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हाईकोर्ट के निर्देश पर विवि में असि. प्रोफेसर भर्ती की जांच शुरू, हर केस की बनेगी रिपोर्ट

भास्कर संवाददाता | सागर डॉ. हरीसिंह गौर विवि में हुआ असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति घोटाला एक बार फिर चर्चाओं में है। असिस्टेंट प्रोफेसर द्वारा नियमितीकरण को लेकर हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका निरस्त होने के बाद अब विवि प्रशासन ने हाईकोर्ट के निर्देश पर एक बार फिर से मामले की जांच शुरू कर दी है।
अफसरों का कहना है कि इस बार वे केस टू केस इंवेस्टिगेशन किया जा रहा हैं। तय समय सीमा यानी दो माह के भीतर जांच रिपोर्ट पूरी कर हाईकोर्ट के समक्ष पेश की जाएगी। वहीं दूसरी तरफ फर्जी तरीके से नियुक्त हुए असिस्टेंट प्रोफेसर अब विवि में अपनी नौकरी पर संकट भांपकर दूसरी जगह की तलाश में जुट गए हैं।

हाईकोर्ट ने चयन प्रक्रिया दागदार और असंवैधानिक बताते हुए यह दिए थे निर्देश

मप्र हाईकोर्ट ने डॉ हरीसिंह गौर विवि के 80 असिस्टेंट प्रोफेसर्स के नियमितिकरण की याचिका खारिज करते हुए, विवि को दो माह के भीतर जांच पूरी कर कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2017 में विवि के असिस्टेंट प्रोफेसर्स ने विवि में नियमितीकरण के हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर कोर्ट ने विवि से भी जवाब मांगेे थे। मामले की सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विजय कुमार ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि विवि में इन नियुक्तियों के लिए रोस्टर का पालन नहीं किया गया। वहीं जहां पद नहीं थे वहां भी नियुक्तियां कर ली गईं। यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार 50 फीसदी अकादमिक रिकॉर्ड, 30 फीसदी व्यक्ति की जानकारी और 20 फीसदी इंटरव्यू के आधार पर मेरिट लिस्ट तैयार होती है, लेकिन इस प्रकार की मेरिट लिस्ट विवि ने नहीं बनाई। चयन प्रक्रिया दागदार और असंवैधानिक है। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए मामले को आपराधिक षड्यंत्र बताया और साथ ही यह भी कहा कि मामले में तत्कालीन कुलपति प्रो. एनएस गजभिए समेत अन्य लोगों पर सीबीआई ने प्रकरण भी पंजीबद्ध किए हैं।

2013 में भास्कर ने उजागर किया था नियुक्ति घोटाला

डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में वर्ष 2013 में हुए असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती घोटाले को दैनिक भास्कर ने उजागर किया था। जिसमें बताया गया था कि विवि में किस तरह से पहले तो 76 पदों के रोस्टर पर 82 पदों पर नियुक्तियों का विज्ञापन निकाला गया और बाद में 151 की नियुक्ति कर ली गई। घोटाले की शिकायत सीबीआई तक पहुंची। सीबीआई ने मामले की जांच करते हुए विवि के पूर्व कुलपति प्रो. एनएस गजभिए के अलावा 4 असिस्टेंट प्रोफेसर एवं सिलेक्शन कमेटी के करीब दर्जन भर लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया था। इस मामले की सुनवाई सीबीआई की विशेष कोर्ट में की जा रही है।

बर्खास्त हुए 11 असिस्टेंट प्रोफेसर की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज, अब 18 अप्रैल को हाईकोर्ट में हो सकता है फैसला

शुरुआती जांच के बाद 22 असिस्टेंट प्रोफेसरों को बर्खास्त किया गया था। 2015 में इनका मामला राष्ट्रपति के पास पहुंचा। जिसके बाद 11 की बर्खास्तगी को सही ठहराते हुए, उन्हें 2017 में फिर से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। योग्य पाए जाने पर 7 लोगों की बर्खास्तगी निरस्त कर दी गई। दो को कोर्ट से स्थगन मिलने और दो अपने हलफनामों के कारणों से फिलहाल बचे हुए हैं। मामले में बर्खास्त हुए 11 असिस्टेंट प्रोफेसर ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई एक साथ की जा रही है। ऐसे में बर्खास्त किए गए असिस्टेंट प्रोफेसर अपने मामले की अलग से सुनवाई कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, जहां उनकी याचिका 28 मार्च को खारिज कर दी गई। अब हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 18 अप्रैल को है।

Ãहाईकोर्ट के निर्देश के बाद विवि प्रशासन द्वारा कमेटी गठित कर जांच शुरू कर दी गई है। हम केस टू केस इन्वेस्टिगेशन कर रहे हैं। तय समय सीमा में ही रिपोर्ट पूरी कर हाईकोर्ट के समक्ष पेश की जाएगी। -विवेक दुबे, रजिस्ट्रार सागर विवि

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