Important Posts

Advertisement

दोबारा परीक्षा की घोषणा में देर कर दी, पहले होती तो बच जाती रुबीना

मसूदा सुजावनी (शिवपुरी) से रुमनी घोष। प्रदेश के आखिरी छोर पर बसे शिवपुरी जिले का मसूदा सुजावनी गांव। बारहवीं में पास न हो पाने पर 17 वर्षीय रुबीना जाटव ने आत्महत्या कर ली थी। गांव के लिए यह घटना अजूबा है, क्योंकि पीढ़ियों से किसी ने ऐसा नहीं देखा।

स्थानीय सरकारी स्कूलों के शिक्षक सरकार के देर से लिए गए निर्णय 'रूक जाना नहीं योजना' को जिम्मेदार बताते हुए कहते हैं सरकार पहले ही घोषणा कर देती तो रुबीना जैसे बच्चों को समझा लेते। रुबीना की आत्महत्या के दो पहलू हैं। पहला, सहपाठियों ने कहा- सब पास हो गए, तुम ही रह गई।
सुनकर वह अवसाद में चली गई होगी। दूसरा, (अनछुआ और अनसोचा) दलित बस्ती की एक लड़की का जीवन में कुछ बनने की जद्दोजहद में हार जाना। इस हार को अनदेखा कर आगे नहीं बढ़ा जा सकता है? आगे बढ़ना चाहती हैं लड़कियां रुबीना के स्कूल शिवपुरी करारखेड़ा हायर सेकंडरी स्कूल के प्राचार्य अभयप्रताप सिंह जादौन कहते हैं बीते कुछ सालों में पिछड़े आदिवासी इलाकों की लड़कियों की सोच में तेजी से बदलाव आया है। बेशक वे टॉपर नहीं, 80-90 प्रतिशत अंकों की उम्मीद नहीं, मगर वे छोटे-छोटे अवसर तलाशते हुए आगे बढ़ जाना चाहती हैं।
यह कुछ मायनों में इसलिए सही है कि इस साल 10वीं-12वीं का रिजल्ट आने के बाद प्रदेशभर से रुबीना जैसी डिंडौरी, टीकमगढ़, छिंदवाड़ा, दमोह, सागर, कटनी, भोपाल क्षेत्र की 10 लड़कियों ने आत्महत्या की हैं। इनमें से अधिकांश ग्रामीण अंचलों से हैं और पढ़-लिखकर अपना जीवन बदल देना चाहती थीं। पूरा मार्गदर्शन नहीं मिल पाया रुबीना ने जिस कमरे में फांसी लगाई, वहां एक चार्ट अभी भी लगा है। इसमें लिखा है कि कौन सा विषय कितने घंटे पढ़ना है।
वह पढ़ना चाहती थी, पर शायद सरकारी तंत्र से उसे पूरी तरह वह मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है जो उसे सफलता के लिए तैयार कर सके ...और सफल न हो पाने पर रास्ते तलाशना सीखा सके। सपनों को ठोकर मार वे गिड़गिड़ा रहे... कोई सुन क्यों नहीं रहा रुबीना की आत्महत्या का कारण हम चाहे जिस छोर से तलाशना शुरू करें, मगर दलित बहुल इलाके की छोटी बस्ती में रहने वाले रुबीना के पिता हरचरण और मां सरमन जाटव का क्या कसूर है? खेतीबाड़ी के साथ ही यह परिवार गुम्मा (ईंट) बनाता है।
किसी भी शहरी इलाकों के माता-पिता से ज्यादा समझदारी दिखाते सारी ख्वाहिशों को ठोकर मारकर उन्होंने बेटी को समझाया था- कोई बात नहीं, दोबारा परीक्षा दे देना। रात में साथ बिठाकर खाना खिलाया। मगर वह सुबह माता-पिता को खेत भेज फांसी पर झूल गई। छोटा भाई महेंद्र भी दसवीं में फेल हो गया है, पर उसे भी माता-पिता ने कुछ नहीं कहा। वे कहते हैं जिन माता-पिता को उनके बच्चे छोड़कर चले गए हैं... वे तो अब कभी नहीं सुन पाएंगे, मगर दूसरे बच्चे तो सुनें कि हम उनके सामने गिड़गिड़ा रहे हैं कि वे अपने आपको बख्श दें।
7000 रुपए कमाई में से 600 रुपए की ट्यूशन पढ़ाई थी फिर पढ़ाते, एक बार बोलती तो सही टीकमगढ़। 13 मई की सुबह जिस समय रुबीना ने फांसी लगाई, लगभग उसी वक्त टीकमगढ़ से 7 किमी दूर मिनोर गांव में ज्योति अहिरवार ने खुद को आग लगा ली थी। बारहवीं में फिजिक्स और बायोलॉजी में कम अंक आने से वह फेल हो गई थी।
मजदूरी कर बमुश्किल 7 हजार रुपए कमाने वाले राजाराम अहिरवार तीन बेटियों और एक बेटे सबको पढ़ा रहे हैं। मां जशोदाबाई कहती हैं वह पुलिस में जाना चाहती थी, इसलिए इतनी कम आमदनी के बावजूद उसे तीन विषय की ट्यूशन भेजते थे। हमारे लिए मुश्किल था फिर भी हमने उससे कहा-दोबारा परीक्षा दे देना। बहन को आग की लपटों में देखकर सबसे पहले बचाने भागी छोटी बहन सोनम कहती है-आग लगाने के बाद शायद उसे गलती का अहसास हुआ। वो बार-बार बोलती रही कि मुझे बचा लो, पर नहीं बचा पाए।
Sponsored link :
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC

UPTET news

Facebook