सैकड़ों बच्चों की मदद कर सरकारी सेवा में पहुंचाया है। वे कुछ किताबें भी लिख चुके हैं।
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