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आरटीई में 1371 सीटें खाली

अशोकनगर(नवदुनिया न्यूज)। आरटीई योजना के तहत प्रवेश प्रक्रिया में आनलाइन आवेदन डाले जाना था जिनका चयन 25 जुलाई को बीआरसी द्वारा लाटरी द्वारा किया जाना था किन्तु 27 जुलाई तक न तो शिक्षा विभाग द्वारा कोई जानकारी दी जा रही है और न ही पोर्टल पर सूची उपलब्ध है।
अब यह तिथि आगे बढ़ाई जाना बताई जा रही है। जिले में 216 प्रवेश पात्र शिक्षण संस्थाओं में इस योजना के तहत छात्र-छात्राओं को प्रवेश मिलना था लेकिन जिले में 1371 छात्र-छात्राओं को इस योजना का लाभ लेने में या तो रूचि नहीं है या शिक्षा विभाग की अरूचि के कारण यह स्थिति पैदा हो गई है।
इन परिस्थितियों के चलते अभिभावक एवं स्कूल संचालक असमंजस्य की स्थिति से गुजर रहे है। शिक्षा सत्र को आरम्भ हुए डेढ़ माह की अवधि होने जा रही है। जिले के स्कूल शिक्षा विभाग के प्रोग्रामर जी एस नरवरिया का कहना है कि पहले यह तिथि 25 जुलाई की थी लेकिन अब इसे बदलकर 28 जुलाई कर दिया गया है। शिक्षा विभाग के पोर्टल पर आवेदनों की त्रुटियां सुधारने की यह तिथि है। रेडियम पद्घति से दो अगस्त को प्रक्रिया पूरी की जाएगी। प्रत्येक स्कूल के लिए एक नोडल अधिकारी बनाया गया है। जो 11 अगस्त को प्रवेश प्रक्रिया को देखेगा। यह प्रवेश प्रक्रिया का कार्यक्रम 3 से 9 अगस्त तक चलेगा।
3466 सीटें आरक्षित है लेकिन पंजीयन 2095 ने ही कराया
अशोकनगर जिले में यदि स्कूलों की बात करें तो जिले में जिन स्कूलों को आरटीई का पालन करना है उसमें स्कूलों की संख्या 216 है। प्रत्येक स्कूल को स्कूल में अध्ययनरत प्रारम्भिक कक्षाओं में एडमीशन दिया जाएगा। इन स्कूलों में प्रारम्भिक कक्षाओं में जो भी छात्र संख्या होगी। उस छात्रसंख्या का 25 प्रतिशत भाग आरटीई योजना के तहत एडमीशन प्रदान करने में जाएगा। इन 216 शालाओं में आरटीई के तहत आरक्षित सीटों की संख्या 3466 है। लेकिन अभी तक 2095 छात्रों ने ही पंजीयन कराया है। 1371 छात्रों ने इस योजना के तहत पंजीयन कराना भी उचित नहीं समझा। जिससे समझा जा सकता है कि जिले के छात्र शासन की इस धीमी गति से चलने वाली योजना में उत्सुक नहीं है।
स्कूल संचालकों के साथ शिक्षा विभाग में भी इस योजना को लेकर ढुलमुल रवैया
शिक्षा विभाग के प्रोग्रामर जी एस नरवरिया के अनुसार जिले में शासन की ओर से यह प्रक्रिया अगस्त के महिने तक बढ़ा दी गई है। जिससे उन स्कूलों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। जो स्कूल 31 जुलाई तक प्रवेश बंद कर देते थे उन्हें अब अगस्त के प्रथम पखवाड़े में भी प्रवेश की प्रक्रिया को जारी रखना होगा। यानी पूरे दो महिने का समय शासन ने आरटीई प्रक्रिया को देने में जाएगा। ऐसे में एडमीशन प्राप्त करने वाले छात्रों का क्या होगा। शासन की नीति के कारण उन छात्र-छात्राओं को न तो इस योजना का समय पर लाभ मिल पा रहा है और न ही स्कूल संचालक शासन की योजना का ठीक तरह से क्रियान्वयन कर पा रहे है। जबकि जिले में इस योजना को लेकर पिछले दो माह से कार्य चल रहा है। न तो जिला शिक्षा विभाग इस कार्य को पूरा कर पाया है साथ में शासन के नये-नये निर्देश इस योजना को लेकर हर रोज शिक्षा विभाग के पोर्टल पर आने से निजी शिक्षण संस्थाओं के संचालक भी परेशान है।
