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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव: शिवराज सरकार के लिए किसानों की नाराजगी बनी चिंता की बात

भोपाल/ होशंगाबाद/ बेतुल/ छिंदवाड़ामध्य प्रदेश का सियासी मौसम बहुत कुछ पिछले साल हुए गुजरात विधानसभा से मिलता है। भोपाल में पहुंचने पर वहां लोगों की राय सुनने के बाद ऐसा आभास होता है कि प्रदेश में चुनाव में कोई टक्कर नहीं है।
शहरी इलाकों में पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई वाली बीजेपी लोगों की पहली पसंद दिखती है। न्यू भोपाल में एक रेस्तरां में खाना खा रहे कॉलेज स्टूडेंट से जब पूछा कि वे किसे वोट करेंगे तो हंसने लगते हैं। उनके लिए बीजेपी के अलावा कोई दूसरा विकल्प सोचना भी गलत है। शहरी इलाकों में मजबूत पकड़ और कुछ सीटों पर कमजोर प्रत्याशी देने के कारण कांग्रेस को इस मजबूत इलाका भेदना बहुत बड़ा टास्क लगता है।


जैसे ही भोपाल शहर से निकलते हैं और शहरी माहौल की जगह गांव का नजार सामने आता है, बीजेपी की चुनौतियां शुरू होती हैं। ग्रामीण आबादी की दिक्कतें, किसानों की समस्या के बीच यहां लोग बदलाव की बात करने लगते हैं। मुलतई के किसान नामदेव सिंह कहते हैं कि पिछले तीन बार से बीजेपी को वोट किया है लेकिन इस बार कांग्रेस को वोट करेंगे। उन्हें शिवराज से शिकायत नहीं है, लेकिन सभी स्थानीय नेताओं से परेशानी है। वह कहते हैं, 'तवा पर रखी रोटी को अगर बहुत देर न बदलो तो वह जल जाती है,स्वाद कम हो जाता है।'

वह इस बार सिर्फ बदलाव के नाम पर वोट करेंगे। क्या किसानों को सरकार की ओर से उचित मदद नहीं मिली या सरकार की नीतियां विफल रही है? इस बारे में सिहोर के सरकारी स्कूल से रिटायर्ड शिक्षक मलय सुमन ने कहा कि अगर चुनाव एक साल पहले हुआ होता तो शिवराज की सरकार जरूर हार जाती। उन्होंने कहा कि किसान की हालत बहुत ही खराब है लेकिन पिछले कुछ महीनों में शिवराज सरकार ने खतरा भापंते हुए डैमेज कंट्रोल किया है। सस्ती बिजली, कुछ कर्ज माफ जैसी पहल की है, लेकिन इससे गुस्सा कितना कम होगा वह 28 नवंबर को ही पता चलेगा। वह अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि इस बार ऐसा चुनाव है जिसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगा सकता है लेकिन मानते हैं कि इस बार बदलाव की बात सियासी माहौल में है।

भोपाल से छिंदवाड़ा तक लगभग 500 किलोमीटर के सफर में दर्जनों गांवों में किसानों की समस्या और ग्रामीण बाजार की मंदी चुनावों में मुद्दा बन कर उभरी है। स्थानीय लोग दोनों मुद्दे की बात कर रहे हैं। यह इलाका बीजेपी का मजबूत गढ़ रहा है और पिछले विधानसभा में पार्टी ने इन इलाकों में अधिकतर सीटें जीती थी। क्या इसका असर वोटिंग पर होगा? इसका जवाब इटारसी में सब्जी का कारोबार करने वाले गणेण मेहता ने दिया। उन्होंने कहा कि असर पड़ेगा लेकिन इस बार सबसे प्रभावी हो गया है लोकल उम्मीदवार। जहां भी कांग्रेस के बेहतर उम्मीदवार होंगे वहां कांग्रेस को अधिक वोट करेंगे और जहां बीजेपी के बेहतर उम्मीदवार होंगे लोग उन्हें वोट करेंगे।

रायसेन, सिहोर, बुधनी, होशंगाबाद, बरखेड़ा, शाहागंज, इटारसी, सिवनी और पारसिया इलाके में लोगों के बीच उनकी खेती और दाम मिलने की दिक्कतों की बात कर रहे हैं। उनकी आम राय है कि स्थानीय स्तर पर करप्शन के कारण उन्हें उनका हक नहीं मिल रहा है। तमाम गांवों में ऐसे किसान मिल जाएंगे जो बहुत ही कठिन परिस्थिति में है। वे सरकार से तुरंत मदद की अपेक्ष कर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस की कर्ज माफी के वादे की बात भी किसान और स्थानीय लोग कर रहे हैं। इनके बीच सबसे दिलचस्प पहलू है कि भले अपनी दशा के लिए स्थानीय स्तर पर मौजूद भ्रष्टाचार और लोकल नेताओं को तो वजह बता रहे हैं लेकिन शिवराज चौहान को इसके लिए जिम्मेदार कम मानते हैं।  

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