मंदसौर। जिले के 217 स्कूल ऐसे हैं जिनमें 20 से कम बच्चे पढ़ रहे हैं
जबकि इन स्कूलों में दो से तीन शिक्षक हैं। कुछ स्कूल जहां सकारात्मक
परिणाम नहीं दे रहे, वहीं शासन पर वित्तीय भार भी बढ़ रहा है। इन सभी
स्कूलों को युक्तियुक्तकरण या एक-दूसरे में समाहित कर बंद करने के लिए
राज्य शिक्षा केंद्र ने कलेक्टर को निर्देश जारी कर दिए हैं।
शासन द्वारा उठाए गए कदम से लगभग 450 शिक्षकों का एक स्कूल से दूसरे स्कूल में जाना तय माना जा रहा है।
जिले के 217 प्राथमिक विद्यालय में 20 से कम बच्चे होने के बाद भी नियमों के कारण कम से कम दो शिक्षक इन स्कूलों में कार्यरत हैं। स्थिति यह है कि इन स्कूलों में पढ़ रहे प्रत्येक बच्चे पर सरकार को साढ़े छह हजार रुपए प्रतिमाह खर्च करना पड़ रहे हैं। इस संबंध में नईदुनिया ने 12 मई के अंक में '3255 बच्चों पर सालाना 26 करोड़ खर्च' शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। इसमें शासन को हो रहे वित्तीय नुकसान के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया था। अब राज्य शिक्षा केंद्र आयुक्त दीप्ति गौड़ ने कलेक्टर को निर्देश जारी कर इन स्कूलों को एक-दूसरे में समाहित कर या युक्तियुक्तकरण पद्घति से बंद करने के निर्देश दिए हैं।
अन्य जगह खोले
जाएंगे स्कूल
आदेश में साफ कहा गया है कि 20 से कम बच्चों वाले स्कूल शासन पर अत्यधिक भार बढ़ा रहे हैं। इन स्कूलों का युक्तियुक्तकरण कर ऐसे स्थानों पर प्रारंभ किया जाए, जहां एक किमी की परिधि में कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं हो। साथ ही उस क्षेत्र में 6 से 11 वर्ष की उम्र के कम से कम 40 बच्चे हों।
जहां जरूरत है, वहां
भेजो शिक्षकों को
एक ही शाला प्रांगण में लग रहे प्राथमिक विद्यालय में मूल संस्था को यथावत रखते हुए शेष स्कूलों को आवश्यकता वाले स्थान पर स्थानांतरित करने के आदेश दिए गए हैं। अगर यह संभव नहीं है तो ऐसी संस्थाओं को आपस में समाहित कर दिया जाए। अतिशेष शिक्षकों का स्थानांतरण कर उन्हें पद रिक्त होने वाले स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया जाए। संस्था प्रमुखों के भी अतिशेष होने की स्थिति में उन्हें इधर से उधर किया जाए।
परिणाम में भी फिसड्डी
प्राथमिक विद्यालयों की अपेक्षा माध्यमिक विद्यालयों में आधे से भी कम बच्चे हैं। मतलब जो बच्चे प्राथमिक विद्यालय में दर्ज किए जा रहे हैं, वे माध्यमिक विद्यालयों तक नहीं पहुंच रहे। प्राथमिक विद्यालय में वर्ष 2011-12 में बच्चों की संख्या 1.25 लाख से ज्यादा थी। अभी माध्यमिक विद्यालय में बच्चों की संख्या इसके आसपास ही होना चाहिए। लेकिन वर्तमान में माध्यमिक विद्यालय में 46,795 बच्चे मौजूद हैं। करीब 80 हजार बच्चे माध्यमिक विद्यालय तक पहुंचे ही नहीं।
निर्देश मिले हैं
बीस से कम छात्र संख्या वाले 217 स्कूलों की जानकारी भेजी गई थी। अब इन स्कूलों को युक्तियुक्तकरण और समाहित करने संबंधित आदेश मिले हैं। इस पर कार्रवाई की जाएगी।
-अनिल भट्ट
परियोजना अधिकारी
जिला शिक्षा केंद्र, मंदसौर
स्कूलों पर खर्च
शिक्षकों की तनख्वाह : 5 हजार से 40 हजार
मध्यान्ह भोजन पर खर्च : 3.76 रुपए प्रति बच्चा
आकस्मिक निधि : 5 हजार रुपए सालाना
स्कूल यूनिफॉर्म : लगभग 200 रुपए प्रति बच्चा
किताबें : 100 से 300 रुपए प्रति बच्चा
छात्रवृत्ति : तीसरी कक्षा के बाद वर्ग के अनुसार
इस तरह से हो रहा है नुकसान
*हर स्कूल में दो से तीन शिक्षक हैं। इनमें 400 की तनख्वाह 15 से 40 हजार है।
*प्रतिभा पर्व और हाथ धुलाई जैसे कार्यक्रम में ही स्कूलों में 15 से अधिक बच्चे नहीं पहुंच पा रहे।
*चार स्कूलों में एक भी बच्चा नहीं है। यह स्कूल कागज पर चल रहे हैं।
*35 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए जबकि 9 से 19 छात्रों पर दो शिक्षक कार्यरत हैं।
*प्रति बच्चे के मान से खर्च निकाला जाए। तो शहर के निजी स्कूलों से ज्यादा खर्च इन बच्चों पर हो रहा है।
