कटनी/ढीमरखेड़ा। जिले की शासकीय प्राथमिक माध्यमिक शाला गौरा में दूसरे सरकारी स्कूलों की तरह बच्चों की संख्या नहीं घट रही है। कारण शिक्षकों द्वारा स्कूल को अपग्रेड करने के लिए किया गया अनूठा प्रयास। बीते वर्षों के दौरान स्कूल में बच्चों की संख्या लगातार घट रही थी।
यहां पढ़ा रहे शिक्षकों ने बच्चों की घटती संख्या का कारण जाना तो पता चला कि बच्चे निजी स्कूलों की गार्डनिंग और सफाई पर आकर्षित होकर सरकारी स्कूल छोड़ रहे हैं।
शिक्षकों ने भी ठाना कि वे अपने स्कूल में निजी स्कूलों जैसी व्यवस्था करेंगे। इसके लिए प्रधानपाठक महेंद्र सिंह ठाकुर व अन्य शिक्षकों ने अपने-अपने वेतन से चंदा इक_ा किया और स्कूल में जरूरी काम शुरू कराए। व्यवस्था सुधारने में करीब 1 लाख रुपये खर्च किए गए हैं। पालक शिक्षक संघ के सदस्यों ने भी आर्थिक मदद की। पहले जर्जर हो चुके स्कूल की मरम्मत की गई। इसके बाद पेंट से पुताई कराई गई। स्कूल में एक गार्डन बनवाया, ताकि बच्चों को अच्छा वातावरण मिल सके। इस गार्डन में 50 प्रकार के पौधे लगाए गए हैं।
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इनमें 10 प्रकार के तो गुलाब ही हैं। साथ ही मधुकामनी, बाम, सुपारी, नारियल, चंदन, गेंदा, किस्मसटी, कदम, गुलमोहर, जासौन, रातरानी, जसवंती, बेहलिया, मनीप्लाट और बैगनबोलिया के पौधे लगाए गए। बच्चों को शौचालय की सुविधा मिले, इसके लिए ऊपर पानी की टंकी लगवाई। अंदर तक नल का कनेक्शन कराया। यहां हर दिन सफाई की जिम्मेदारी भी सभी शिक्षक संभालते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए स्कूल में मंच भी नहीं था।
इसके कारण गांव से तखत मंगवाकर मंच बनवाना पड़ता था। यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए मंच बनवाया गया। शिक्षा के साथ बच्चों को गीत-संगीत की शिक्षा मिले, इसके लिए स्कूल में ही हारमोनियम, तबला, ढोलक और बैंजों सहित अन्य सामानों की व्यवस्था की गई।
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यहां पढ़ाई के साथ ही अब हर बच्चा संगीत की भी शिक्षा लेता है। साफ पानी के लिए स्कूल में फिल्टर लगवाया गया है। अंग्रेजी का शिक्षक नहीं होने पर सभी शिक्षकों ने एक अतिथि शिक्षक की भी नियुक्ति की है। स्कूल बंद होने से पहले शिक्षकों द्वारा पौधों की सिंचाई कराई जाती है। स्कूल की दीवारों पर महापुरुषों व मानचित्रों को दर्शाया गया है। प्रधानपाठक महेंद्र सिंह बताते हैं कि इस तरह की व्यवस्था होने के स्कूल से बच्चों का बाहर जाना रुक गया है। जो बच्चे स्कूल छोड़कर चले गए थे, वे भी अब वापस आ रहे हैं।
यहां पढ़ा रहे शिक्षकों ने बच्चों की घटती संख्या का कारण जाना तो पता चला कि बच्चे निजी स्कूलों की गार्डनिंग और सफाई पर आकर्षित होकर सरकारी स्कूल छोड़ रहे हैं।
शिक्षकों ने भी ठाना कि वे अपने स्कूल में निजी स्कूलों जैसी व्यवस्था करेंगे। इसके लिए प्रधानपाठक महेंद्र सिंह ठाकुर व अन्य शिक्षकों ने अपने-अपने वेतन से चंदा इक_ा किया और स्कूल में जरूरी काम शुरू कराए। व्यवस्था सुधारने में करीब 1 लाख रुपये खर्च किए गए हैं। पालक शिक्षक संघ के सदस्यों ने भी आर्थिक मदद की। पहले जर्जर हो चुके स्कूल की मरम्मत की गई। इसके बाद पेंट से पुताई कराई गई। स्कूल में एक गार्डन बनवाया, ताकि बच्चों को अच्छा वातावरण मिल सके। इस गार्डन में 50 प्रकार के पौधे लगाए गए हैं।
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इसके कारण गांव से तखत मंगवाकर मंच बनवाना पड़ता था। यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए मंच बनवाया गया। शिक्षा के साथ बच्चों को गीत-संगीत की शिक्षा मिले, इसके लिए स्कूल में ही हारमोनियम, तबला, ढोलक और बैंजों सहित अन्य सामानों की व्यवस्था की गई।
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यहां पढ़ाई के साथ ही अब हर बच्चा संगीत की भी शिक्षा लेता है। साफ पानी के लिए स्कूल में फिल्टर लगवाया गया है। अंग्रेजी का शिक्षक नहीं होने पर सभी शिक्षकों ने एक अतिथि शिक्षक की भी नियुक्ति की है। स्कूल बंद होने से पहले शिक्षकों द्वारा पौधों की सिंचाई कराई जाती है। स्कूल की दीवारों पर महापुरुषों व मानचित्रों को दर्शाया गया है। प्रधानपाठक महेंद्र सिंह बताते हैं कि इस तरह की व्यवस्था होने के स्कूल से बच्चों का बाहर जाना रुक गया है। जो बच्चे स्कूल छोड़कर चले गए थे, वे भी अब वापस आ रहे हैं।