भोपाल। पुलिस की बदसलूकी, रौब, भ्रष्टाचार और दबंगई से तो आम आदमी का सामना होता है, लेकिन शहर के कुछ पुलिसकर्मियों का एक अलग चेहरा भी है। वे 16 घंटे में फील्ड में नौकरी करने के साथ बेघर और गरीब बच्चों को थाने लाकर पढ़ाई करा रहे हैं।
थाना मोबाइल इन्हें घर से थाने की पाठशाला में लाती है। यहां पुलिसकर्मी शिक्षक बनकर उन्हें पढऩा सिखाते हैं। अभिभावकों को जागरुक कर शासकीय स्कूलों में दाखिला भी कराया जा रहा है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में दो ऐसे थाने हैं, जहां महिला पुलिसकर्मियों ने बच्चों को पढ़ाने का भी बीड़ा उठाया हुआ है। आइए हम बताते हैं इस स्कूल की कुछ दिलचस्प बातें....
ये मुहिम योजना का हिस्सा
दो साल पहले मध्यप्रदेश के डीआईजी रमन सिंह सिकरवार ने बाल संजीवनी के नाम से योजना शुरू की थी। योजना का उद्देश्य गरीब व शाला त्यागी बच्चों के परिवारों को पढ़ाई के प्रति जागरूक करना है। ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए सर्किल स्तर पर एक थाने का चयन कर उसमें पाठशाला तैयार की गई। बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी थाना स्तर पर महिला पुलिसकर्मियों को दी गई। पुलिसकर्मियों ने स्लम एरिया में जाकर ऐसे बच्चों का सर्वे किया। जो बच्चे किसी कारणवश स्कूल छोड़ चुके थे, या आर्थिक तंगी के कारण स्कूल नहीं जा रहे थे। ऐसे बच्चों को थाना स्कूल तक लाया गया।
समाज से हो रहा जुड़ाव
रातीबड़ थाना प्रभारी कंचन सिंह राजपूत पहले हनुमानगंज थाना में पदस्थ थी। उस दौरान वह बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी संभालती थी। तबादला होने के बाद रातीबड़ पहुंचीं, तो उन्होंने आपराधिक प्रवृत्ति के बच्चों को स्कूल भिजवाना शुरू किया। किसी छोटे-मोटे अपराध में सजा काटकर आए बच्चों के भी वे स्कूल में दाखिला करा रही हैं। इतना ही नहीं किसी अपराध में माता-पिता के जेल जाने वालों के बच्चों का विशेष ध्यान रखती हैं। उनकी पढ़ाई में किसी तरह की बाधा नहीं आने देती। इसके लिए लगातार उनके स्कूल जाकर उनकी मॉनिटरिंग भी की जाती है। उनका उद्देश्य इन बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाकर उनका जीवन बेहतर बनाना है।
एक से डेढ़ घंटे की चलती है पाठशाला
थाना मोबाइल सुबह साढ़े ग्यारह इन बच्चों को स्कूल के लिए लेने पहुंच जाती है। करीब बारह बजे तक गोविंदपुरा और हनुमानगंज थाना स्कूल में सभी बच्चे आ जाते हैं। दोनों थानों में वर्तमान में 18 से 20 बच्चे पढ़ाई कर रहे है। हनुमानगंज में हेड कांस्टेबल सुषमा देशमुख तो गोविंदपुरा में एसआई सलोनी सिंह शिक्षक की भूमिका निभा रही है। इन्हें रोज एक से डेढ़ घंटे की क्लास देकर हिन्दी वर्णमाला से लेकर ए,बी,सी,डी और पहाड़े सिखलाए जाते हैं। शुरूआत में तो इन बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगता, लेकिन वे खेल-खेल में पढ़ाई के गुर बताती है। इन्हें रोज होमवर्क भी दिया जाता है और टेस्ट भी होते हैं।
इनका कहना है...