*जिले में मौजूद 1299 प्राथमिक विद्यालय में से सिर्फ 6 स्कूल ऐसे हैं, जहां 100 या इससे अधिक बच्चे हैं।
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शासन द्वारा उठाए गए कदम से लगभग 450 शिक्षकों का एक स्कूल से दूसरे स्कूल में जाना तय माना जा रहा है।
जिले के 217 प्राथमिक विद्यालय में 20 से कम बच्चे होने के बाद भी नियमों के कारण कम से कम दो शिक्षक इन स्कूलों में कार्यरत हैं। स्थिति यह है कि इन स्कूलों में पढ़ रहे प्रत्येक बच्चे पर सरकार को साढ़े छह हजार रुपए प्रतिमाह खर्च करना पड़ रहे हैं। इस संबंध में नईदुनिया ने 12 मई के अंक में '3255 बच्चों पर सालाना 26 करोड़ खर्च' शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। इसमें शासन को हो रहे वित्तीय नुकसान के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया था। अब राज्य शिक्षा केंद्र आयुक्त दीप्ति गौड़ ने कलेक्टर को निर्देश जारी कर इन स्कूलों को एक-दूसरे में समाहित कर या युक्तियुक्तकरण पद्घति से बंद करने के निर्देश दिए हैं।
अन्य जगह खोले
जाएंगे स्कूल
आदेश में साफ कहा गया है कि 20 से कम बच्चों वाले स्कूल शासन पर अत्यधिक भार बढ़ा रहे हैं। इन स्कूलों का युक्तियुक्तकरण कर ऐसे स्थानों पर प्रारंभ किया जाए, जहां एक किमी की परिधि में कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं हो। साथ ही उस क्षेत्र में 6 से 11 वर्ष की उम्र के कम से कम 40 बच्चे हों।
जहां जरूरत है, वहां
भेजो शिक्षकों को
एक ही शाला प्रांगण में लग रहे प्राथमिक विद्यालय में मूल संस्था को यथावत रखते हुए शेष स्कूलों को आवश्यकता वाले स्थान पर स्थानांतरित करने के आदेश दिए गए हैं। अगर यह संभव नहीं है तो ऐसी संस्थाओं को आपस में समाहित कर दिया जाए। अतिशेष शिक्षकों का स्थानांतरण कर उन्हें पद रिक्त होने वाले स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया जाए। संस्था प्रमुखों के भी अतिशेष होने की स्थिति में उन्हें इधर से उधर किया जाए।
परिणाम में भी फिसड्डी
प्राथमिक विद्यालयों की अपेक्षा माध्यमिक विद्यालयों में आधे से भी कम बच्चे हैं। मतलब जो बच्चे प्राथमिक विद्यालय में दर्ज किए जा रहे हैं, वे माध्यमिक विद्यालयों तक नहीं पहुंच रहे। प्राथमिक विद्यालय में वर्ष 2011-12 में बच्चों की संख्या 1.25 लाख से ज्यादा थी। अभी माध्यमिक विद्यालय में बच्चों की संख्या इसके आसपास ही होना चाहिए। लेकिन वर्तमान में माध्यमिक विद्यालय में 46,795 बच्चे मौजूद हैं। करीब 80 हजार बच्चे माध्यमिक विद्यालय तक पहुंचे ही नहीं।
निर्देश मिले हैं
बीस से कम छात्र संख्या वाले 217 स्कूलों की जानकारी भेजी गई थी। अब इन स्कूलों को युक्तियुक्तकरण और समाहित करने संबंधित आदेश मिले हैं। इस पर कार्रवाई की जाएगी।
-अनिल भट्ट
परियोजना अधिकारी
जिला शिक्षा केंद्र, मंदसौर
स्कूलों पर खर्च
शिक्षकों की तनख्वाह : 5 हजार से 40 हजार
मध्यान्ह भोजन पर खर्च : 3.76 रुपए प्रति बच्चा
आकस्मिक निधि : 5 हजार रुपए सालाना
स्कूल यूनिफॉर्म : लगभग 200 रुपए प्रति बच्चा
किताबें : 100 से 300 रुपए प्रति बच्चा
छात्रवृत्ति : तीसरी कक्षा के बाद वर्ग के अनुसार
इस तरह से हो रहा है नुकसान
*हर स्कूल में दो से तीन शिक्षक हैं। इनमें 400 की तनख्वाह 15 से 40 हजार है।
*प्रतिभा पर्व और हाथ धुलाई जैसे कार्यक्रम में ही स्कूलों में 15 से अधिक बच्चे नहीं पहुंच पा रहे।
*चार स्कूलों में एक भी बच्चा नहीं है। यह स्कूल कागज पर चल रहे हैं।
*35 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए जबकि 9 से 19 छात्रों पर दो शिक्षक कार्यरत हैं।
*प्रति बच्चे के मान से खर्च निकाला जाए। तो शहर के निजी स्कूलों से ज्यादा खर्च इन बच्चों पर हो रहा है।
*जिले में मौजूद 1299 प्राथमिक विद्यालय में से सिर्फ 6 स्कूल ऐसे हैं, जहां 100 या इससे अधिक बच्चे हैं।
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