राजधानी सहित प्रदेश भर के कॉलेजों में संचालित बैचलर ऑफ एजुकेशन (बीएड) और मास्टर ऑफ एजुकेशन (एमएड) कोर्स की अवधि दो साल से घटाकर एक साल करने की मांग तेज हो गई है। कॉलेजों ने इस साल बीएड की 56 फीसदी और एमएड की 80 फीसदी सीटें खाली होने का हवाला देते हुए इन दोनों पाठ्यक्रमों की अवधि को घटाने का सुझाव नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (एनसीटीई) को दिया है।
कॉलेजों का कहना है कि रेगुलेशन 2014 जारी होने के बाद हुए कई बदलावों के कारण इन पाठ़्यक्रमों के प्रति छात्रों का रुझान घटा है। एक तरफ कॉलेजों का खर्चा बढ़ा गया है वहीं दूसरी ओर एडमिशन की संख्या घट गई है।
एनसीटीई ने वर्ष 2014 में रेगुलेशन जारी कर बीएड और एमएड पाठ्यक्रमों की अवधि एक साल से बढ़ाकर दो साल कर दी थी। इसका प्रदेश सहित देशभर में विरोध हुआ था। इस रेगुलेशन के जारी होने के बाद सत्र 2016-17 की एडमिशन प्रक्रिया में इसके नतीजे सामने आए। प्रदेश के ही बीएड कोर्स संचालित 635 कॉलेजों की कुल 55 हजार सीटों में से महज 24 हजार सीटें ही भर पाई है। 31 हजार सीटें अभी भी खाली हैं। वहीं एमएड की 3000 सीटों में से महज 600 ही भर पाई और 2400 सीटें खाली रह गई। खाली सीटों के आंकड़े को देखते हुए कॉलेजों ने बीएड की सीटें घटानी शुरू कर दी है।
एक साल के बीएड और एमएड कोर्स को दो साल का करने का निर्णय पूरी तरह से अव्यवहारिक है। जमीनी स्तर पर कॉलेजों और छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कॉलेजों को मापदंड के अनुसार शिक्षक रखकर उनके फोटो, प्रोफाइल और बैंक अकाउंट पोर्टल पर अपलोड करने पड़ रहे हैं। डॉ. शशि राय, शिक्षाविद भाेपाल
रेगुलेशन के मुताबिक नियमों का पालन करने पर कॉलेजों को आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ रहा है। एडमिशन घट गए हैं और शिक्षकों की संख्या दोगुनी हो गई है। देशभर में उठे विरोध के बाद एनसीटीई द्वारा रेगुलेशन 2014 का रिव्यू किया जा रहा है। इसके लिए सुझाव मांगे गए हैं। प्राइवेट कॉलेजों ने बीएड और एमएड कोर्स की अवधि पहले की ही तरह एक साल करने का सुझाव दिया है। एके उपाध्याय, सचिव प्रादेशिक शिक्षा महाविद्यालय प्रबंधन संघ
यह समस्या आ रही कॉलेजों के सामने
प्रवेश परीक्षा के माध्यम से प्रदेश के कॉलेजों में छात्रों को प्रवेश दिया जा रहा है। नियम के तहत छात्र के पास स्नातक की डिग्री होना जरूरी है, जो छात्र स्नातक के अंतिम सेमेस्टर की परीक्षा दे रहा है वो इस प्रवेश परीक्षा के लिए पात्र नहीं हैं। इससे अधिकांश छात्र इस कोर्स में एडमिशन ही नहीं ले पा रहे हैं।
रेगुलेशन 2014 के अनुसार 50 छात्रों पर 8 टीचर अौर 100 छात्रों पर 16 टीचर का नियम है। ग्राउंड लेवल पर दिक्कतें यह आ रही है कि एक दिन में पांच क्लास लगती हंै और एक टीचर एक ही पीरियड ले सकता है। बाकी के टीचर खाली रहते हैं। इससे कॉलेजों को सीधे तौर पर नुकसान उठाना पड़ रहा है।
नियम में प्रावधान है कि दो साल के बीएड कोर्स में प्रवेशित स्टूडेंट्स को छह महीने किसी स्कूल में इंटर्नशिप करना जरूरी है। लेकिन स्कूल इसके लिए मंजूरी नहीं दे रहे हैं। खासकर परीक्षा के पहले स्कूल इन बीएड के छात्रों से पढ़वाकर जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।
