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Tuesday 15 August 2017

अंतर जिला संविलियन नीति 2 सप्ताह के भीतर , संविदा शिक्षक बनेंगे अध्यापक

संविदा शिक्षक के रूप में 3 साल सेवा देने के बाद अब बड़ी संख्या में कर्मचारी शासकीय सेवा से जुड़कर अध्यापक बनने जा रहे हैं। शिक्षा विभाग अंतर जिला संविलियन नीति 2 सप्ताह के भीतर जारी करने वाला है।
विभाग तालमेल बनाकर विषय विशेषज्ञों के रूप में इनको नए स्कूलों की जिम्मेदारी देगा। इस तरह अब प्रमोशन के रास्ते खुलने जा रहे हैं।

शिक्षण सत्र 2016-17 में जिलेभर से संविदा शिक्षक वर्ग 1, 2 व 3 मिलाकर 490 लोगों को अध्यापक बनने का अवसर दिया था। 3 साल की अवधि के आधार पर इनमें से ज्यादातर का संविलियन हो चुका है। लंबे अवकाश या अन्य किसी कारणों से कुछ संविदा शिक्षकों की फाइलों पर काम हो रहा है। इन सभी शिक्षकोंं को 2013 में संविदा शिक्षक बनने के बाद 2016-17 में आॅर्डर जारी हुए हैं। इसी तरह ताजा सत्र में तीनों वर्ग मिलाकर इस बार 60 से अधिक संविदा शिक्षकों को अध्यापक की जिम्मेदारी मिल रही है।

प्रस्ताव पर शासन ने लगाई मुहर

स्कूल शिक्षा विभाग ने मंदसौर, मल्हारगढ़, सीतामऊ, गरोठ व भानपुरा विकासखंड के स्कूलों में पढ़ाने वाले संविदाकर्मियों के नाम प्राथमिकता से भेजे थे। इसमें दस्तावेज की जांच के बाद तीनों वर्गों के संविदाकर्मियों के लिए अध्यापक बनने के रास्ते पर पिछले दिनों में शासन ने मुहर लगा दी। जल्द ही शासन अध्यापक संवर्ग की नीति घोषित कर अंतर जिला संविलियन करेगी। 15 अगस्त से पहले सूची आने के आसार हैं। इन सभी को जिले में ही एडजेस्ट किया जाएगा। वैसे शासन के स्कूल शिक्षा पोर्टल पर अन्य जिलों की खामियां निकलने के बाद सुधार पर काम होने से नीति घोषित होने में कुछ विलंब अवश्य हो रहा है।

जिले में स्कूल शिक्षा विभाग में प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों के करीब 800 पद रिक्त हैं। खासकर गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों के शिक्षकों की कमी है। इससे अध्यापन पर असर पड़ता है। विद्यार्थियों को भी परेशानी होती है।शासन अतिथि शिक्षकों की कुछ निश्चित अवधि के लिए भर्ती करता रहा है लेकिन उस विशेषज्ञ की तुलना में गुणवत्ता जैसी विषयवस्तु विद्यार्थियों को सीखने को नहीं मिल पाती। जिले के मंदसौर, मल्हारगढ़, दलौदा, सीतामऊ, सुवासरा, शामगढ़, गरोठ व भानपुरा में एक समान हालत हैं। यही कारण है कि शिक्षकों के पद रिक्त होने से ग्रामीण अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला दिलाना पसंद करते हैं। इसी कारण कई स्कूलों में बच्चों की संख्या 20 या उससे कम पर आ गई है। 
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