भोपाल। मध्य प्रदेश लोक सेवा
आयोग (एमपीपीएससी) द्वारा कुछ साल पहले उच्च शिक्षा विभाग में की गई
प्रोफेसरों की सीधी भर्ती में भारी अनियमितता हुई है। यह बात मध्य प्रदेश
उच्च शिक्षा विभाग की जांच रिपोर्ट में सामने आई है। जांच समिति ने रिपोर्ट
में इस मामले की विशेष जांच दस्ते (एसटीएफ) से जांच करने की सिफारिश की
है। व्यापम घोटाले की जांच भी एसटीएफ ने ही की थी और उसके बाद यह सीबीआई को
सौंप दी गई।
यह जनवरी, 2009 की बात है जब लोक सेवा आयोग ने उच्च शिक्षा विभाग में
प्रोफेसरों की भर्ती के लिए 385 पदों का विज्ञापन जारी किया था। हालांकि
बाद में नियुक्ति केवल 256 पदों पर ही की गई। इसके तहत प्रोफेसर पद पर सीधे
साक्षात्कार के माध्यम से नियुक्ति की जानी थी. वर्ष 2011 के मध्य में यह
प्रक्रिया पूरी हुई थी। इस बीच भर्ती को लेकर समय-समय पर कई शिकायतें होती
रहीं जिनको देखते हुए उच्च शिक्षा विभाग में आयुक्त कार्यालय द्वारा एक चार
सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया था। उसी समिति ने हाल में अपनी
रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी है।
रिपोर्ट में दो मुख्य आपत्तियां जताई गई हैं। पहली यह है कि भर्ती
प्रक्रिया पूरी होने के बाद आयोग ने अनुभव प्रमाण पत्रों से जुड़ा
स्पष्टीकरण जारी किया। जनवरी, 2009 में जो विज्ञापन जारी किया गया था उसमें
केवल इतना उल्लेख था कि दस वर्ष का अनुभव अनिवार्य है। इसके लिए किस तरह
के संस्थानों का अनुभव मान्य किया जाएगा इस बारे में कोई उल्लेख नहीं किया
गया। जबकि बाद में स्पष्टीकरण जारी किया गया कि अनुदान प्राप्त गैरसरकारी
संस्थाओं का अनुभव भी मान्य होगा। नियमानुसार इस तरह की सारी जानकारी मूल
विज्ञापन में दी जानी चाहिए।
रिपोर्ट में दूसरी आपत्ति यह है कि कई अभ्यर्थियों द्वारा दिए गए अनुभव
प्रमाण पत्र संदिग्ध हैं। भर्ती के लिए दस वर्ष का अनुभव और पीएचडी की
डिग्री को अनिवार्य किया गया था। जांच में पाया गया कि अनुदान प्राप्त
गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा दिए गए कुछ चयनित उम्मीदवारों के अनुभव प्रमाण
पत्र सही नहीं हैं. ऐसी संभावना है कि अभ्यर्थियों ने फर्जी अनुभव प्रमाण
पत्र लगाए हैं और आयोग द्वारा उनकी प्रमाणिकता की जांच भी नहीं की गई है।
रिपोर्ट में अनुभव प्रमाण पत्रों की गहन जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं।
जांच समिति द्वारा उठाए गए सवाल जिनसे भर्ती में भ्रष्टाचार का संकेत मिलता है –
वैसे जांच समिति ने भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी से जुड़े कई मुद्दे उठाए
हैं लेकिन नीचे दिए गए इन 12 बिंदुओं से पूरा मामला साफ हो जाता है –
1. आयोग द्वारा विज्ञापन जारी होने तथा चयन हेतु साक्षात्कार पूरा करने के
बाद अनुभव के बारे में जो स्पष्टीकरण जारी किया गया वह पूरी तरह नियम
विरुद्ध है.
2. भर्ती प्रक्रिया के लिए साक्षात्कार होने के बाद अगस्त, 2011 में
विज्ञापन में संशोधन जारी किया गया. नियमानुसार यदि संशोधन करना आवश्यक था
तो पूरी प्रक्रिया निरस्त कर फिर से आवेदन मंगाए जाने थे लेकिन ऐसा नहीं
किया गया.
3. उच्च शिक्षा विभाग के भर्ती नियमों के मुताबिक अनुभव योग्यताएं, जो
पारंपरिक रूप से पदोन्नति के लिए भी स्वीकार की जाती हैं, से अलग योग्यताओं
की व्याख्या या स्पष्टीकरण लोक सेवा आयोग द्वारा जारी किया गया. इससे
स्पष्ट है कि चयन में भर्ती के लिए अलग मापदंड अपनाए गए.
4. विज्ञापन जारी करते समय अनुभव योग्यताओं को स्पष्ट न किए जाने से बहुत से संभावित उम्मीदवारों को मौका नहीं मिल पाया.
5. सरकारी कॉलेजों में कार्यरत उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत अनुभव प्रमाण
पत्रों के अलावा जो अनुभव प्रमाण पत्र प्राप्त हुए हैं वे प्रारंभिक रूप से
संदेहास्पद लगते हैं.
6. अनुभव प्रमाण पत्रों की सत्यता की जांच सरकारी विश्वविद्यालय या कॉलेज
से नहीं कराई गई. इसके अलावा उनकी पुष्टि के लिए संबंधित दस्तावेज भी
उपलब्ध नहीं कराए गए हैं.
7. अनुदान प्राप्त संस्थाओं में नियुक्तियों का अनुमोदन उच्च शिक्षा आयुक्त
द्वारा किया जाता है. इन संस्थाओं में काम करने से संबंधित कई अनुभव
प्रमाण पत्रों के साथ इस तरह के अनुमोदन का कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं.
8. आयोग द्वारा आठ अगस्त, 2011 को जारी स्पष्टीकरण में बताया गया कि केवल
सरकारी और अनुदान प्राप्त गैर-सरकारी संस्थाओं का ही अनुभव मान्य होगा.
अनुदान प्राप्त न करने वाली गैर-सरकारी संस्थाओं का अनुभव मान्य नहीं होगा
लेकिन नियुक्ति में इस तरह के अनुभव भी मान्य किए गए हैं.
9. जिस विषय में पीएचडी नहीं है उसमें चयन न होकर किसी अन्य विषय में चयन किया गया.
10. कुछ उम्मीदवारों का चयन पहले हुआ, पीएचडी की डिग्री उन्हें बाद में मिली.
11. कुछ ऐसे उम्मीदवारों का चयन भी हुआ जिन्होंने स्कूल के संविदा शिक्षक के अनुभव का प्रमाण पत्र आवेदन में लगाया था.
12. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशा-निर्देश के अनुसार
प्रोफेसर पद के लिए चार साल का स्नातकोत्तर कक्षाओं में पढ़ाने का अनुभव
अनिवार्य है. आयोग की इस भर्ती प्रक्रिया में इस नियम को सिरे से नकारा गया
है.