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अतिथि विद्वानों को आयु में छूट पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

शासकीय महाविद्यालयों में रिक्त पदों के विरुद्ध कार्यरत अतिथि विद्वानों को आयु सीमा में छूट देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से तीन सप्ताह से जवाब मांगा है। अतिथि विद्वानों की आयु सीमा में छूट देने के संबंध में कोर्ट में विवेक तनखा ने पैरवी की।
अतिथि विद्वानों ने हाई कोर्ट के आयु सीमा में अधिकतम पांच वर्षों की छूट दिए जाने के ऑर्डर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसे लेकर सोमवार को सुनवाई हुई।

प्रदेश में अतिथि विद्वान विभिन्न कॉलेजों में 1992 से निरंतर अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं। उनकी सेवाओं को देखते हुए राज्य सरकार ने 2009 में आदेश जारी कर कहा था कि जिस अतिथि विद्वान जितने समय तक अध्यापन कार्य किया है, उसे पीएससी द्वारा अस्सिटेंट प्रोफेसर की परीक्षा में छूट दी जाए एवं एक साल के अनुभव के चार प्रतिशत अंक दिए जाए। बाद में सरकार ने 2012 में एक नया आदेश जारी किया, जिसमें अधिकतम आयु सीमा की छूट को पांच वर्ष तक सीमित कर दिया एवं अनुभव का लाभ प्रतिवर्ष चार प्रतिशत की जगह चार अंक कर दिया।

इस आदेश को जब अतिथि विद्वानों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी तो कोर्ट ने सरकार के 2012 के आदेश को सही ठहराया। इससे प्रदेश के कॉलेजों में बीते 20 सालों से ज्यादा समय से पढ़ा रहे 2200 शिक्षकों का भविष्य दाव पर लग गया था। ये अतिथि विद्वान नेट, क्लेट, पीएचडी और एमफिल योग्यताधारी हैं। उल्लेखनीय है कि सामान्य वर्ग की 1992 के बाद सहायक प्राध्यापक के पदों पर सीधी भर्ती नहीं की गई है। पीएससी 27 अगस्त से 12 सितंबर तक ऑन लाइन विभिन्न परीक्षाओं का आयोजन कर रहा है, जिसमें 15 हजार उम्मीदवारों ने आवेदन किया है।
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