वर्षों से नहीं मिली आरटीई योजना की स्कूलों को राशि
इस योजना का क्रियान्वयन यदि किया भी जाए तो स्कूल संचालकों की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही। जिन बच्चों को शिक्षण संस्थाओं की ओर से सीधे एडमीशन दिया जाता है उन्हें उन बच्चों की फीस समय पर मिल जाती है लेकिन शासन के नियमों का पालन करने वाले स्कूलों को इस योजना के तहत राशि पूरा वर्ष निकलने के बाद भी नहीं मिल पाती। जिसके कारण स्कूल संचालक शिक्षा विभाग के चक्कर काटते रहते है। गत वर्ष 2013-14 और वर्ष 2014-15 के साथ-साथ वर्ष 2015-16 का भी भुगतान नहीं हुआ है। ऐसे में इन स्कूल संचालकों को शासन की नीति का पालन करने के बाद भी समस्या के दौर से गुजरना पड़ रहा है।
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भावुक आंखों से स्कूल की ओर देखता हुआ बच्चा
क्या स्कूल जाने का सपना कभी पूरा होगा
अशोकनगर (नवदुनिया न्यूज)। चाहे केन्द्र सरकार की बात हो या मप्र सरकार की बात शिक्षा को लेकर हर वर्ष शासन नई-नई योजनाएं बनाता है। शिक्षा पर भारी भरकम बजट व्यय किया जाता है। अप्रवेशी बच्चों को स्कूलों में दाखिले के लिए तमाम प्रयास किए जाते है लेकिन फिर भी देश और प्रदेश में ऐसे अनेक बच्चे हैं जिनका स्कूल जाने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाता।
शहर के एक निजी तारासदन स्कूल की ओर अपनी भावुक आंखों से देखता हुआ यह बच्चा अपनी पीठ पर कचरे का थैला लटकाए हुए है। उसका पूरा बचपन कचरे को समेटने में लग रहा है उसे नहीं मालूम स्कूल क्या होगा है लेकिन उसे जरूर पता है कि यहां बच्चों को पढ़ने के लिए उनके माता-पिता द्वारा प्रतिदिन तैयार कर पढ़ने के लिए भेजा जाता है। लेकिन इस बच्चे की तरह देशभर में अनेक बच्चे है जो स्कूलों से वंचित है और शहरों की सड़कों पर या तो कचरा बीनकर अपना बचपन गुजार रहे है या फिर भीख मांगकर मां-बाप के साथ इस कार्य में जुटे है। अनेक छोटे-छोटे बच्चे ऐसे भी है जिन्हें स्कूलों में होना चाहिए वह सुबह उठने के बाद स्कूल जाने की जगह शहर की होटलों पर काम करते हुए देखे जा सकते है। यह बच्चा बार-बार स्कूल की ओर देख रहा है उसके मन में कल्पना है काश वह भी ऐसे किसी स्कूल में पढ़ पाता। शासन ने ऐसे ही बच्चों के लिए आरटीई योजना की शुरुआत की है। जिनमें स्कूलों को 25 प्रतिशत छात्रों को एडमीशन निःशुल्क दिया जाना है जिनका भार शासन ने उठाने का निर्णय लिया है लेकिन सही पूछो तो इस योजना में गरीब तबके के बच्चे कम, बड़े परिवारों के बच्चे इस योजना का अधिक लाभ ले रहे है। जबकि सही अर्थों में फुटपाथों पर जिंदगी गुजारने वाले, कचरा बीनने वाले, झोपड़-पट्टी में रहने वाले बच्चों को सही अर्थों में लाभ मिलना चाहिए।
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