पिता के जेल जाने पर बालमन को धक्का लगता है। सामाजिक धारा से जोड़ेे रखने का स्कूल सबसे बढिय़ा जरिया है। आपराधिक प्रवृत्ति के बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया जा रहा है।
- कंचन सिंह राजपूत, टीआई, रातीबड़ थाना
थाना मोबाइल बच्चों को लेकर रोज स्कूल आती है। उन्हें अक्षर ज्ञान से लेकर पहाड़े भी सिखाते हैं। इनके माता-पिता को पढ़ाई का महत्व बताकर स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं।
- सुषमा देशमुख, हेड कांस्टेबल, हनुमानगंज थाना
थाना मोबाइल इन्हें घर से थाने की पाठशाला में लाती है। यहां पुलिसकर्मी शिक्षक बनकर उन्हें पढऩा सिखाते हैं। अभिभावकों को जागरुक कर शासकीय स्कूलों में दाखिला भी कराया जा रहा है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में दो ऐसे थाने हैं, जहां महिला पुलिसकर्मियों ने बच्चों को पढ़ाने का भी बीड़ा उठाया हुआ है। आइए हम बताते हैं इस स्कूल की कुछ दिलचस्प बातें....
ये मुहिम योजना का हिस्सा
दो साल पहले मध्यप्रदेश के डीआईजी रमन सिंह सिकरवार ने बाल संजीवनी के नाम से योजना शुरू की थी। योजना का उद्देश्य गरीब व शाला त्यागी बच्चों के परिवारों को पढ़ाई के प्रति जागरूक करना है। ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए सर्किल स्तर पर एक थाने का चयन कर उसमें पाठशाला तैयार की गई। बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी थाना स्तर पर महिला पुलिसकर्मियों को दी गई। पुलिसकर्मियों ने स्लम एरिया में जाकर ऐसे बच्चों का सर्वे किया। जो बच्चे किसी कारणवश स्कूल छोड़ चुके थे, या आर्थिक तंगी के कारण स्कूल नहीं जा रहे थे। ऐसे बच्चों को थाना स्कूल तक लाया गया।
समाज से हो रहा जुड़ाव
रातीबड़ थाना प्रभारी कंचन सिंह राजपूत पहले हनुमानगंज थाना में पदस्थ थी। उस दौरान वह बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी संभालती थी। तबादला होने के बाद रातीबड़ पहुंचीं, तो उन्होंने आपराधिक प्रवृत्ति के बच्चों को स्कूल भिजवाना शुरू किया। किसी छोटे-मोटे अपराध में सजा काटकर आए बच्चों के भी वे स्कूल में दाखिला करा रही हैं। इतना ही नहीं किसी अपराध में माता-पिता के जेल जाने वालों के बच्चों का विशेष ध्यान रखती हैं। उनकी पढ़ाई में किसी तरह की बाधा नहीं आने देती। इसके लिए लगातार उनके स्कूल जाकर उनकी मॉनिटरिंग भी की जाती है। उनका उद्देश्य इन बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाकर उनका जीवन बेहतर बनाना है।
एक से डेढ़ घंटे की चलती है पाठशाला
थाना मोबाइल सुबह साढ़े ग्यारह इन बच्चों को स्कूल के लिए लेने पहुंच जाती है। करीब बारह बजे तक गोविंदपुरा और हनुमानगंज थाना स्कूल में सभी बच्चे आ जाते हैं। दोनों थानों में वर्तमान में 18 से 20 बच्चे पढ़ाई कर रहे है। हनुमानगंज में हेड कांस्टेबल सुषमा देशमुख तो गोविंदपुरा में एसआई सलोनी सिंह शिक्षक की भूमिका निभा रही है। इन्हें रोज एक से डेढ़ घंटे की क्लास देकर हिन्दी वर्णमाला से लेकर ए,बी,सी,डी और पहाड़े सिखलाए जाते हैं। शुरूआत में तो इन बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगता, लेकिन वे खेल-खेल में पढ़ाई के गुर बताती है। इन्हें रोज होमवर्क भी दिया जाता है और टेस्ट भी होते हैं।
इनका कहना है...
पिता के जेल जाने पर बालमन को धक्का लगता है। सामाजिक धारा से जोड़ेे रखने का स्कूल सबसे बढिय़ा जरिया है। आपराधिक प्रवृत्ति के बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया जा रहा है।
- कंचन सिंह राजपूत, टीआई, रातीबड़ थाना
थाना मोबाइल बच्चों को लेकर रोज स्कूल आती है। उन्हें अक्षर ज्ञान से लेकर पहाड़े भी सिखाते हैं। इनके माता-पिता को पढ़ाई का महत्व बताकर स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं।
- सुषमा देशमुख, हेड कांस्टेबल, हनुमानगंज थाना