शिक्षकोंं की संख्या, इंफ्रास्ट्रक्चर दोगुना होने व एडमिशन की संख्या घटने से कॉलेजों को नुकसान हो रहा है।
कॉलेजों का कहना है कि रेगुलेशन 2014 जारी होने के बाद हुए कई बदलावों के कारण इन पाठ़्यक्रमों के प्रति छात्रों का रुझान घटा है। एक तरफ कॉलेजों का खर्चा बढ़ा गया है वहीं दूसरी ओर एडमिशन की संख्या घट गई है।
एनसीटीई ने वर्ष 2014 में रेगुलेशन जारी कर बीएड और एमएड पाठ्यक्रमों की अवधि एक साल से बढ़ाकर दो साल कर दी थी। इसका प्रदेश सहित देशभर में विरोध हुआ था। इस रेगुलेशन के जारी होने के बाद सत्र 2016-17 की एडमिशन प्रक्रिया में इसके नतीजे सामने आए। प्रदेश के ही बीएड कोर्स संचालित 635 कॉलेजों की कुल 55 हजार सीटों में से महज 24 हजार सीटें ही भर पाई है। 31 हजार सीटें अभी भी खाली हैं। वहीं एमएड की 3000 सीटों में से महज 600 ही भर पाई और 2400 सीटें खाली रह गई। खाली सीटों के आंकड़े को देखते हुए कॉलेजों ने बीएड की सीटें घटानी शुरू कर दी है।
एक साल के बीएड और एमएड कोर्स को दो साल का करने का निर्णय पूरी तरह से अव्यवहारिक है। जमीनी स्तर पर कॉलेजों और छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कॉलेजों को मापदंड के अनुसार शिक्षक रखकर उनके फोटो, प्रोफाइल और बैंक अकाउंट पोर्टल पर अपलोड करने पड़ रहे हैं। डॉ. शशि राय, शिक्षाविद भाेपाल
रेगुलेशन के मुताबिक नियमों का पालन करने पर कॉलेजों को आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ रहा है। एडमिशन घट गए हैं और शिक्षकों की संख्या दोगुनी हो गई है। देशभर में उठे विरोध के बाद एनसीटीई द्वारा रेगुलेशन 2014 का रिव्यू किया जा रहा है। इसके लिए सुझाव मांगे गए हैं। प्राइवेट कॉलेजों ने बीएड और एमएड कोर्स की अवधि पहले की ही तरह एक साल करने का सुझाव दिया है। एके उपाध्याय, सचिव प्रादेशिक शिक्षा महाविद्यालय प्रबंधन संघ
यह समस्या आ रही कॉलेजों के सामने
प्रवेश परीक्षा के माध्यम से प्रदेश के कॉलेजों में छात्रों को प्रवेश दिया जा रहा है। नियम के तहत छात्र के पास स्नातक की डिग्री होना जरूरी है, जो छात्र स्नातक के अंतिम सेमेस्टर की परीक्षा दे रहा है वो इस प्रवेश परीक्षा के लिए पात्र नहीं हैं। इससे अधिकांश छात्र इस कोर्स में एडमिशन ही नहीं ले पा रहे हैं।
रेगुलेशन 2014 के अनुसार 50 छात्रों पर 8 टीचर अौर 100 छात्रों पर 16 टीचर का नियम है। ग्राउंड लेवल पर दिक्कतें यह आ रही है कि एक दिन में पांच क्लास लगती हंै और एक टीचर एक ही पीरियड ले सकता है। बाकी के टीचर खाली रहते हैं। इससे कॉलेजों को सीधे तौर पर नुकसान उठाना पड़ रहा है।
नियम में प्रावधान है कि दो साल के बीएड कोर्स में प्रवेशित स्टूडेंट्स को छह महीने किसी स्कूल में इंटर्नशिप करना जरूरी है। लेकिन स्कूल इसके लिए मंजूरी नहीं दे रहे हैं। खासकर परीक्षा के पहले स्कूल इन बीएड के छात्रों से पढ़वाकर जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।
शिक्षकोंं की संख्या, इंफ्रास्ट्रक्चर दोगुना होने व एडमिशन की संख्या घटने से कॉलेजों को नुकसान हो रहा है।