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गैर तकनीकी शिक्षकों को प्राचार्य बनाने की तैयारी

तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग द्वारा एआईसीटीई के नियमों को ताक पर रखकर पॉलीटेक्निक कॉलेजों में गैर इंजीनियरिंग विषय के शिक्षकों को प्राचार्य बनाने की तैयारी कर ली है।
हद तो यह है कि इतने महत्वपूर्ण फैसले से संचालनालय तकनीकी शिक्षा को भी दूर रखा गया है। इंजीनियर्स एसोसिएशन ने इस बात का विरोध किया तो भी इसे नहीं रोका जा रहा है।

भोपाल डीबी स्टार

तकनीकी शिक्षा विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी सभाजीत यादव ने 9 फरवरी 2018 को एक पत्र सभी पॉलीटेक्नीक कॉलेजों के प्राचार्य को लिखा है। इसमें एआईसीटीई के नियमों का हवाला देकर नियमित प्राचार्यों की नियुक्ति करने का आदेश दिया है। इस एक पत्र से पूरे प्रदेश के पॉलीटेक्निक कॉलेजों में हड़कंप मच गया। इसके अनुसार अब गैर इंजीनियरिंग विषय के शिक्षक भी पॉलीटेक्निक कॉलेज का प्रिंसीपल बन सकता है। इसका विरोध करते हुए मप्र पॉलीटेक्निक राजपत्रित अधिकारी संघ ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बताया कि पदोन्नति के ऐसे कोई नियम नहीं है। केवल सीधी भर्ती से ही इन पदों को भरा जा सकता है। लेकिन विभाग ने इस विरोध को दरकिनार करते हुए अपनी प्रक्रिया जारी रखी है। डीबी स्टार ने मामले की पड़ताल की तो पता चला कि अभी भी पुराने नियम लागू हैं और उनके अनुसार सीधी भर्ती से ही प्रिंसीपल के रिक्त पद भरे जा सकते हैं। खुद विभाग की तरफ से यह बताया गया है कि पदोन्नति के लिए रिक्त पद है ही नहीं तो फिर पदोन्नति कैसे की जा रही है। इतना ही नहीं पदोन्नति का मामला अभी हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इसके बाद भी विभाग प्रक्रिया जारी रखे हुए है। मजेदार बात तो यह है कि कोर्ट में लगाई गई याचिका के बाद शासन ने जवाब दिया था कि वे नए नियम बनाएंगे। यह नियम अब तक बने ही नहीं हैं और पदोन्नति से भर्ती की तैयारी शुरू कर दी गई। पड़ताल में पता चला है कि कुछ साल पहले वेतनमान लगने के बाद ग्रेड पे स्केल में बदलाव हुआ था न कि विभागीय पदोन्नति नियमों में कोई बदलाव हुआ। लेकिन अब वेतनमान में किए गए बदलावों को ही पदोन्नति नियम बताकर नियुक्ति की तैयारी की जा रही है।

आश्चर्यजनक बात तो यह है कि इतने महत्वपूर्ण फैसले में न तो विभागीय मंत्री की राय ली गई और न ही संचालनालय तकनीकी शिक्षा को विश्वास में लिया गया। यह कोई पहला मामला नहीं है, जब ऐसा किया जा रहा हो। इसके पूर्व संचालक तकनीकी शिक्षा के पद से आशीष डोंगरे को हटाकर वीरेंद्र सिंह को पदस्थ करते वक्त भी ऐसी ही हड़बड़ी की गई थी।

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