जबलपुर. मध्य प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ के तबादलों को लेकर बनाई गई नीति को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस अतुल श्रीधरन की वैकेशन बैंच ने मंगलवार को मामले पर प्रारंभिक सुनवाई के बाद राज्य सरकार व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने कहा है। यह याचिका प्रांतीय शासकीय महाविद्यालय प्राध्यापक संघ भोपाल के महासचिव आनंद शर्मा की ओर से दायर की गई है।
आवेदक का कहना है कि वर्ष 1990 में बने भर्ती नियमों में टीचिंग फैकल्टी को एक पद से दूसरे पर भेजने का कोई प्रावधान नहीं है, फिर भी कर्मचारियों के नियंत्रण को लेकर राज्य सरकार ने स्थाई तबादला नीति 30 जनवरी 2004 को बनाई। 3 अगस्त 2004 को एक मामले पर हाईकोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को कहा था कि वे तत्काल अपने कार्यालय में एक सेल गठित करें, ताकि तबादलों से संबंधित आवेदनों का निराकरण हो सके। इसके बाद मुख्य सचिव के कार्यालय में सेल का गठन हुआ और सामान्य प्रशासन विभाग ने भी वर्ष 2015-16 के लिए एक अलग से तबादला नीति बनाई। इसके बाद ये निर्देश जारी किए गए कि क्लास वन के अधिकारियों द्वारा तबादले को लेकर दिए जाने वाले आवेदन का निराकरण मुख्य सचिव ही करेंगे। याचिका में कहा गया है कि उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव ने याचिकाकर्ता संघ की आपत्ति के बाद भी 5 मार्च 2016 को कॉलेजों के कर्मचारियों और टीचिंग स्टाफ के तबादलों को लेकर एक नीति बनाई है।
आरोप है कि नई नीति के बनने के बाद 14 मार्च 2016 को राज्य सरकार ने यह व्यवस्था दी है कि क्लास वन अधिकारियों द्वारा तबादलों के खिलाफ दिए जाने वाले आवेदनों का निराकरण मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद ही मुख्य सचिव करेंगे। आवेदक संघ का दावा है कि सामान्य प्रशासन विभाग के अनुमोदन के बिना उच्च शिक्षा विभाग अलग से अपने कर्मचारियों के लिए तबादला नीति नहीं बना सकता। इन आधारों के साथ दायर याचिका में विवादित नीति को खारिज किए जाने की राहत चाही गई है। मामले पर मंगलवार को हुई प्रारंभिक सुनवाई के बाद युगलपीठ ने याचिका में बनाए गए अनावेदकों को नोटिस जारी करके जवाब देने कहा है। याचिकाकर्ता संघ की ओर से अधिवक्ता संजय के. अग्रवाल पैरवी कर रहे हैं।
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