बीस साल से ट्रांसफर का इंतजार कर रहे अध्यापकों की उम्मीदों पर अफसरों ने
फिर पानी फेर दिया है। महीने भर पहले अध्यापकों के तबादला आदेश जारी भी हो
गए।
इसी बीच जनजातीय कार्य विकास विभाग की आयुक्त दीपाली रस्तोगी ने 12
अप्रैल को फरमान जारी किया कि विभाग के स्कूलों में पहले ही शिक्षकों की
कमी है, इसलिए उन्हें रिलीव न किया जाए। इसके चार दिन बाद 16 अप्रैल को इसी
आदेश को आधार बनाकर लोक शिक्षण आयुक्त नीरज दुबे ने भी शिक्षा विभाग के
अध्यापकों को रिलीव न करने के आदेश जारी कर दिए। अफसरों के इस फरमान से उन
अध्यापकों में गुस्सा है, जिन्हें लंबे इंतजार के बाद ट्रांसफर की उम्मीद
थी। अध्यापकों का कहना है कि अफसर सरकारी पॉलिसी पर भी भारी हैं। आखिर ऐसी
कौनसी वजह है कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद लाई गई ट्रांसफर पॉलिसी को
अफसरों ने रोक दिया। हालांकि जनजातीय कार्य विभाग की आयुक्त दीपाली रस्तोगी
ने इस मामले में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। 10 जुलाई 2017 को सरकार ने
अध्यापकों के तबादले व अंतर्निकाय संविलयन के लिए नीति का अनुमोदन किया
था। पांच साल पूरे कर चुके अध्यापक इसके लिए पात्र माने गए थे। शिक्षकों की
कमी के तर्क को खारिज करते हुए इटारसी के केसला ब्लॉक के सनखेड़ा स्कूल के
अध्यापक राजदीप संज्ञा कहते हैं कि वे अर्थशास्त्र के शिक्षक हैं, लेकिन
स्कूल में इस विषय की कक्षाएं ही नहीं लगती। आजाद अध्यापक संघ की
प्रांताध्यक्ष शिल्पी शिवान का कहना है कि 20 साल बाद सरकार शिक्षकों के
लिए तबादला नीति लाई। 4300 शिक्षकों के तबादले के आदेश भी जारी हो चुके थे।
यह पॉलिसी कैबिनेट की मंजूरी के बाद आई थी। ऐसे में सरकार के अफसर क्या
मंत्रीपरिषद के फैसले से भी ऊपर हैं?
जुलाई-17 में कैबिनेट की मंजूरी से बनी थी अध्यापकों की ट्रांसफर पॉलिसी, 4300 शिक्षकों के ट्रांसफर आदेश भी जारी हो गए, लेकिन…
पहले ही मिल चुके थे ट्रांसफर के आदेश
अध्यापकों का कहना है कि तीन महीने की प्रक्रिया के बाद
प्राथमिकता क्रम में अध्यापकों के तबादले के आदेश हुए थे। यदि सरकार को
शिक्षकों की कमी महसूस हो रही थी तो ट्रांसफर के आदेश ही जारी नहीं करने
थे। ट्रांसफर होने के बाद भी शिक्षक प्रदेश के ही स्कूलों में पढ़ाएंगे,
इसलिए शिक्षकों की कमी का तर्क ठीक नहीं है।