मध्यप्रदेश में फिजिकल डिसेबिलिटी का सर्टिफिकेट लगाकर सरकारी नौकरी प्राप्त करने के मामले में स्कूल शिक्षा विभाग एवं जनजातीय कार्य विभाग के अंतर्गत संचालित स्कूलों में पदस्थ किए गए शिक्षकों की दिव्यांगता का परीक्षण किया जाना है। भोपाल से लेकर चौपाल तक तमाम आदेश जारी हो गए। प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद पता चला कि, संदिग्ध शिक्षकों की दिव्यांगता का परीक्षण जिला स्तर पर नहीं किया जा सकता। आनन-फानन में इसके लिए गठित मेडिकल बोर्ड को भंग कर दिया गया। अब मामला फिर से डीपीआई भोपाल के पास आ गया है।
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शिक्षण संचालनालय ने समस्त जिलों को आदेश जारी किया था। पालन में सभी
जिलों में मेडिकल बोर्ड का गठन कर दिया गया था। परीक्षण की प्रक्रिया भी
शुरू हो गई थी। इसी दौरान शिवपुरी जिले में डॉक्टरों की टीम ने बताया कि,
यह सर्टिफिकेट जिला स्तर से जारी हुआ है। इसका परीक्षण जिला स्तर पर नहीं
किया जा सकता। यह नियम विरुद्ध है। इसका परीक्षण कम से कम संभाग स्तर पर
होना चाहिए या फिर राज्य स्तर पर एक साथ होना चाहिए। यह जानकारी कंफर्म
होते ही शिवपुरी जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ आर के चौधरी ने शिक्षकों
की मेडिकल जांच के लिए गठित किए गए बोर्ड को भंग कर दिया।
सवाल
यह है कि डीपीआई भोपाल के अधिकारियों का प्रशासनिक सामान्य ज्ञान गड़बड़
है या फिर कोई और बात है, अन्यथा क्या कारण है जो जिला स्तर के मेडिकल
सर्टिफिकेट की जांच करने के लिए जिला स्तर की टीम गठित करने के आदेश जारी
कर दिए। डीपीआई भोपाल की ओर से शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के दौरान ऐसे कई
आदेश जारी किए गए हैं जो नियम विरुद्ध है। कुछ मामलों में तो हाई कोर्ट ने
फटकार लगाई है और आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ताओं को प्रक्रिया में शामिल
किया गया है। ताजा मामले में यदि जिला स्तरीय मेडिकल बोर्ड की ओर से
परीक्षण किया जाए तो समस्त शिक्षक इसके खिलाफ हाईकोर्ट जा सकते हैं और स्टे
आर्डर प्राप्त करके नौकरी पर वापस आ सकते हैं। क्या डीपीआई भोपाल में कोई
ऐसा है जो यह चाहता है कि, किसी भी प्रकार की गड़बड़ी करके शिक्षक बने
अपराधी, सरकारी नौकरी में बने रहें।