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प्राइमरी-मिडिल का रिजल्ट हर साल 100% 29 हजार बच्चों को अक्षरों का ज्ञान तक नहीं

प्राथमिक व माध्यमिक कक्षाओं का रिजल्ट भले ही 100 प्रतिशत आ रहा है। लेकिन जिले में कक्षा एक से आठ तक के 29 हजार 592 छात्र-छात्राएं ऐसे हैं जो हिन्दी पढ़ना तो दूर अक्षर भी नहीं पहचान पाते। अंग्रेजी व गणित विषय में भी छात्रों की यही स्थिति है।
अंग्रेजी में 31 हजार 786 बच्चे अल्फाबेट नहीं जानते और गणित में 27 हजार 353 बच्चों को आकृति की कोई नॉलेज नहीं है। यह आंकड़े राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा आयोजित कराए गए एंड लाइन टेस्ट के बाद सामने आए हैं। टेस्ट के इन आंकड़ों की हकीकत पर राज्य शिक्षा केन्द्र के अधिकारियों ने यह कहकर सफाई दी है कि यह आंकड़े चार महीने पुराने हैं।

कक्षा एक से आठ तक के छात्र-छात्राओं का शिक्षा स्तर परखने के लिए राज्य शिक्षा केन्द्र ने बेसलाइन व एंड लाइन टेस्ट करवाए थे। इन टेस्टों ने शिक्षा व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी है। शिक्षा का स्तर इस कदर गिरा है कि छात्र लगातार पास हो रहे हैं और उन्हें हिन्दी व अंग्रेजी बारहखड़ी नहीं आती और गणित के गुणा-भाग उनके वश से बाहर है क्योंकि वह उन आकृतियों को नहीं पहचानते जो त्रिकोण, गोलाकार व अन्य तरह के होते हैं। अधिकारियों का कहना है कि 100 प्रतिशत रिजल्ट इसलिए आता है कि किसी भी बच्चे को फेल करने या सप्लीमेंटरी लाने की पात्रता नहीं है।

अफसरों का तर्क- इन आंकड़ों के सामने आने के बाद अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर स्थिति सुधारी

जिले में तीस हजार बच्चे ऐसे है जिन्हे अक्षर पहचानना नहीं आता।

अब ‘स्माइली चिन्ह’ से शुरू की पहचान

शिक्षा से पिछड़ रहे बच्चों की पहचान शुरूआती दौर में ही हो सके इसके लिए राज्य शिक्षा केन्द्र ने नया प्रयोग शुरू कर दिया है। कक्षा एक व कक्षा 2 के छात्राओं की अंकसूची में अंक के स्थान पर स्माइली चिन्ह अंकित किए जा रहे हैं। यदि छात्र की मार्कशीट पर एक स्माइली का चिन्ह है तो यह समझा जाएगा कि उसे सीखने की आवश्यकता है। दो स्माइली का मतलब होगा कि वह सीख रहा है और 3 स्माइली यह प्रदर्शित करेंगी यह छात्र कक्षा के अनुरूप शिक्षा ग्रहण कर चुका है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि आगामी कक्षा में पहुंचने पर एक स्माइली व दो स्माइली वाले छात्र-छात्राओं को एक घंटे के अतिरिक्त क्लास देकर पुराना कोर्स पढ़ाया जाएगा।

जिले में गिर रहे शिक्षा के स्तर को लेकर एक बहुत बड़ा कारण यह है कि प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। 2250 शिक्षक व 180 हेडमास्टरों की आवश्यकता जिले के स्कूलों में है। जिनकी कमी पूरी नहीं हो पा रही।

बच्चों के पढ़ाई में कमजोर होने के यह कारण आ रहे सामने

शिक्षा विभाग शिक्षकों का समायोजन भी नहीं कर पा रहा। सिफारिशों के बूते कई शिक्षकों ने ग्रामीण क्षेत्रों से अपने स्थानांतरण शहरी क्षेत्र के स्कूलों में करा लिए हैं। ऐसे में शहरी क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षकों की संख्या अधिक है जबकि ग्रामीण क्षेत्र में कई स्कूल ऐसे हैं जहां एक या दो शिक्षक ही रह गए हैं।

हिन्दी, गणित व अंग्रेजी में स्थिति चिंताजनक

अधिकांश शिक्षक मुख्यालय पर नहीं रहते। कई स्कूलों में शिक्षकों ने ऐसा प्लान बना लिया है कि वह बारी-बारी से तीन-तीन दिन स्कूल आते हैं। इससे भी पढ़ाई प्रभावित होती है। ऐसी व्यवस्था इसलिए चल पाती है क्योंकि इन स्कूलों की मॉनिटरिंग नियमित नहीं होती।

हिन्दी

अक्षर

छात्र संख्या

18795

6125

1509

888

570

1090

310

303

कक्षा

1

2

3

4

5

6

7

8

गणित

आकृति

छात्र संख्या

14053

5104

2028

1605

1689

1350

898

826

ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे नियमित स्कूल नहीं पहुंचते। कई बच्चे ऐसे हैं जो आर्थिक तंगी के चलते स्कूल छोड़कर मेहनत-मजदूरी के लिए निकल जाते हैं। हालांकि शाला प्रबंधन की जवाबदारी में शामिल है कि ऐसे बच्चों को स्कूल लाया जाए लेकिन वह इस दिशा में गंभीरता नहीं दिखाते।

अंग्रेजी

अल्फाबेट

छात्र संख्या

16990

7895

2676

1353

841

1115

518

398

पहले तो आंकड़े ही गलत ठहरा दिए फिर बोले कक्षा-1 के हैं अधिकांश बच्चे

डीपीसी महेश सिंह तोमर से जब एंड लाइन टेस्ट के बाद प्राप्त हुए आंकड़ों के संबंध में चर्चा की गई तो सबसे पहले उन्होंने इन आंकड़ों को गलत ठहरा दिया। लेकिन बाद में रिकॉर्ड देखने के बाद उन्होंने स्वीकार तो किया लेकिन यह कहकर सफाई दी कि 29 हजार 592 में से 18 हजार 795 छात्र-छात्राएं पहली कक्षा के हैं और शेष अन्य कक्षाओं के। उनसे जब यह पूछा गया कि पहली कक्षा के बच्चे भी एक साल अध्ययन करने के बाद अक्षर तक नहीं पहचानते यह भी चिंता का विषय है तो उनका जवाब था कि इसमें अधिकांश ऐसे बच्चे हैं जो नियमित स्कूल नहीं आते। अब इन बच्चों का स्तर सुधारने के लिए ज्वॉय फुल लर्निंग अभियान चलाया जा रहा है।

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