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240 प्रोफेसर की भर्ती संदिग्ध 65 के खिलाफ मिले पुख्ता सबूत

भोपाल : उच्च शिक्षा विभाग द्वारा की गई प्रोफेसरों की भर्ती में बड़ी गड़बड़ी उजागर हुई है। करीब 240 प्रोफेसरों को संदेह के घेरे में लेते हुए उनकी जांच कराई गई है। इसमें करीब 65 प्रोफेसरों के खिलाफ पुख्ता सबूत सामने आए हैं।
शेष प्रोफेसरों के खिलाफ और सबूत मिलने पर विभाग ने 3 सदस्यीय कमेटी को कुछ जांच के बिंदु देकर रिपोर्ट तैयार करने के लिए समय दिया है। ये जांच 31 सितंबर तक पूरी हो जाएगी। कमेटी में बीयू के रजिस्ट्रार डॉ. एचएस त्रिपाठी, बेनजीर कॉलेज प्राचार्य डॉ. विभा शुक्ला और नूतन कॉलेज प्राचार्य व प्रभारी अतिरिक्त संचालक डॉ. वंदना अग्निहोत्री शामिल हैं। जांच पूरी होने के बाद विभाग प्रोफेसरों के खिलाफ बर्खास्तगी की कार्रवाई करेगा।

PHD में भी हुआ खेल
इसमें आवेदकों ने संबंधित विषय में पीएचडी प्रस्तुत नहीं की है। कुछ ऐसे आवेदक भी सामने आए हैं, जिन्होंने 2009 के बाद पीएचडी की है और चयनित हुए हैं। जबकि उनकी पीएचडी आवेदन की अंतिम तिथि के पहले पूर्ण होना अनिवार्य थी।

ऐसे किया फर्जीवाड़ा
विभाग ने 385 पदों की भर्ती के लिए 2009 में विज्ञापन जारी किया था। विभागीय लेटलतीफी के चलते नियुक्तियां 2011 में हो सकी थीं। इसका पूरा फायदा फर्जीवाड़ा करने में लिया गया है। प्रोफेसर की भर्ती के लिए दस साल का अनुभव मांगा गया था। आवेदकों ने 2011 में दस साल होने का अनुभव दिया है। इसके साथ ही निजी कॉलेजों में पदस्थ आवेदकों का अनुभव सेवा के तहत प्रस्तुत किया गया है। इसमें उन्हें कभी संविदा पर रखा गया है तो कभी उन्हें अतिथि के रूप में पदस्थ किया गया है। इसमें उनका वेतन 1200 से लेकर पांच हजार रुपए तक बताया गया है। नियमानुसार प्रोफेसरों की सीधी भर्ती के लिए आठ साल का नियमित अनुभव होना अनिवार्य है।

पवन शर्मा की नियुक्ति मामले से हुआ खुलासा
परवीक्षा के दौरान चयनित पवन शर्मा की नियुक्ति से मामला खुलकर सामने आया था। उन्होंने एनसीटीई में रहते हुए शिक्षक का अनुभव विभाग को दिखाया था। वर्तमान में वे हिंदी विवि में पदस्थ हैं। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए अनुभव प्रमाण पत्र को आगरा विवि और कालेज प्राचार्य ने फर्जी करार दिया है। इस संबंध में एसटीएफ में प्रकरण दर्ज किया गया है। वहीं विभागीय जांच शुरु होने की बात भी बताई गई है। इसके बाद प्रोफेसरों के खिलाफ जांच करने की व्यवस्था की गई है। दूसरी तरफ अंकिता बोहरे हाईकोर्ट तक पहुंच गई थीं। प्रमुख सचिव केके सिंह के दौरान मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा है। वर्तमान प्रमुख सचिव
आशीष उपाध्याय ने प्रकरण की जांच कर फर्जी प्रोफसरों को बाहर करने जांच बैठाई है।
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